Thursday, 15 June 2017

परमात्मा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा .....

परमात्मा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा .....
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परमात्मा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मनुष्य की निम्न-प्रकृति है जो अवचेतन मन में राग-द्वेष और अहंकार के रूप में व्यक्त होती है| इससे निपटना मनुष्य के वश की बात नहीं है, चाहे कितनी भी दृढ़ इच्छा शक्ति और संकल्प हो| जहाँ राग-द्वेष व अहंकार होगा वहीं काम, क्रोध और लोभ भी स्वतः ही बिना बुलाये आ जाते हैं| ये मनुष्य को ऐसे चारों खाने चित्त पटकते हैं कि वह असहाय हो जाता है|
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बिना वीतराग हुए आध्यात्मिक प्रगति असम्भव है जिस के लिए परमात्मा की कृपा अत्यंत आवश्यक है| बिना प्रभुकृपा के एक कदम भी आगे बढना असम्भव है| यहीं भगवान की भक्ति, शरणागति और समर्पण काम आते हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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कृपा शंकर
१५ जून २०१६

हम परमात्मा में पूर्ण हैं.......

हम परमात्मा में पूर्ण हैं.......
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इस सत्य को वे ही समझ सकते हैं जो ध्यान साधना की गहराई में निज चेतना के विस्तार और समष्टि के साथ अपनी एकात्मता की कुछ कुछ अनुभूति कर चुके हैं| अपनी पूर्णता का अज्ञान ही हमें दुखी बनाता है| दुःख शब्द का अर्थ ही है जो आकाश तत्व से दूर है| सुख का अर्थ है जो आकाश तत्व के साथ है| आध्यात्मिक स्तर पर हम स्वयं को यह देह मानते हैं यही हमारी परिच्छिन्नता और सब प्रकार के दुःखों का कारण है|
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परमात्मा की पूर्णता का ध्यान करें और निज अहं को उसमें विलीन कर दें| अन्य कोई उपाय मेरी सीमित दृष्टि में नहीं है| यह छुरे की धार पर चलने वाला मार्ग है|
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मुझे भगवान ने इतनी पात्रता नहीं दी है कि इस विषय को गहराई से समझा सकूँ| फिर भी मैंने यह प्रयास किया है| अपनी अपनी गुरु-परम्परा के अनुसार परमात्मा पर ध्यान और वैराग्य का अभ्यास करें| हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध सिर्फ परमात्मा से ही है| अपनी चेतना को उन्हीं की चेतना से युक्त करने का सदा अभ्यास करते रहें|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

"मैं" "तुम" से पृथक नहीं हूँ .....

"मैं" "तुम" से पृथक नहीं हूँ .....
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"तुम" में और "मुझ" में कोई भेद नहीं है| "मैं" सदा तुम्हारा ही हूँ| जब "मैं" सदा तुम्हारा ही हूँ तो "मेरे" पास "मेरा" कहने को कुछ भी नहीं है| जो कुछ भी है वह "तुम" और "तुम्हारा" ही है| "मैं" और "मेरापन" एक भ्रम है| इतनी तो कृपा करना कि कभी कुछ माँगने की कामना जन्म ही न ले| "मैं" कोई मँगता-भिखारी नहीं हूँ, माँगने से एक पृथकता और भेद उत्पन्न होता है| माँगना एक व्यापार है, देना ही सच्चा प्रेम है|
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इस जीवन के केंद्र बिंदु हे परम प्रिय परब्रह्म परमात्मा "तुम" ही हो| लोकयात्रा के लिए दी हुई यह देह जिन अणुओं से निर्मित है, उसका एक एक अणु भी तुम्हारा ही है| जिन तत्वों से यह मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार निर्मित हुए हैं, वे सब तुम्हारे ही हैं| साधना के मार्ग पर दिया हुआ यह साधन भी तुम्हारा ही है| "तुम" और "मैं" एक हैं, इनमें कोई भेद नहीं है, कभी कोई भेद का झूठा भाव उत्पन्न ही न हो| ॐ तत्सत्| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१४ जून २०१७

ब्राह्मण के शास्त्रोक्त कर्म ...

ब्राह्मण के शास्त्रोक्त कर्म ... "वेदाभ्यासे शमे चैव आत्मज्ञाने च यत्नवान्" हैं :---
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आजकल इतने भयंकर मायावी आकर्षणों और गलत औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के पश्चात भी शास्त्रोक्त कर्मों को नहीं भूलना चाहिए| मनु महाराज ने ब्राह्मण के तीन कर्म बताए हैं ....."वेदाभ्यासे शमे चैव आत्मज्ञाने च यत्नवान्"| अर्थात अन्य सारे कर्मों को छोड़कर भी वेदाभ्यास, शम और आत्मज्ञान के लिए निरंतर यत्न करता रहे|
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पूरे भारत के अधिकाँश ब्राह्मणों की शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी संहिता की माध्यन्दिन शाखा है| इस का विधि भाग शतपथब्राह्मण है, जिसके रचयिता वाजसनेय याज्ञवल्क्य हैं| शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ सम्बन्धी सभी अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन है| जो समझ सकते हैं उन ब्राह्मणों को अपने अपने वेद का अध्ययन अवश्य करना चाहिए|
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यहाँ यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि वेदों के कर्मकांड, उपासनाकांड और ज्ञानकांड आदि को समझने में एकदम असमर्थ है| इस जन्म में तो यह मेरे प्रारब्ध में भी नहीं है| जब भी प्रभु की कृपा होगी तब वे इसका ज्ञान कभी न कभी अवश्य करायेंगे| अभी तो सूक्ष्म प्राणायाम, ध्यान और गायत्री जप ही मेरा वेदपाठ है|
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इन्द्रियों के शमन को 'शम' कहते हैं| चित्त वृत्तियों का निरोध कर उसे आत्म-तत्व की ओर निरंतर लगाए रखना भी 'शम' है| धर्म पालन के मार्ग में आने वाले हर कष्ट को सहन करना 'तप' है| यह भी ब्राह्मण का एक कर्त्तव्य है| जब परमात्मा से प्रेम होता है और उसे पाने की एक अभीप्सा (कभी न बुझने वाली तीब्र प्यास) जागृत होती है तब गुरुलाभ होता है| धीरे धीरे मुमुक्षुत्व और आत्मज्ञान की तड़प पैदा होती है| उस आमज्ञान को प्राप्त करने की निरंतर चेष्टा करना ही ब्राह्मण का परम धर्म है|
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हे परमशिव, आपकी कृपा ही मेरा एकमात्र आश्रय है| आपकी कृपा मुझ पर सदा बनी रहे और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
१२ जून २०१७