Thursday 15 June 2017

ब्राह्मण के शास्त्रोक्त कर्म ...

ब्राह्मण के शास्त्रोक्त कर्म ... "वेदाभ्यासे शमे चैव आत्मज्ञाने च यत्नवान्" हैं :---
>>>
आजकल इतने भयंकर मायावी आकर्षणों और गलत औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के पश्चात भी शास्त्रोक्त कर्मों को नहीं भूलना चाहिए| मनु महाराज ने ब्राह्मण के तीन कर्म बताए हैं ....."वेदाभ्यासे शमे चैव आत्मज्ञाने च यत्नवान्"| अर्थात अन्य सारे कर्मों को छोड़कर भी वेदाभ्यास, शम और आत्मज्ञान के लिए निरंतर यत्न करता रहे|
.
पूरे भारत के अधिकाँश ब्राह्मणों की शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी संहिता की माध्यन्दिन शाखा है| इस का विधि भाग शतपथब्राह्मण है, जिसके रचयिता वाजसनेय याज्ञवल्क्य हैं| शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ सम्बन्धी सभी अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन है| जो समझ सकते हैं उन ब्राह्मणों को अपने अपने वेद का अध्ययन अवश्य करना चाहिए|
.
यहाँ यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि वेदों के कर्मकांड, उपासनाकांड और ज्ञानकांड आदि को समझने में एकदम असमर्थ है| इस जन्म में तो यह मेरे प्रारब्ध में भी नहीं है| जब भी प्रभु की कृपा होगी तब वे इसका ज्ञान कभी न कभी अवश्य करायेंगे| अभी तो सूक्ष्म प्राणायाम, ध्यान और गायत्री जप ही मेरा वेदपाठ है|
.
इन्द्रियों के शमन को 'शम' कहते हैं| चित्त वृत्तियों का निरोध कर उसे आत्म-तत्व की ओर निरंतर लगाए रखना भी 'शम' है| धर्म पालन के मार्ग में आने वाले हर कष्ट को सहन करना 'तप' है| यह भी ब्राह्मण का एक कर्त्तव्य है| जब परमात्मा से प्रेम होता है और उसे पाने की एक अभीप्सा (कभी न बुझने वाली तीब्र प्यास) जागृत होती है तब गुरुलाभ होता है| धीरे धीरे मुमुक्षुत्व और आत्मज्ञान की तड़प पैदा होती है| उस आमज्ञान को प्राप्त करने की निरंतर चेष्टा करना ही ब्राह्मण का परम धर्म है|
.
हे परमशिव, आपकी कृपा ही मेरा एकमात्र आश्रय है| आपकी कृपा मुझ पर सदा बनी रहे और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
१२ जून २०१७

2 comments:

  1. आत्मज्ञान को प्राप्त करने की निरंतर चेष्टा करना ही ब्राह्मण का परम धर्म है|

    ReplyDelete
  2. परस्त्री और पर धन की कामना, दूसरो का अहित और अधर्म की बाते सोचना हमारे मन के पाप हैं, जिनका दंड भुगतना ही पड़ता है| ऐसे ही असत्य और अहंकार युक्त वचन, पर निंदा, हिंसा, अभक्ष्य भक्षण, और व्यभिचार हमारे शरीर के पाप हैं, जिनका भी दंड भुगतना ही पड़ता है| वर्तमान समय में अन्नदान, जलदान और वृक्षारोपण परम पुण्यदायी हैं|

    ReplyDelete