Wednesday 23 November 2016

मात्र आध्यात्मिक/धार्मिक पुस्तकें/लेख पढने से या मात्र प्रवचन सुनने से कुछ नहीं होगा .....

मात्र आध्यात्मिक/धार्मिक पुस्तकें/लेख पढने से या मात्र प्रवचन सुनने से कुछ नहीं होगा|
सत्य का बोध स्वयं करना होगा, दूसरा कोई यह नहीं करा सकता|
माया के वशीभूत होकर हम निरंतर भ्रमित हो रहे हैं|
सच्चिदानंद के प्रति पूर्ण परम प्रेम जागृत कर उनको पूर्ण समर्पित होने का निरंतर प्रयास ही साधना है और पूर्ण समर्पण ही लक्ष्य है|
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नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है| अन्यथा परमात्मा को पाने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है| मन पर निरंतर मैल चढ़ता रहता है जिस की नित्य सफाई आवश्यक है|
सप्ताह में एक दिन (हो सके तो गुरुवार को) अन्य दिनों से कुछ अधिक ही समय परमात्मा को देना चाहिए| जो भी समय हम परमात्मा के साथ बिताते हैं, वह सबसे अधिक मुल्यवान है| अतः कुछ अधिक समय अपनी व्यक्तिगत साधना में बिताएँ|
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हे सच्चिदानंद गुरु रूप परम ब्रह्म आपको नमन !
मेरे कूटस्थ चैतन्य में आप निरंतर हैं| मेरी हर साँस, मेरी हर सोच, मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व आप ही हैं| आपको बारंबार नमन !

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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