भारत की टीवी समाचार मीडिया चूंकि लगभग अमेरिका द्वारा नियंत्रित है, इसलिए अधिकांश समाचार अमेरिका द्वारा निर्देशित होते हैं। सही समाचार बड़ी कठिनता से प्राप्त हो रहे हैं। इस समय एक बहुत बड़ी कूटनीतिक हलचल हो रही है। रूस, यूक्रेन, अमेरिका और ब्रिटेन -- भारत को युद्ध-विराम के लिए मध्यस्थ बनाना चाहते हैं। यह भारत की एक कूटनीतिक विजय की संभावना है, या कुछ और?
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वास्तव में यह युद्ध अमेरिका (USA) और ब्रिटेन द्वारा रूस के विरुद्ध चल रहा है। यूक्रेन तो मात्र एक मोहरा है। इसका उद्देश्य रूस को नष्ट करना है। जो मर रहे हैं, वे यूक्रेनी हैं, अमेरिकी नहीं। अमेरिका अब अपने आदमियों को नहीं मरा सकता, क्योंकि उसे अपने जनमानस के नाराज होने का भय है। ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति अब इतनी अच्छी नहीं है कि वह इस युद्ध को जारी रख सके। अमेरिका की भी आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि विश्व के अनेक देशों ने डॉलर का उपयोग करना बंद कर दिया है। अमेरिका की आर्थिक शक्ति के पीछे डॉलर की विनिमय दर है। विश्व के अधिकांश देश यदि डॉलर का उपयोग करना बंद कर दें तो अमेरिका एक आर्थिक शक्ति नहीं रहेगा, और उसकी दादागिरी समाप्त हो जाएगी। अमेरिका में २०२४ में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं, जिसके लिए चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनी दावेदारी का ऐलान कर दिया है। अमेरिका को इस युद्ध से बहुत अधिक नुकसान हो रहा है, क्योंकि सारे अस्त्र-शस्त्र तो अमेरिका ही दे रहा है। यूक्रेन की आर्थिक सहायता भी उसे करनी पड़ रही है। अमेरिका के हथियार अब बिकने कम हो गए हैं, क्योंकि अन्य भी अनेक देश अब हथियार बना कर बेचने लगे हैं। विश्व का पूरा ड्रग माफिया, और नाजी शक्तियाँ अमेरिका नियंत्रित है। वे बड़े क्रूर हत्यारे हैं। इस युद्ध की शुरुआत भी क्रूर ड्रग माफिया और नाजी शक्तियों द्वारा कराई गई थी। इस विषय पर पहले लिख चुका हूँ।
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वास्तविकता यह है कि अमेरिका स्वयं इस युद्ध में बर्बाद हो रहा है। रूस को बाध्य कर उसने यह युद्ध तो आरंभ करवा दिया, लेकिन इस से बाहर कैसे निकला जाए, यह उसे समझ में नहीं आ रहा है। वह भारत को लपेटे में लेना चाहता है। देखिए अब आगे क्या होता है।
कृपा शंकर
२९-१२-२०२२
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