Thursday 15 June 2017

"मैं" "तुम" से पृथक नहीं हूँ .....

"मैं" "तुम" से पृथक नहीं हूँ .....
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"तुम" में और "मुझ" में कोई भेद नहीं है| "मैं" सदा तुम्हारा ही हूँ| जब "मैं" सदा तुम्हारा ही हूँ तो "मेरे" पास "मेरा" कहने को कुछ भी नहीं है| जो कुछ भी है वह "तुम" और "तुम्हारा" ही है| "मैं" और "मेरापन" एक भ्रम है| इतनी तो कृपा करना कि कभी कुछ माँगने की कामना जन्म ही न ले| "मैं" कोई मँगता-भिखारी नहीं हूँ, माँगने से एक पृथकता और भेद उत्पन्न होता है| माँगना एक व्यापार है, देना ही सच्चा प्रेम है|
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इस जीवन के केंद्र बिंदु हे परम प्रिय परब्रह्म परमात्मा "तुम" ही हो| लोकयात्रा के लिए दी हुई यह देह जिन अणुओं से निर्मित है, उसका एक एक अणु भी तुम्हारा ही है| जिन तत्वों से यह मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार निर्मित हुए हैं, वे सब तुम्हारे ही हैं| साधना के मार्ग पर दिया हुआ यह साधन भी तुम्हारा ही है| "तुम" और "मैं" एक हैं, इनमें कोई भेद नहीं है, कभी कोई भेद का झूठा भाव उत्पन्न ही न हो| ॐ तत्सत्| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१४ जून २०१७

1 comment:

  1. जो शाश्वत और अमृतमय है वही असली धन है| उसी को खोजने में सार्थकता है|

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