Wednesday, 23 November 2016

साधू, सावधान ! ,,,,,

साधू, सावधान !
मैं जब परमात्मा के अतिरिक्त अन्य बातों पर अधिक ध्यान देता हूँ तो यह माया की महिमा ही है जो मुझे भटका रही है|

वास्तव में मेरे अन्तःकरण में सिवाय परमात्मा के अन्य कुछ भी नहीं रहना चाहिए|
मैं जब अन्य बातें करता हूँ तब यह मेरा भटकाव ही है| अब निरंतर सावधान रहना होगा| साधू, सावधान !
यह "मैं" भी एक भटकाव है क्योंकि जो आत्मा में रमण करता है उसके लिए "मैं" का कोई महत्व नहीं है|

(मेरी अच्छी बातों पर ही ध्यान दीजिये, बुरी बातों पर नहीं | परमात्मा के विस्मरण से बुरी बात अन्य कोई नहीं है|)

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