Sunday, 29 December 2024

आने वाले ३१ दिसंबर को निशाचर-रात्रि है| सभी को निशाचर-रात्री की शुभ कामनाएँ ...

 आने वाले ३१ दिसंबर को निशाचर-रात्रि है| सभी को निशाचर-रात्री की शुभ कामनाएँ ...

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वैसे तो हर दिन 'नववर्ष' है, दूसरे शब्दों में ..... "दिन को होली‚ रात दिवाली‚ रोज मनाती मधुशाला"| आने वाले ३१ दिसंबर को निशाचर-रात्रि है, बच कर रहें| भगवान सब का कल्याण करें| इस रात्रि को निशाचर लोग मदिरापान, अभक्ष्य भोजन, फूहड़ नाच गाना, और अमर्यादित आचरण करते हैं| "निशा" रात को कहते हैं, और "चर" का अर्थ होता है चलना-फिरना या खाना| जो लोग रात को अभक्ष्य आहार लेते हैं, या रात को अनावश्यक घूम-फिर कर आवारागर्दी करते हैं, वे निशाचर हैं| रात्रि को या तो पुलिस ही गश्त लगाती है, या चोर-डाकू, व तामसिक लोग ही घूमते-फिरते हैं| जिस रात भगवान का भजन नहीं होता वह राक्षस-रात्रि है, और जिस रात भगवान का भजन हो जाए वह देव-रात्रि है| ३१ दिसंबर की रात को लगभग पूरी दुनिया ही निशाचर बन जाएगी| अतः बच कर रहें, सत्संग का आयोजन करें या भगवान का ध्यान करें| सबको शुभ कामनाएँ| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
२९ दिसंबर २०१९

मूर्ख कौन है? ---

 एक बार राजाभोज की रानी और पंडित माघ की पत्नी दोनों खड़ी-खड़ी बातें कर रही थीं| राजा भोज ने उनके समीप जाकर उनकी बातें सुनने के लिए अपने कान लगा दिए| यह देख माघ की पत्नी सहसा बोलीं -- "आओ मूर्ख!"| राजा भोज तत्काल वहाँ से चले गए| वे जानना चाहते थे कि उन्होंने क्या मूर्खता की है| अगले दिन राजसभा में पंडित माघ पधारे तो राजा भोज ने "आओ मूर्ख" कह कर उनका स्वागत किया| वहाँ उपस्थित किसी भी विद्वान में प्रतिवाद करने का साहस नहीं था| यह सुनते ही पंडित माघ बोले ---

"खादन्न गच्छामि, हसन्न जल्पे, गतं न शोचामि, कृतं न मन्ये |
द्वाभ्यां तृतीयो न भवामि राजन् , किं कारणं भोज! भवामि मूर्ख: ||"
अर्थात् मैं खाता हुआ नहीं चलता, हँसता हुआ नहीं बोलता, बीती बात की चिंता नहीं करता, और जहाँ दो व्यक्ति बात करते हों, उनके बीच में नहीं जाता| फिर मुझे मूर्ख कहने का क्या कारण है?
(O, King! I never eat while standing or walking, speak while laughing, never repent for what is gone in the past, never boast about my achievements, never interfere in other's talk, so how can you say I am a fool?)
राजा ने अपनी मूर्खता का रहस्य समझ लिया| वे तत्काल कह उठे -- "आओ विद्वान!"
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केवल शिक्षण या अध्ययन से विद्वत्ता नहीं आती| विद्वत्ता आती है-- नैतिक मूल्यों को आत्मगत करने से| लगभग सभी समारोहों में आजकल हम लोग खड़े होकर भोजन करते हैं, यह हमारी मूर्खता ही है|
२९ दिसंबर २०२०

यूक्रेन-रूस युद्ध और अमेरिका --

 भारत की टीवी समाचार मीडिया चूंकि लगभग अमेरिका द्वारा नियंत्रित है, इसलिए अधिकांश समाचार अमेरिका द्वारा निर्देशित होते हैं। सही समाचार बड़ी कठिनता से प्राप्त हो रहे हैं। इस समय एक बहुत बड़ी कूटनीतिक हलचल हो रही है। रूस, यूक्रेन, अमेरिका और ब्रिटेन -- भारत को युद्ध-विराम के लिए मध्यस्थ बनाना चाहते हैं। यह भारत की एक कूटनीतिक विजय की संभावना है, या कुछ और?

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वास्तव में यह युद्ध अमेरिका (USA) और ब्रिटेन द्वारा रूस के विरुद्ध चल रहा है। यूक्रेन तो मात्र एक मोहरा है। इसका उद्देश्य रूस को नष्ट करना है। जो मर रहे हैं, वे यूक्रेनी हैं, अमेरिकी नहीं। अमेरिका अब अपने आदमियों को नहीं मरा सकता, क्योंकि उसे अपने जनमानस के नाराज होने का भय है। ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति अब इतनी अच्छी नहीं है कि वह इस युद्ध को जारी रख सके। अमेरिका की भी आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि विश्व के अनेक देशों ने डॉलर का उपयोग करना बंद कर दिया है। अमेरिका की आर्थिक शक्ति के पीछे डॉलर की विनिमय दर है। विश्व के अधिकांश देश यदि डॉलर का उपयोग करना बंद कर दें तो अमेरिका एक आर्थिक शक्ति नहीं रहेगा, और उसकी दादागिरी समाप्त हो जाएगी। अमेरिका में २०२४ में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं, जिसके लिए चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनी दावेदारी का ऐलान कर दिया है। अमेरिका को इस युद्ध से बहुत अधिक नुकसान हो रहा है, क्योंकि सारे अस्त्र-शस्त्र तो अमेरिका ही दे रहा है। यूक्रेन की आर्थिक सहायता भी उसे करनी पड़ रही है। अमेरिका के हथियार अब बिकने कम हो गए हैं, क्योंकि अन्य भी अनेक देश अब हथियार बना कर बेचने लगे हैं। विश्व का पूरा ड्रग माफिया, और नाजी शक्तियाँ अमेरिका नियंत्रित है। वे बड़े क्रूर हत्यारे हैं। इस युद्ध की शुरुआत भी क्रूर ड्रग माफिया और नाजी शक्तियों द्वारा कराई गई थी। इस विषय पर पहले लिख चुका हूँ।
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वास्तविकता यह है कि अमेरिका स्वयं इस युद्ध में बर्बाद हो रहा है। रूस को बाध्य कर उसने यह युद्ध तो आरंभ करवा दिया, लेकिन इस से बाहर कैसे निकला जाए, यह उसे समझ में नहीं आ रहा है। वह भारत को लपेटे में लेना चाहता है। देखिए अब आगे क्या होता है।
कृपा शंकर
२९-१२-२०२२

(1) समर्पण और शरणागति में क्या अंतर है? (2) मेरे द्वारा सबसे बड़ी सेवा क्या हो सकती है ?

(प्रश्न) : --- समर्पण और शरणागति में क्या अंतर है?
(उत्तर) : -- शरणागति में कर्ताभाव और पृथकता का बोध रहता है, जब कि समर्पण में न तो कर्ताभाव रहता है, और न ही पृथकता का बोध। शरणागति एक कर्म है, जब कि समर्पण उसका फल है। समर्पण -- ब्रह्मज्ञान होता है। समर्पित व्यक्ति ब्रह्मज्ञ होता है, उसकी चेतना में परमात्मा से कोई भेद नहीं होता। धर्म और अधर्म दोनों से ऊपर उठकर, परमात्मा की चेतना में स्थिति -- यानि परमात्मा से अन्य कुछ भी नहीं है, -- समर्पण कहलाता है। यह आत्मज्ञान है। यह आत्मज्ञान ही मोक्ष (केवल्य) यानि परम कल्याण है। समर्पण -- अनुभूति का विषय है, बुद्धि-विलास का नहीं।
बिना किसी पूर्वाग्रह के परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण हो। यह समर्पण सिर्फ बातों से या संकल्प से नहीं होगा। इसके लिए भक्तिपूर्वक दीर्घकाल तक गहन साधना करनी होती है। परमात्मा को वे ही समर्पित हो सकते हैं, जिन पर परमात्मा की विशेष कृपा हो। .
(प्रश्न) :-- मेरे द्वारा सबसे बड़ी सेवा क्या हो सकती है ? (उत्तर) :-- प्रकृति ने अपने नियमानुसार जहाँ भी मुझे रखा है, उससे मुझे कोई शिकायत नहीं है। पूर्वजन्मों के कर्मानुसार मेरा यह जीवन निर्मित हुआ। भविष्य की कोई कामना नहीं है। हृदय में यह गहनतम और अति अति प्रबल अभीप्सा अवश्य है कि यदि पुनर्जन्म हो तो मैं इस योग्य तो हो सकूँ कि भगवान को पूर्णरूपेण समर्पित होकर, उनकी अनन्य-अव्यभिचारिणी-भक्ति सभी के हृदयों में जागृत कर सकूँ। भगवान की पूर्ण अभिव्यक्ति मुझ में हो। किसी भी कामना का जन्म न हो।

"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी। विवक्तदेशसेवित्वरतिर्जनसंसदि॥१३:११॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)

कृपा शंकर
२९ दिसंबर २०२३