विश्व के विनाश और तृतीय विश्वयुद्ध या भविष्य में होने वाले किसी भी युद्ध का कारण मनुष्य का द्वेष (घृणा) और लोभ होगा .....
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यह लेख लिखते समय मेरे मन में किसी के
प्रति भी कोई दुराग्रह, लोभ, घृणा या कोई द्वेष नहीं है| पूर्ण जिम्मेदारी
और अपने निज अनुभवों से लिख रहा हूँ| मुझे योरोप के अनेक देशों, अमेरिका,
कनाडा, और मुस्लिम देशों में सऊदी अरब, मिश्र, तुर्की, मोरक्को और दक्षिणी
यमन जाने का अवसर मिला है| एशिया के मुस्लिम देशों में बांग्लादेश, मलेशिया
और इंडोनेशिया भी जाने का अवसर मिला है| पूर्व सोवियत संघ में मध्य एशिया
के अनेक मुसलमानों से मेरा परिचय था| मैंने रूसी भाषा जिस अध्यापिका से
सीखी वह एक तातार मुसलमान थी| युक्रेन के ओडेसा नगर में एक अति विदुषी
वयोवृद्ध तातार मुस्लिम महिला ने मुझे एक बार भोजन पर अपने घर निमंत्रित
किया था| ये महिला दस वर्ष तक चीन में एक राजनीतिक बंदी रह चुकी थी| उनसे
काफी कुछ जानने का अवसर मिला| अतः मैं योरोप के देशों और मुस्लिम विश्व की
मानसिकता को बहुत अच्छी तरह समझता हूँ और अपने अध्ययन से प्रथम और द्वितीय
विश्व युद्ध के पूर्व की स्थिति से भी अवगत हूँ| आज लगभग वैसी ही स्थिति बन
रही है जो प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व थी| विश्व के भूगोल का भी मुझे बहुत
अच्छा ज्ञान है और विश्व के इतिहास का भी अल्प अध्ययन है|
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इस
समय पृथ्वी पर दो तरह की शक्तियां काम कर रही हैं ..... एक तो वह जो विश्व
को युद्ध में धकेलना चाहती है, और दूसरी वह जो युद्ध को टालना चाहती है|
वर्तमान में मनुष्य की मानसिकता, चिंतन और विचार इतने दूषित हो गए हैं कि
युद्ध अपरिहार्य सा ही लगता है| अपने विचारों और सोच को सात्विक बना कर ही
हम विनाश को टाल सकते हैं| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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कोई मेरी बात
को माने या न माने पर यह सत्य है कि विश्व की दुर्गति का एकमात्र कारण
मनुष्य जाति के हिंसा, लोभ, अहंकार और वासना के भाव ही हैं| मनुष्य इतना
हिंसक और भोगी हो गया है कि वह स्वयं ही स्वयं के विनाश को आमंत्रित कर रहा
है| मनुष्य का स्वार्थी होना भी प्रबल हिंसा ही है|
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कोई भी विचार और संकल्प जिस पर आप दृढ़ रहते हैं वह विश्व के घटनाक्रम पर निश्चित रूप से प्रभाव डालता है|
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वर्तमान में विश्व में हो रहा घटनाक्रम तृतीय विश्वयुद्ध का कारण बन सकता
है| अमेरिका के स्वार्थ इतने अधिक हैं कि वह भविष्य में युद्ध को नहीं टाल
पायेगा| जर्मनी की आतंरिक परिस्थितियाँ उसे तटस्थ रखेंगी| जर्मनी में इस
समय इतनी क्षमता नहीं है कि वह कोई युद्ध लड़ सके|
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इस समय मध्य पूर्व में तनाव का कारण .....
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच की घृणा,
जेहादी मानसिकता,
ईसाइयों व मुसलमानों में द्वेष,
और पश्चिमी देशों व अमेरिका की तेल के स्त्रोतों पर अधिकार बनाए रखने की लालसा है|
इसी तरह दक्षिण चीन सागर में उस क्षेत्र के देशों के आर्थिक हित आपस में
टकरा रहे हैं जो कभी भी युद्ध का कारण बन सकते हैं| भारत के भी आर्थिक हित
उस क्षेत्र में हैं|
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अमेरिका व कुछ पश्चिमी देशों ने तेल उत्पादक
देशों पर अपना वर्चस्व बनाकर रखा है| ये चाहते हैं कि जब तक यहाँ पर तेल
है तब तक इनका वर्चस्व बना रहे| वे अरब देशों को बहुत बुरी तरह निचोड़ कर ही
छोड़ेंगे|
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इराक में शिया वहाँ की कुल आबादी का लगभग पैंसठ
प्रतिशत हैं, पर विगत में वहाँ का शासन सुन्नियों के हाथों में रहा था
जिन्होंने शियाओं को दबाकर रखा| जब ईरान में इस्लामी क्रांति हुई तब वहाँ
के नए शासकों ने वहाँ के राजा शाह पहलवी को तो भगा ही दिया, साथ साथ
अमेरिका को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया| अमेरिका ने अपमानित महसूस कर ईरान
से बदला लेने के लिए इराक को भारी मात्रा में हथियार दिए और शतअलअरब पर
अधिकार के लिए इराक व ईरान को आपस में लड़ाया जिसमें दोनों देशों के अनगिनत
लाखों लोग मारे गए| इस युद्ध से किसी को भी लाभ नहीं हुआ था| इराक को
अमेरिका ने ही शक्तिशाली बनाया था| जब इराक ने अमेरिकी वर्चस्व को मानने से
मना कर दिया तो अमेरिका ने बिलकुल झूठे बहाने बनाकर ईराक पर आक्रमण कर
दिया और उस देश को बर्बाद कर दिया| इससे पूर्व के घटनाक्रम में इराक को
कुवैत पर अधिकार करने के लिए भी अमेरिका ने ही उकसाया था| अमेरिका के झाँसे
में आकर इराक ने कुवैत पर अधिकार कर लिया जिससे अमेरिका को इराक पर आक्रमण
करने का बहाना मिल गया| उस युद्ध में अमेरिका ने एक पाई भी खर्च नहीं की,
सारा खर्च सऊदी अरब से वसूल किया| अपने देश के जनमत के दबाब के कारण
अमेरिका जब इराक से हटा तो वहाँ चुनाव करवाए जिससे बहुमत के कारण शिया
लोगों का शासन स्थापित हो गया और सुन्नियों में असंतोष फ़ैल गया|
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सीरिया में स्थिति इसके विपरीत है| वहाँ सुन्नी बहुमत है पर शासन एक शिया
तानाशाह असद के हाथ में है जो सुन्नियों को क्रूरता से दबा कर रखता है|
सुन्नियों ने असद के विरुद्ध विद्रोह किया| अमेरिका भी असद को हटाना चाहता
है इसलिए उसने सुन्नियों की सहायता की| पर असद ने अपने समर्थन में अमेरिका
के प्रतिद्वंद्वी रूस को अपने देश में बुला लिया| रूस ने सीरिया में अपने
सैन्य अड्डे स्थापित कर लिए और खुल कर असद के समर्थन में आ गया| अप्रत्यक्ष
रूप से इस कार्य में ईरान ने पूरा सहयोग किया|
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असद के विरोध में
अमेरिका ने सीरिया के सुन्नी मुसलमानों को उकसाया जिन्होनें इराक के
सुन्नी मुसलमानों के साथ मिलकर ISIS (इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया)
की स्थापना कर ली| इस दुर्दांत आतंकी संगठन को आरम्भ में शस्त्रास्त्र
अमेरिका ने ही दिए| ISIS अमेरिका की सहायता से खूब शक्तिशाली बन गया| उसने
सीरिया और इराक के बहुत बड़े भूभाग और तेल के कुओं पर अधिकार कर लिया और
बहुत समृद्ध और प्रभावशाली बन गया|
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ISIS ने इराक की सेना को भगा
दिया और उसके हज़ारों शिया सैनिकों की ह्त्या कर दी| फिर शक्तिशाली होकर
ISIS अपनी मनमानी पर उतर आया और उसने शिया व अन्य गैर सुन्नियों की ह्त्या
का अभियान चला दिया| उसने लाखों शियाओं, यज़ीदियों और कुर्दों की निर्ममता
से ह्त्या कर दी व उनकी महिलाओं और बच्चों को गुलाम बनाकर बेच दिया| इससे
शिया और सुन्नियों में एक स्थायी विभाजन और घृणा हो गयी है|
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ISIS
यहीं पर नहीं रुका| उसने अपने नक्शों में पूरा योरोप, भारत, श्रीलंका,
म्यांमार और थाईलैंड तक को दिखा दिया और पूरे विश्व पर वहाबी सुन्नियों के
राज्य का संकल्प कर डाला| ISIS का लक्ष्य है कि या तो सभी उसके अनुयायी बन
जाएँ या उसके गुलाम बनने या मरने के लिए तैयार हो जाएँ| उसका लक्ष्य
सम्पूर्ण विश्व पर अपनी सत्ता स्थापित करने का है|
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जब उसने
ईसाइयों की ह्त्या करनी आरम्भ कर दी तब अमेरिका ने उसके विरुद्ध आधे मन से
कारवाई आरम्भ कर दी| अमेरिका कभी भी ISIS को समाप्त नहीं करना चाहता था, वह
सिर्फ उसका उपयोग करना चाहता था| यहाँ यह बताना चाहूंगा कि जब लेबनान के
गृहयुद्ध में अधिकांश ईसाईयों की वहाँ के मुस्लिम चरम पंथियों ने ह्त्या कर
दी थी तब से योरोप में ईसाईयों और मुसलमानों के मध्य में भी घृणा की एक
दीवार खिंच गयी है|
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एक बार दो बिल्लियाँ एक रोटी के लिए लड़ पड़ीं|
उन्होंने एक बन्दर को आधी आधी रोटी बराबर बाँटने के लिए न्यायाधीश बनाया|
बन्दर ने वह रोटी आधी आधी कर के एक तराजू के दोनों पलड़ों पर रख दी| जिधर
पलड़ा भारी होता उधर से बन्दर रोटी तोड़ कर खा जाता| इस तरह बन्दर सारी रोटी
खा गया और बिल्लियों को कुछ भी नहीं मिला| इस कहानी से आप सब कुछ समझ सकते
हैं| अमेरिका वह पुलिस और न्यायाधीश है जो दुनिया को लड़ाकर उनसे कमाई कर
रहा है|
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इस लेख में मैंने कम से कम शब्दों में मध्यपूर्व की
स्थिति को स्पष्ट कर दिया है जो एक विश्व युद्ध में बदल सकती है| एक बात
याद रखें कि जो दूसरों को तलवार से काटता है वह स्वयं भी तलवार से ही काटा
जाता है|
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जो सर्वश्रेष्ठ योगदान आप कर सकते हो वह यह है कि .....
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(१) भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से आप स्वयं शक्तिशाली बनो| भगवान
सिर्फ मार्गदर्शन कर सकते हैं, शक्ति दे सकते हैं पर आपको स्वयं की रक्षा
तो स्वयं को ही करनी होगी| अलग से आपकी रक्षा के लिए भगवान नहीं आयेंगे|
भगवान उसी की रक्षा करेंगे जो स्वयं की रक्षा करेगा|
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(२) स्वयं
के जीवन में परमात्मा को केंद्रबिंदु बनाओ| राग, द्वेष और अहंकार से ऊपर
उठकर निरंतर परमात्मा की चेतना में रहने का अभ्यास करो|
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(३) नित्य समष्टि यानि सब के कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना करो|
जब अनेक लोग मिलकर एक साथ अपने हाथ उठाकर सब के कल्याण की प्रार्थना करते हैं तब निश्चित रूप से उसका प्रभाव पड़ता है|
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सबका कल्याण हो, सब सुखी रहें, कोई भूखा, बीमार या दरिद्र न रहे | सब में
पारस्परिक सद्भाव और प्रेम हो | सब में प्रभु के प्रति अहैतुकी परम प्रेम
जागृत हो |
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ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव यद् भद्रं तन्न्वासुव | ॐ शांति शांति शांतिः ||
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कृपा शंकर
१८ नवम्बर २०१५