Wednesday, 8 January 2020

साधना में तीन सबसे बड़ी बाधायें हैं .....

♦️साधना में तीन सबसे बड़ी बाधायें हैं .....

🔹(१) यश यानि प्रसिद्धि की चाह,
🔹(२) दीर्घसूत्रता यानि कार्य को आगे के लिए टालने की प्रवृत्ति, और
🔹(३) उत्साह का अभाव|

♥️सभी बाधाओं को दूर करने के लिए दो ही उपाय हैं .....
♦️ (१) सात्विक आहार व शास्त्रोक्त विधि से भोजन,
♦️(२)कुसंग का त्याग व निरंतर सत्संग|

🔹भोजन पूरी तरह से सात्विक होना चाहिए| हर किसी के हाथ का बना हुआ, या हर किसी के साथ बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए| भोजन करने की शास्त्रोक्त विधि है उसका पालन करना चाहिए|

♦️किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग अनिवार्य है| कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति जो हमें हरिः से विमुख करती है, उसका दृढ़ निश्चय से अविलंब त्याग करना होगा| साथ उन्हीं का करें जो आध्यात्मिक साधना में सहायक हैं, अन्यथा चाहे अकेले ही रहना पड़े| निरंतर हरिःस्मरण हमारा स्वभाव हो|

👏हरिः ॐ तत्सत् | 👏ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
८ जनवरी २०२०

जिन्होंने इस पूरी सृष्ट का भार उठा रखा है, जब वे हमारा भी भार उठा लें तो हमें और क्या चाहिए?

जिन्होंने इस पूरी सृष्ट का भार उठा रखा है, जब वे हमारा भी भार उठा लें तो हमें और क्या चाहिए?
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आजकल शीत ऋतु परमात्मा पर ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ है| प्रकृति भी शांत है, न तो पंखा चलाना पड़ता है ओर न कूलर, अतः उनकी आवाज़ नहीं होती| कोई व्यवधान नहीं है| प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही प्रकृति में जो भी सन्नाटे की आवाज सुनती है उसी को आधार बनाकर गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र या प्रणव की ध्वनि को सुनते रहो|
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जैसे एक अबोध बालक अपनी माँ की गोद में बैठकर स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है, वैसे ही अपने भाव-जगत में, जगन्माता की गोद में बैठकर साधना करें| हमें तो कुछ भी नहीं करना है, जो कर रहे हैं, वह जगन्माता ही कर रही है| रात्री को माँ की गोद में ही सोएँ और प्रातःकाल उन्हीं की गोद से उठें| सारे दिन यही भाव रखें कि सारा कार्य हमारे माध्यम से भगवती जगन्माता ही कर रही हैं| इन आँखों से वे ही देख रही हैं, कानों से वे ही सुन रही हैं, इन हाथों से वे ही कार्य कर रही हैं, और इन पैरों से वे ही चल रही हैं| इस हृदय में वे ही धड़क रही हैं और इन नासिकाओं से वे ही सांसें ले रही हैं| जो जगन्माता सारी प्रकृति का संचालन कर रही है, उसने जब स्वयं हमारा भार उठा लिया है तब हमें और क्या चाहिए?
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ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ जनवरी २०२०

परमात्मा से प्रेम हमारा स्वभाव है .....

परमात्मा से प्रेम हमारा स्वभाव है .....
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हम परमात्मा से प्रेम करते हैं क्योंकि यह हमारा स्वभाव है| हम कुछ मांगने के लिए ऐसा नहीं करते हैं| हमें कुछ चाहिए भी नहीं, जो चाहिए वह तो हम स्वयं ही हैं| हम कोई मंगते-भिखारी नहीं, परमात्मा के अमृत पुत्र हैं| जो कुछ भी परमात्मा का है उस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| स्वयं परमात्मा पर भी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है|
सरिता प्रवाहित होती है, किसी के लिए नहीं| प्रवाहित होना उसका स्वभाव है| व्यक्ति .. स्वयं को व्यक्त करना चाहता है, यह उसका स्वभाव है| परमात्मा को हम व्यक्त करते है क्योंकि यह हमारा स्वभाव है|
जो लोग सर्वस्व यानि समष्टि की उपेक्षा करते हुए स्वहित की ही सोचते हैं, प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करती | वे सब दंड के भागी होंगे| समस्त सृष्टि ही अपना परिवार है और समस्त ब्रह्माण्ड ही अपना घर| यह देह और यह पृथ्वी भी बहुत छोटी है अपने निवास के लिए| अपना प्रेम सर्वस्व में पूर्णता से व्यक्त हो|
हम सब अपनी पूर्णता को उपलब्ध हों| ॐ तत् सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ जनवरी २०२०

पूरा भारत ही शिव-शक्ति का रूप है ....

पूरा भारत ही शिव-शक्ति का रूप है जहाँ ५२ शक्तिपीठ और १२ ज्योतिर्लिंग हैं| भारत विश्वगुरु है क्योंकि परमात्मा की सर्वाधिक व सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ भारतवर्ष में ही हुई हैं| यहाँ महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज, हरिहर राय और बुक्क राय जैसे अनगिनत लाखों वीरों ने जन्म लिया है| वैसे वीर विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं जन्मे हैं| आध्यात्मिक रूप से भारत को ऐकात्मकता के सूत्र में बांधने का काम सबसे अधिक आचार्य शंकर, गुरु गोरखनाथ और गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज जैसे महापुरुषों ने किया है| सिखों के १० गुरुओं में से ७ तो भगवान् राम के बड़े पुत्र कुश के वंशज थे तथा बाकी ३ छोटे पुत्र लव के वंशज थे| गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज ने जैसा त्याग और वीरता का उदाहरण प्रस्तुत किया है वैसा विश्व के इतिहास में कहीं भी नहीं है| मैं भारत माँ को नमन करता हूँ| माँ, ऐसे और अनेक वीरों को जन्म दे| भारत माता की जय | वंदे मातरं | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

६ जनवरी २०२० 

गुरु-रूप-ब्रह्म ने उतारा पार भवसागर के .....

गुरु-रूप-ब्रह्म ने उतारा पार भवसागर के .....
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सदा ही प्रार्थना करता था ..... "गुरु रूप ब्रह्म उतारो पार भव सागर के"| एक दिन अचानक ही देखा कि झंझावातों से भरा, अज्ञात अनंत गहराइयों वाला अथाह भवसागर तो कभी का पार हो गया है| कब हुआ इसका पता ही नहीं चला| सामने सिर्फ ज्योतिर्मय ब्रह्मरूप गुरु महाराज थे, और कोई नहीं| जरा और ध्यान से देखा तो "मैं" भी नहीं था, सिर्फ गुरु महाराज ही थे, दूर दूर तक अन्य कोई नहीं दिखा| उस निःस्तब्धता में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई क्योंकि मैं तो था ही नहीं, प्रतिक्रिया करता भी कौन? दृष्टि, दृश्य और दृष्टा सब कुछ तो वे ही हो गए थे|
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गुरु महाराज मुस्कराये और मुझे अकेला छोड़, अज्ञात अनंत में विलीन हो गए| कोई शब्द नहीं, उन की उस मुस्कराहट ने ही तृप्त कर दिया| उन की वह परम ज्योति सदा ही समक्ष रहती है| उस ज्योति को ही अपना सर्वस्व समर्पित है| वह ज्योति ही परमशिव है, वही भगवान वासुदेव है, वही विष्णु है और वही परमब्रह्म है| भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ वही है|
उन्हीं से प्रार्थना है कि अंगुली पकड़ कर अपने साथ उस अथाह अनंत में ले चलो जहाँ अन्य कोई न हो| बहुत हो गया, अब और कुछ भी नहीं चाहिए|
गुरुरूप ब्रह्म को नमन:-----
"ब्रह्मानन्दं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् |
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्, भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि ||"
"कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे |
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ||
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण-स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् |
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ||
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं-सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
ॐ तत्सत्! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जनवरी २०२०
"दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्| मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रय:||"

हृदय में भक्ति का स्थान सर्वोपरी है .....

हृदय में भक्ति का स्थान सर्वोपरी है| किसी भी तरह के कर्मकांड से भक्ति अधिक महत्वपूर्ण है| भक्ति है परमात्मा के प्रति परमप्रेम| भक्ति को समझने के लिए देवर्षि नारद व ऋषि शांडिल्य द्वारा लिखे भक्ति सूत्रों का अध्ययन करें| हिन्दी में रामचरितमानस व संस्कृत में भागवत भी भक्ति के ही ग्रंथ हैं| बिना भक्ति के की गई कोई किसी भी तरह की साधना सफल नहीं हो सकती| ये सारे ग्रंथ किसी भी बड़ी धार्मिक पुस्तकों की दुकान पर मिल जाएँगे| गीता का भक्ति योग भी तभी समझ में आयेगा जब हमारे हृदय और आचरण में भक्ति होगी, अन्यथा नहीं| हृदय में भक्ति होगी तभी भगवान से भी मार्गदर्शन और उनकी कृपा प्राप्त होगी| गीता में व उपनिषदों में पूरा मार्गदर्शन है, कहीं भी अन्यत्र इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं है|
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भक्ति में किसी भी तरह का कोई दिखावा न करें| यह हमारे और परमात्मा के मध्य का निजी मामला है, किसी अन्य का इस से कोई संबंध नहीं है| यदि संस्कृत भाषा का ज्ञान है तो पुरुष-सूक्त, श्री-सूक्त आदि का पाठ भी करें| यदि संस्कृत में शुद्ध उच्चारण नहीं है तो रहने दें| भाषा के गलत उच्चारण से बचें| जिस भी भाषा का ज्ञान है उसमें ग्रन्थों के अनुवाद ही पढ़ें|
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भगवान से जैसी भी प्रेरणा मिलती है वैसी ही साधना करें| ध्यान साधना उन्नत साधकों के लिए है| जो इस मार्ग में उन्नत हैं वे ही ध्यान करें अन्यथा नहीं| हम गलत कर रहें हैं या सही कर रहे हैं, इसका मापदंड एक ही है और वह है .... भगवान की अनुभूति| किसी भी साधना से यदि भगवान की उपस्थिती का आभास होता है तब तो वह साधना सही है, अन्यथा कहीं न कहीं कोई बड़ी समस्या है| भगवान को ठगने का प्रयास न करें अन्यथा कोई ठग आकर आपका सब कुछ ठग ले जाएगा| हृदय में अच्छी निष्ठा होगी तो सच्चे निष्ठावान लोग मिलेंगे, अन्यथा अपनी अपनी भावनानुसार ही लोग मिलेंगे|
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जिस महात्मा के सत्संग से परमात्मा की उपस्थिती अनुभूत होती है, हृदय में भक्ति जागृत होती है, और हमारा आचरण सुधरता है, उसी महात्मा का सत्संग करें| अन्य किसी के पीछे पीछे किसी अपेक्षा से भागना समय की बर्बादी है| जो मिलना है वह स्वयं में हृदयस्थ भगवान से ही मिलेगा, किसी अन्य से नहीं|
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घर के एक कोने को अपने लिए आरक्षित रखें जहाँ बैठकर भगवान की भक्ति कर सकें| उस स्थान का प्रयोग अन्य किसी कार्य के लिए न करें| जब भी हृदय अशांत हो, वहाँ जाकर बैठ जाएँ, शांति मिलेगी| जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवान की प्राप्ति है| कुतर्कियों से दूर रहें| आजकल कई स्वघोषित धार्मिक लोग दूसरों को भ्रमित कर के ही अपना अहंकार तृप्त करते हैं| ऐसे लोगों का विष की तरह त्याग कर दें|
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सभी को शुभ कामनाएँ और प्यार| ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
४ जनवरी २०२०