Sunday, 31 March 2019

एक स्वाभाविक अभीप्सा .....

एक स्वभाविक अभीप्सा है कि जगन्माता के अनंताकाश में विस्तृत होता ही रहूँ, कहीं कोई पृथकता ही न रहे| अन्य कोई अभिलाषा नहीं है| यह अनंतता और विस्तार ही मेरा जीवन है जिसे मैं परमशिव कहता हूँ| भौतिक, मानसिक व बौद्धिक स्तर पर तो कभी कुछ भगवान से अपेक्षा ही नहीं की, पर आध्यात्मिक स्तर पर भगवान ने जैसी भी मेरी पात्रता थी, उसके अनुसार छोटी से छोटी हर मनोकामना पूर्ण की है, अतः कोई शिकायत असंतोष या क्षोभ नहीं है| अब और कोई अपेक्षा ही नहीं रही है| जीवन से पूरी तरह संतुष्ट व तृप्त हूँ| मेरी समझने की जितनी क्षमता है, उसकी सीमा में तो कोई भी आध्यात्मिक रहस्य अब रहस्य नहीं रहा है| जिसका मुझे बोध नहीं है वह मेरी क्षमता से परे की बात है, अतः उसे जानने या पाने की अब कोई अभिलाषा नहीं है| भगवान ने जितनी ग्रहण करने की क्षमता दी है उसके अनुसार सब कुछ दिया| है| अतः उनका कृतज्ञ व आभारी हूँ|
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आध्यात्मिक स्तर पर यह सारी समष्टि मुझसे जुड़ी हुई है| पूरी सृष्टि मेरे साथ साथ ध्यान करती है| हर प्राणी मेरे साथ साथ ही सूक्ष्म प्राणायाम कर रहा है| मैं सांस लेता हूँ तो सारा ब्रह्मांड सांस लेता है, मैं यह भौतिक देह नहीं समस्त सृष्टि की मूलभूत ऊर्जा व प्राण हूँ|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२६ मार्च २०१९

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