निर्विकल्प/सविकल्प समाधि ---
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मैनें आज तक जो कुछ भी निर्विकल्प समाधि के बारे में लिखा है, उसे इस लेख के साथ खारिज (cancel) करता हूँ। भविष्य में कभी कुछ लिखूँगा तो यह लेख भी अपने आप ही खारिज हो जाएगा।
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निर्विकल्प समाधि एक नित्य नवीन, सचेतन, शाश्वत और सर्वव्यापी आनंद की अनुभूति है, जो बिना परमात्मा की कृपा के नहीं होती। यह भगवान का दिया हुआ एक प्रसाद है, जिसे बड़े प्रेम से ग्रहण करना चाहिए। आज जगन्माता ने यह प्रसाद दिया जिसके लिए मैं उनका ऋणी हूँ।
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इस प्रसाद को वे सब साधक बड़े आराम से प्राप्त कर सकते हैं जो निष्काम भाव से परमात्मा के सर्वव्यापी परमप्रेममय रूप पर ध्यान करते हैं। इस बारे में कुछ भी लिखना व्यर्थ है क्योंकि हरेक साधक की अनुभूति एक-दूसरे से पृथक होती है।
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जो हमें प्रेममग्न, समभाव में स्थित कर परमात्मा की अनुभूति करा दे वही निर्विकल्प समाधि है। इस अनुभूति का निरंतर विस्तार करते रहना चाहिए। फिर एक ऐसा समय इसी जीवन काल में आ जाना चाहिए कि इस देह के अंत काल में हम निर्विकल्प समाधि में सचेतन रूप से ही इस देह का त्याग कर सकें।
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पुनश्च: (बाद में जोड़ा हुआ) :-- इतना अभ्यास भी कर ही लेना चाहिए कि हमारी चेतना स्वेच्छा से सचेतन रूप से ब्रह्मरंध्र से बाहर निकल कर परमात्मा की सर्वव्यापकता, व उससे भी परे का ध्यान कर सके। जो कर सकते हैं, उन्हें भगवान का ध्यान इस देह की चेतना से बाहर निकल कर ही करना चाहिए। निश्चिंत रहें, प्राण नहीं निकलेंगे। जब तक प्रारब्ध में जीवन लिखा है, हमारी चेतना इस देह के साथ जुड़ी ही रहेगी। इस सृष्टि की अनंतता में कितनी भी दूर तक कहीं भी चले जाओ, घूम फिर कर, जब तक प्रारब्ध में है, इसी शरीर में बापस आना ही पड़ेगा।
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०२२
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