Saturday 23 April 2022

जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवत्-प्राप्ति है, अन्य कुछ भी नहीं ---

 जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवत्-प्राप्ति है, अन्य कुछ भी नहीं। जीवन में सुख, शांति, सुरक्षा, संतुष्टि और तृप्ति -- सब भगवत्-कृपा से ही प्राप्त होते हैं।

.
कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण का नित्य नियमित ध्यान करते करते ऐसी अनुभूति होने लगती है कि चारों ओर वे ही छाए हुए हैं। उन की कुछ विशेष कृपा हर समय ही बनी रहती है। हर समय यही आभास होता है कि वे अपने आसन पर पद्मासन में बैठे हैं, और अपने स्वयं का ध्यान कर रहे हैं। उनकी छवि अलौकिक व अवर्णनीय है। सारी सृष्टि उनमें, और वे सारी सृष्टि में समाहित हैं। उनका ज्योतिर्मय कूटस्थ विग्रह शब्दब्रह्म -- चारों ओर गूंज रहा है। उनसे अन्य कोई भी या कुछ भी नहीं है। उनका संदेश स्पष्ट है --
.
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि..१८:५८।।"
अर्थात् - मच्चित्त होकर (मुझ में चित्त लगाकर) तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो नष्ट हो जाओगे।।"
.
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।१८:६६।।"
अर्थात् - "सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।।"
.
आप किसी घोर वन में बिल्कुल अकेले यात्रा कर रहे हो और सामने से एक सिंह आ जाये तो आप क्या करोगे? जो करना है वह तो सिंह ही करेगा, हम कुछ नहीं कर सकते। वैसे ही जब स्वयं भगवान ही सामने आ गए हैं, तो जो कुछ भी करना है, वह तो वे स्वयं ही करेंगे। हमारे वश में पूर्ण समर्पण के सिवाय अन्य कुछ भी विकल्प नहीं है। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१० अप्रेल २०२२

No comments:

Post a Comment