Sunday, 22 December 2019

भगवान शिव -----

भगवान शिव ----- सम्पूर्ण सृष्टि ही भगवान शिव का प्रतिरूप है| शिव-तत्व का ज्ञान तो भगवान स्वयं ही दे सकते हैं| जो कल्याणकारक हैं, वे शिव हैं| यहाँ भगवान शिव से संबंधित जितना भी मुझे ज्ञात है उसके साथ-साथ कुछ शब्दों के अर्थ भी दे रहा हूँ .....
.
(१) शिवलिंग का अर्थ ..... शिवलिंग का अर्थ है वह परम मंगल और कल्याणकारी परम चैतन्य जिसमें सब का विलय हो जाता है| सारा अस्तित्व, सारा ब्रह्मांड ही शिव लिंग है| स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे .... तुरीय चेतना .... में विलय हो जाता है| उस तुरीय चेतना का प्रतीक हैं .... शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ यानि ब्रह्मयोनी में निरंतर जागृत रहता है| उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है| लिंग का शाब्दिक शास्त्रीय अर्थ है विलीन होना| शिवत्व में विलीन होने का प्रतीक है शिवलिंग|
(२) शिवत्व ..... शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
(३) शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी|
(४) शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक|
(५) शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
.
(६) पञ्चमुखी महादेव ..... योगियों को गहन ध्यान में कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पञ्चकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है| वह पञ्चकोणीय नक्षत्र पंचमुखी महादेव है| गहन ध्यान में योगीगण उसी का ध्यान करते हैं|
ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं ..... ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
(१ ) भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
(२) पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
(३) दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
(४) उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
(५) पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
.
अन्य अर्थ :----
(१) भूतनाथ का अर्थ .... भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
(२) महाकाल का अर्थ ..... भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है|
(३) काल का अर्थ ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण.... ये पाँचों मिल कर काल कहलाते हैं| ये काल के पाँच अंग हैं|
(४) शिव परिवार ..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| ..... ये पांचों मिलकर शिव-परिवार कहलाते हैं| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
(५) पंचाक्षरी मंत्र ..... शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है| साधना में प्रयुक्त रुद्राक्ष भी सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
.
(६) परमशिव और त्रिपुरारी का अर्थ ..... जो परम कल्याणकारक हैं वे परमशिव हैं| परमशिव एक अनुभूति है| ब्रह्मरंध्र से परे परमात्मा की विराट अनंतता का सचेतन बोध परमशिव की अनुभूति है| तब साधक स्वयं ही परमशिव हो जाता है| भगवान परमशिव दुःखतस्कर हैं| तस्कर का अर्थ होता है .... जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है| भगवन परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं| वे जीवात्मा को संसारजाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं| जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंश कर महाचैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं|
(7) ब्रह्म का अर्थ ..... परमात्मा के लिए ब्रह्म शब्द का प्रयोग किया जाता है| ब्रह्म शब्द का अर्थ है जिनका निरंतर विस्तार हो रहा है, जो सर्वत्र व्याप्त हैं, वे ब्रह्म हैं|
(८) आत्मलिंग का अर्थ ..... सूक्ष्म देह के भीतर सुषुम्ना नाड़ी के भीतर एक शिवलिंग तो मूलाधार चक्र के बिलकुल ऊपर है| मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय दीर्घ शिवलिंग है| मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं|
एक शिवलिंग आज्ञाचक्र से ऊपर उत्तरा-सुषुम्ना में है| मानसिक रूप से उसी में रहते हुए परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान किया जाता है| ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्रीगुरुचरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें|
.
ॐ तत्सत ! ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च || ॐ नमःशिवाय || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ नवम्बर २०१९

भगवान की भक्ति से बड़ी अन्य कोई दूसरी चीज नहीं है .....

भगवान की भक्ति से बड़ी अन्य कोई दूसरी चीज नहीं है| भक्ति का अर्थ होता है परमप्रेम| प्रेम में कोई मांग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है| भगवान को हम अपना पूरा अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) समर्पित कर दें, यह सबसे बड़ी भक्ति है| खाते पीते सोते हर समय उनका ध्यान रहे, हम जो भी करें उनकी प्रसन्नता के लिए करें, उन्हें ही अपने माध्यम से कार्य करने दें| फिर भगवान कहीं दूर नहीं हैं| वे हमारी आँखों से देख रहे हैं, हमारे कानों से सुन रहे हैं, हमारे पैरों से चल रहे हैं, हमारे हृदय में धडक रहे हैं, हम तो हैं ही नहीं, वे ही वे हैं| हमारा सारा अस्तित्व वे ही हैं| इस देह के माध्यम से वे ही जी रहे हैं| भगवान एक प्रवाह हैं, जिन्हें हम स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दें| वे एक रस हैं जिसका आस्वादन हम निरंतर करते रहें|
.
यह भाव जिनमें निरंतर बना रहता है, वे इस पृथ्वी पर चलते फिरते देवता हैं| यह पृथ्वी उनको पाकर सनाथ हो जाती है| जहाँ भी उनके पैर पड़ते हैं, वह भूमि धन्य हो जाती है| उनकी सात पीढ़ियाँ तर जाती हैं| देवता उन्हें देखकर नृत्य करते हैं| वह परिवार और कुल धन्य हो जाता है जहाँ ऐसी महान आत्माएँ जन्म लेती हैं|
.
हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०१९