Sunday, 31 March 2019

सबसे बड़ा दोष .... "आहार दोष" .....

सबसे बड़ा दोष .... "आहार दोष" .....
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भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः| भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्||३:१३||
इसका भावार्थ है कि यज्ञ के अवशिष्ट अन्न का भोजन करने वाले श्रेष्ठ पुरुष हैं| देवयज्ञ आदि कर के उसमें बचे हुए अमृत नामक अन्न को भक्षण करना जिन का स्वभाव है वे सब पापों से अर्थात् गृहस्थ में होने वाले चक्की चूल्हे आदि के पाँच पापों से और प्रमाद से होनेवाले हिंसा आदि से जनित अन्य पापों से भी छूट जाते हैं| तथा जो उदरपरायण लोग केवल अपने लिये ही अन्न पकाते हैं वै स्वयं पापी हैं और पाप ही खाते हैं|
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आहार दोष सबसे बड़ा दोष है क्योंकि जैसा होगा अन्न, वैसा ही होगा हमारा मन| यहाँ भगवान स्वयं यह बात कह रहे हैं कि जो लोग केवल स्वयं के लिए ही अन्न पकाते हैं वे स्वयं तो पापी हैं ही, और पाप को भी खाते है| अब प्रश्न यह है कि यज्ञ का अवशिष्ट भोजन क्या है, और उसका आहार कैसे करें?
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इसके लिए इस लेख के पाठकों को स्वयं परिश्रम कर के उत्तर ढूँढना होगा| स्वयं की मेहनत ही काम आयेगी, दूसरे की नहीं| यजुर्वेद के शतपथ ब्राह्मण और मनुस्मृति में पञ्च महायज्ञों का वर्णन है| वे क्या हैं? यह जानना ही होगा| भोजन बनाते समय पांच प्रकार के पाप कौन से हो जाते हैं, यह भी स्वयं को ही जानना होगा| गीता में भी भगवान ने इसका आदेश दिया है, उसका स्वाध्याय भी स्वयं को ही करना होगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०१९

सन १९६२ में हम चीन से बहुत बुरी तरह अपमानित होकर क्यों हारे ?

सन १९६२ में हम चीन से बहुत बुरी तरह अपमानित होकर क्यों हारे ?
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चारो ओर से हुई आलोचना से दबाव में आकर भारत सरकार ने इसकी जाँच ऑस्ट्रेलिया के अँगरेज़ Lieutenant General Henderson Brooks और भारतीय Brigadier General Premindra Singh Bhagat से करवाई थी| उन्होंने मामले की पूरी जाँच कर के इसकी रिपोर्ट भारत सरकार को दी| इस रिपोर्ट का नाम Henderson Brooks-Bhagat report है जो अभी तक परम गोपनीय है| इसकी एक ही प्रति छपी थी जिसको देखने का अधिकार सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री को ही है| भारत का प्रधानमंत्री भी एक शपथ के अंतर्गत इसकी चर्चा किसी से नहीं कर सकता| इतनी परम गुप्त रिपोर्ट है यह|
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पर ऑस्ट्रेलिया के एक अँगरेज़ खोजी पत्रकार Neville Maxwell ने इस रिपोर्ट के १२६ पृष्ठों को पता नहीं कहाँ से खोज निकाला और अपनी निजी वेबसाइट पर 17 March 2014 को डाल दिया| इस से बड़ी हलचल मच गयी| भारत के पूर्व रक्षामंत्री A.K. Antony ने इसे अत्यधिक संवेदनशील बताकर इस पर किसी भी तरह की चर्चा या बहस से मना कर दिया| हालांकि इस पर इंग्लैंड में एक पुस्तक भी छप गयी थी| वह पुस्तक इंग्लैंड में खूब बिकी थी|
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उस लीक हुई रिपोर्ट के अनुसार भारत की १९६२ में हुई अपमानजनक पराजय का सारा दोष तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु की दोषपूर्ण नीतियों को दिया गया था| साढ़े छप्पन वर्षों के बाद भी वह रिपोर्ट परम गोपनीय है क्योंकि उसमें नेहरु की गलती सिद्ध होती है| नेहरु ने जान बूझकर भारत को हरवाया था| उस समय चीन की स्थल सेना भारत की सेना में मुकाबले बहुत कमजोर थी, चीन के पास वायुसेना तो थी ही नहीं| भारत के पास वायुसेना थी जिसका नेहरू ने उपयोग नहीं होने दिया| चीनी लोग साहसी नहीं होते, वे एक डरपोक कौम हैं| उस डरपोक कौम से हुई हमारी हार वास्तव में बहुत अपमानजनक थी|
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अंत में एक बात और बताता हूँ कि चीन में माओ सता में अपने स्वयं के पराक्रम से नहीं आया, बल्कि स्टालिन द्वारा भेजी गयी रूसी सेना के दम पर आया था| उसका तथाकथित Long March पूरी तरह एक ढकोसला था| पर हमारे यहाँ कई लोगों के लिए माओ भी आदर्श है, और नेहरु का पवित्र परिवार अभी भी पूजनीय है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०१९

भक्ति से क्या मिलता है ?

प्रश्न : भक्ति से क्या मिलता है ?
उत्तर : कुछ भी नहीं| जिसे कुछ चाहिए वह इस मार्ग में नहीं आये| उससे जो कुछ उसके पास है वह भी छीन लिया जाता है| यहाँ का नियम है कि जिसके पास कुछ है उसे और भी अधिक दिया जाता है, पर जिस के पास कुछ नहीं है उससे वह सब कुछ छीन लिया जाता है जो कुछ भी उसके पास है| भिखारी को कुछ नहीं मिलता लेकिन पुत्र को सब कुछ दे दिया जाता है|
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प्रश्न : तुम भक्ति क्यों करते हो?
उत्तर : यह मेरा स्वभाव और जीवन है| मैं भक्ति के बिना जीवित नहीं रह सकता|
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प्रश्न : भक्ति से तुमको क्या मिला?
उत्तर : भगवान का प्रेम| प्रेम के अतिरिक्त कुछ चाहिए भी नहीं था|
इस मार्ग में पाने को कुछ है ही नहीं| सब कुछ खोना ही खोना है| मिलेगा तो सिर्फ प्रेम ही| प्राण भी देना पड़ सकता है|
“कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपनौ, चले हमारे साथ|"


३१ मार्च २०१९

भारत क्यों पराधीन हुआ?

भारत क्यों पराधीन हुआ? इस विषय पर मैनें खूब चिंतन किया है और जिन निष्कर्षों पर पहुँचा हूँ, उनका अति संक्षेप में यहाँ वर्णन कर रहा हूँ|
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वह समय ही खराब था| समाज में कई सद्गुण विकृतियाँ आ गयी थीं| समाज व राष्ट्र की अवधारणा व चेतना ही प्रायः लुप्त हो गयी थी| यह मान लिया गया कि राष्ट्ररक्षा का कार्य सिर्फ क्षत्रियों का ही है| जो भी विजेता होता उसी की आधीनता आँख मीच कर स्वीकार कर ली जाती| क्षत्रिय राजा भी निजी स्वार्थों के कारण संगठित न होकर बिखरे बिखरे ही रहे और कुछ ने तो आतताइयों का साथ भी दिया| क्षत्रिय राजाओं में भी समाज-हित और राष्ट्र-हित की चेतना धीरे धीरे लुप्त हो गयी| जिनमें यह चेतना थी वे असहाय हो गए| यदि सारा समाज और राष्ट्र एकजुट होकर आतताइयों का प्रतिकार करता तो भारत कभी भी पराधीन नहीं होता, और भारत की ओर आँख उठाकर देखने का भी किसी में साहस नहीं होता|
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अब बीता हुआ समय तो बापस आ नहीं सकता, जो हो गया सो हो गया| अब इसी क्षण से हम इस दिशा में अपना सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, इस पर ही विचार करना चाहिए| हमारा राष्ट्र एक है| राष्ट्र की एकता कैसे बनी रहे, व राष्ट्र कैसे शक्तिशाली और सुरक्षित रहे, सिर्फ इस पर ही विचार करना चाहिए|
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वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्र की सुरक्षा और कल्याण की क्षमता सिर्फ और सिर्फ माननीय श्री नरेन्द्र मोदी में ही है| अन्य किसी भी अन्य राजनेता में यह समझ नहीं है| अतः अपने सारे निजी स्वार्थ और मतभेद भुलाकर राष्ट्र-हित में हमें अपना अमूल्य मत भाजपा को ही देना चाहिए| भाजपा को दिया गया हर मत श्री नरेन्द्र मोदी को ही है|
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जय जननी, जय भारत ! वन्दे मातरं ! भारत माता की जय !
३० मार्च २०१९

पुनश्चः :--- उपरोक्त विषय पर मैंने इतिहास और तत्कालीन परिस्थितियों का खूब अध्ययन भी किया है, विश्व के अनेक देशों का भ्रमण भी किया है, और खूब स्वतंत्र चिंतन भी किया है| जो भी लिखा है वह मेरे अपने निजी अनुभवजन्य विचार हैं|

गीता में भगवान द्वारा बताई हुई यह विधि क्या किसी को सिद्ध है ?

गीता में भगवान द्वारा बताई हुई यह विधि क्या किसी को सिद्ध है ? या क्या किसी को इसका व्यावहारिक ज्ञान है (भावार्थ नहीं) ? ......
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प्रयाण काले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव |
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्‌- स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्‌ ||८:१०||
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः |
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ||८:११||
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च |
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्‌ ||८:१२||
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्‌ |
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्‌ ||८:१३||
अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः |
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ||८:१४||

अर्थात् .....
जो मनुष्य मृत्यु के समय अचल मन से भक्ति मे लगा हुआ, योग-शक्ति के द्वारा प्राण को दोनों भौंहौं के मध्य में पूर्ण रूप से स्थापित कर लेता है, वह निश्चित रूप से परमात्मा के उस परम-धाम को ही प्राप्त होता है। (१०)
वेदों के ज्ञाता जिसे अविनाशी कहते है तथा बडे़-बडे़ मुनि-सन्यासी जिसमें प्रवेश पाते है, उस परम-पद को पाने की इच्छा से जो मनुष्य ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करते हैं, उस विधि को तुझे संक्षेप में बतलाता हूँ। (११)
शरीर के सभी द्वारों को वश में करके तथा मन को हृदय में स्थित करके, प्राणवायु को सिर में रोक करके योग-धारणा में स्थित हुआ जाता है। (१२)
इस प्रकार ॐकार रूपी एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करके मेरा स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मनुष्य मेरे परम-धाम को प्राप्त करता है। (१३)
हे पृथापुत्र अर्जुन! जो मनुष्य मेरे अतिरिक्त अन्य किसी का मन से चिन्तन नहीं करता है और सदैव नियमित रूप से मेरा ही स्मरण करता है, उस नियमित रूप से मेरी भक्ति में स्थित भक्त के लिए मैं सरलता से प्राप्त हो जाता हूँ। (१४)
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मैं थ्योरी की बात नहीं प्रेक्टिकल की बात कर रहा हूँ | क्या कोई ऐसे योगी पुरुष अभी भी हैं जो अपनी देह की त्याग कर फिर बापस इसमें आ सकें ?
क्या अपनी भौतिक देह को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले और फिर उसे बापस ऊर्जा से पदार्थ में परिवर्तित कर सकने वाले योगी इस पृथ्वी पर आभी भी विराजमान हैं ?
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पुनश्चः :----- सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च |
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्‌ ||८:१२|| इस क्रिया को मैं जानना चाहता हूँ| इसके जानकार भी निश्चित रूप से होंगे ही|
२८ मार्च २०१९

हमारे धर्म व संस्कृति की रक्षा कैसे हो ? .....

हमारे धर्म व संस्कृति की रक्षा कैसे हो ? .....
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वर्तमान परिस्थितियों में हम सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, यह निश्चय कर के ही अपनी क्षमतानुसार हर कार्य पूरे मनोयोग से और अपना सर्वश्रेष्ठ करें| यह भाव रखें कि हम भगवान की प्रसन्नता के लिए ही हर कार्य कर रहे है, न कि किसी मनुष्य को प्रसन्न करने के लिए| धीरे धीरे भगवान को कर्ता बनाकर उनके उपकरण मात्र बन जाएँ| किसी की अनावश्यक आलोचना या निंदा न करें| जीवन से ईर्ष्या-द्वेष और अहंकार को मिटाने का प्रयास करते रहें| रात्रि को सोने से पूर्व नाम-स्मरण, जप, ध्यान आदि कर के ही सोयें| प्रातःकाल उठते ही परमात्मा का स्मरण करें| पूरे दिन परमात्मा की स्मृति निरंतर प्रयास करके बनाए रखें| पराये धन और पराई स्त्री/पुरुष कि कामना न करें| अच्छा साहित्य पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और कुसंगति से दूर रहे| स्वास्थ्यवर्धक अच्छा सात्विक भोजन लें| शराब और जूए से दूर रहें| पर्याप्त मात्रा में विश्राम करें| आयु के अनुसार शारीरिक व्यायाम कर के स्वस्थ रहें| समाज में अपने बालक-बालिकाओं को स्वस्थ व हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली बनायें|
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उपरोक्त सब बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार कर के और उस पर आचरण कर के ही हम धर्म की रक्षा कर पायेंगे, अन्यथा नहीं| धर्माचरण बहुत आवश्यक है क्योंकि विश्व की ही नहीं, अपने देश की भी कई आसुरी शक्तियाँ अपने राष्ट्र को ही तोड़ना चाहती हैं| धर्माचरण ही हमें बचा पायेगा| भगवान की भक्ति के प्रचार-प्रसार से ही जातिवाद टूटेगा, देशभक्ति जागृत होगी और कभी गृहयुद्ध की सी स्थिति नहीं आएगी| अपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्रधर्म और स्वाभिमान की रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! जय जननी जय भारत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०१९

देश में हरामखोरी की आदत न डालें .....

देश में हरामखोरी की आदत न डालें अन्यथा देश में वेनेज़ुएला जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी| वेनेज़ुएला दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में बहुत बड़ा देश है, जहाँ की जनसंख्या भी अधिक नहीं है| वहाँ भगवान का दिया सब कुछ है .... उपजाऊ भूमि, पर्याप्त जल और विश्व में खनिज तेल का सबसे बड़ा भण्डार| पर वहाँ अब स्थिति यह है कि भयानक भुखमरी और मारकाट मची हुई है|
वहाँ तेल के निर्यात से इतना धन बन जाता था कि वहां की सरकार ने जनता के लिए सब कुछ मुफ्त में कर दिया| वहाँ किसानों ने अनाज उगाना बंद कर दिया, मजदूरों ने मजदूरी करनी बंद कर दी क्योंकि राशन में अनाज, फल, सब्जी, दवाइयाँ आदि सब दूसरे देशों से आयातित होकर निःशुल्क मिल जाती थी| लोगों में काम करने की आदत ही समाप्त हो गयी| लोगों को बिना काम किये ही मुफ्त में मोटा वेतन मिल जाता था|
दुनियाँ में जब तेल के दाम गिरे तो सरकारी तेल कंपनियों की हालत खराब हो गयी| सरकार ने उधार में बाहर से राशन-पानी मंगाना शुरू किया अब यह स्थिति है कि कोई उस देश को कुछ भी देने की स्थिति में नहीं है| लोग एक रोटी के लिए एक दूसरे की ह्त्या कर रहे हैं| यह सब हुआ है लोगों को मुफ्तखोर बनाने से| लोग मेहनत करना, खेती करना और उद्योग-धंधे लगाना भूल चुके हैं|
यहाँ जैसे चुनावी वादे किये जा रहे हैं उनसे यह देश कहीं वेनेज़ुएला न बन जाए|

२७ मार्च २०१९

यतो धर्मस्ततो जयः ......

यतो धर्मस्ततो जयः ......
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मेरी दृष्टी में इस आंग्ल वर्ष २०१९ में होने वाला यह लोकसभा का चुनाव एक धर्मयुद्ध और स्वतंत्रता संग्राम है| महाभारत में विभिन्न सन्दर्भों में पचास बार से अधिक "यतो धर्मस्ततो जयः" वाक्य आया है| मैं अपने पूर्ण हृदय से भगवान से प्रार्थना कर रहा हूँ और नित्य करूँगा कि इस चुनाव में विजय धर्म के पक्ष की ही हो, और अधर्म का नाश हो| भगवान हमें इस योग्य बनाए और इतनी क्षमता दे कि हम धर्म की रक्षा कर सकें| भगवान ने भी वचन दिया है .....
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत| अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्||४:७||"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्| धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे||४:८||"
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हम अपना मत धर्म के पक्ष में ही दें| विजय वहीं होगी जहाँ धर्म होगा| मुझे पूर्ण विश्वास, श्रद्धा, और आस्था है कि भगवान के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का समय आ गया है| भगवान अपना वचन निभायेंगे| मैं सभी भारतवासियों की ओर से प्रार्थना करता हूँ ..... 'धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो|''
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जो मनुष्यता की हानि कर रहे हैं, जो गोबध का समर्थन कर रहे हैं, जो अपनी विचारधारा और पंथों की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए हिंसा कर रहे हैं, उन सब का नाश हो| जिस संस्कृति की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविंदसिंह, बन्दा बैरागी, भाई मतिदास, संभाजी आदि आदि, और स्वतन्त्रता संग्राम के लाखों बलिदानी भारतियों ने अपनी अप्रतिम आहुति दी, उस सनातन संस्कृति की रक्षा हो|
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विजय निश्चित रूप से धर्म की ही होगी, यह भगवान श्रीराम के वचन हैं| गोस्वामी तुलसीदासकृत रामचरितमानस के लंकाकाण्ड में से जिन्हें मैं उदधृत कर रहा हूँ .....

"रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।।
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।"
"महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।"
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मैं भगवान श्रीराम से प्रार्थना करता हूँ, जिहोनें आतताइयों के नाश के लिए धनुष धारण कर रखा है, वे भारतवर्ष की और धर्म की रक्षा करें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०१९

हम धर्मनिरपेक्षता से कैसे मुक्त हों ?

प्रश्न :-- हम धर्मनिरपेक्षता से कैसे मुक्त हों ?

उत्तर :-- हम धर्मशिक्षा के अभाव के कारण धर्मावलम्बी न होकर धर्मनिरपेक्ष हैं| धर्मनिरपेक्षता से मुक्त होने का एक ही उपाय है कि हम अपने धर्मग्रंथों का स्वाध्याय तो करें ही, साथ साथ तुलनात्मक रूप से अन्य मतों के ग्रंथों का भी गहन अध्ययन करें और समझें कि उनमें क्या लिखा है| फिर उनकी निष्पक्ष तुलना करें| अन्य कोई उपाय नहीं है| हर हिन्दू को चाहिए कि वह गीता को तो समझे ही, साथ साथ न्यू टेस्टामेंट के गोस्पेल और कुरान का भी गहन तुलनात्मक अध्ययन करे| बिना किसी विषय को जाने और समझे, किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिए| फिर "सर्वधर्म समभाव" और "धर्मनिरपेक्षता" का भूत उतर जाएगा|

२६ मार्च २०१९

एक स्वाभाविक अभीप्सा .....

एक स्वभाविक अभीप्सा है कि जगन्माता के अनंताकाश में विस्तृत होता ही रहूँ, कहीं कोई पृथकता ही न रहे| अन्य कोई अभिलाषा नहीं है| यह अनंतता और विस्तार ही मेरा जीवन है जिसे मैं परमशिव कहता हूँ| भौतिक, मानसिक व बौद्धिक स्तर पर तो कभी कुछ भगवान से अपेक्षा ही नहीं की, पर आध्यात्मिक स्तर पर भगवान ने जैसी भी मेरी पात्रता थी, उसके अनुसार छोटी से छोटी हर मनोकामना पूर्ण की है, अतः कोई शिकायत असंतोष या क्षोभ नहीं है| अब और कोई अपेक्षा ही नहीं रही है| जीवन से पूरी तरह संतुष्ट व तृप्त हूँ| मेरी समझने की जितनी क्षमता है, उसकी सीमा में तो कोई भी आध्यात्मिक रहस्य अब रहस्य नहीं रहा है| जिसका मुझे बोध नहीं है वह मेरी क्षमता से परे की बात है, अतः उसे जानने या पाने की अब कोई अभिलाषा नहीं है| भगवान ने जितनी ग्रहण करने की क्षमता दी है उसके अनुसार सब कुछ दिया| है| अतः उनका कृतज्ञ व आभारी हूँ|
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आध्यात्मिक स्तर पर यह सारी समष्टि मुझसे जुड़ी हुई है| पूरी सृष्टि मेरे साथ साथ ध्यान करती है| हर प्राणी मेरे साथ साथ ही सूक्ष्म प्राणायाम कर रहा है| मैं सांस लेता हूँ तो सारा ब्रह्मांड सांस लेता है, मैं यह भौतिक देह नहीं समस्त सृष्टि की मूलभूत ऊर्जा व प्राण हूँ|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२६ मार्च २०१९