Wednesday 23 November 2016

संधिक्षणों में सर्वश्रेष्ठ क्षण ......

पुनर्प्रेषित (Re posted)
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संधिक्षणों में सर्वश्रेष्ठ क्षण ......
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"संध्या" हमारी साधना का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त होता है|
संधिक्षणों में की गयी साधना को "संध्या" कहते हैं|
संधिक्षणों में मन्त्रचेतना अति प्रबल रहती है और साधना में सिद्धि भी आसानी से मिल जाती है|
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प्रातःकाल , मध्याह्न, सायंकाल, और मध्यरात्रि ये चार सन्धिक्षण संध्याकाल कहलाते हैं|
इन चारों में मध्यरात्रि की संध्या सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक फलदायी है| इसे तुरीय संध्या भी कहते हैं| रात्रि को घर के सब सदस्य जब सो जाएँ तब घर में किसी भी प्रकार का शोरगुल या व्यवधान नहीं होता| अर्धरात्रि वैसे भी निःस्तब्ध और शांत होती है| उस समय चुपके से उठकर एकांत में बैठकर पूर्ण भक्ति से परमात्मा का ध्यान करना चाहिए| जो मंत्रसाधना करते हैं उन्हें इस काल में खूब मंत्र जपना चाहिए|
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जब परमात्मा के प्रति अहैतुकी परमप्रेम जागृत हो जाए तब कर्मकांड का कोई महत्व नहीं है| शरणागत होकर पूर्ण प्रेम (भक्ति) से समर्पित होने का निरंतर प्रयास ही साधना है| परमात्मा को उपलब्ध होने के अतिरिक्त हमें और कुछ भी नहीं चाहिए| हमारा समर्पण सिर्फ परमात्मा के प्रति है| किसी भी तरह की अन्य कोई कामना आये तो उसे विष के सामान त्याग देना चाहिए| परमात्मा की इच्छा ही हमारी इच्छा है और उसकी कामना ही हमारी कामना है|
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साधना में कोई भी कठिनाई आये तो उसके निराकरण के लिए भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए| प्रभु का चिंतन और ध्यान इतना गहन हो कि प्रभु ही हमारी चिंता करें| हमारी चिंता सिर्फ प्रभु की ही हो|
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परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी ना देखें, अन्य कहीं भी दृष्टी ना डालें, हमारा ज्वलन्त लक्ष्य सदा हमारे सामने रहे| साधना इतनी गहन हो कि साध्य, साधन और साधक एक हो जाएँ| कहीं भी कोई भेद ना रहे| शुभ कामनाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


पुनश्चः :---- आते-जाते और जाते-आते साँस के मध्य का क्षण भी योगियों के लिए सन्धिक्षण होता है| इसलिए हर साँस पर परमात्मा का ध्यान होना चाहिए|

19 नवम्बर 2015

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