Wednesday 23 November 2016

बलि किसकी दें ? .... बलि रहस्य .....

बलि किसकी दें ? .... बलि रहस्य .....
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हम क़ुरबानी या बलि किस की दें ? इस विषय पर विचार करते हैं|
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(1) सर्वप्रथम तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि हमारे उपास्य सिर्फ परमात्मा हैं, कोई देवी-देवता नहीं| देवी-देवता इसी सृष्टि के ही भाग हैं और उनका एक निर्धारित कार्य है| यज्ञ में हवि देकर हम उन्हें शक्ति प्रदान कर उनकी सहायता ले सकते हैं, पर उनकी उपासना नहीं| उपासना सिर्फ परमात्मा की ही होती है|
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(2) अपनी वृत्ति को परमात्मा के साथ निरंतर एकाकार करना, यानि अभेदानुसंधान ही उपासना है| इसका शाब्दिक अर्थ है ... पास में बैठना| अकामता ही तृप्ति है| कामना चित्त का धर्म है और उसका आश्रय अंतःकरण है| चित्त की वृत्तियाँ ही वे अज्ञान रूपी पाश हैं जो हमें बाँधकर पशु बनाती हैं| जहाँ इनको आश्रय मिलता है उस अंतःकरण के चार पैर हैं .... मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार|
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(3) ज्ञान रूपी खड़ग से इस अज्ञान रूपी पशु का वध ही वास्तविक बलि देना यानि कुर्बानी है, किसी निरीह प्राणी की ह्त्या नहीं| परमात्मा को पूर्ण समर्पण ही वास्तविक प्रसाद है| इसके लिए किसी श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन प्राप्त कर उपासना करनी पडती है|
यह है बलि का रहस्य|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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