असहमति में उठा मेरा हाथ ---
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असहमत होने का अधिकार मुझे भारत के संविधान ने दिया है, और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका समर्थन किया है। किसी को गोली मारने का मैं समर्थन नहीं करता, लेकिन ब्रह्मचर्य के परयोग करने वाले महातमा को राष्ट्रपिता कहने को मैं बाध्य नहीं किया जा सकता। भारत के राष्ट्रपिता तो स्वयं भगवान विष्णु हैं जिन्होंने बार बार अवतृत होकर अपनी लीलाओं द्वारा धर्म की रक्षा की है। भारत का नाम भारत ही पड़ा है प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को या उनके पुत्र भरत को भी राष्ट्रपिता घोषित किया जा सकता है।
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१४ अगस्त १९४७ को महातमा की नीतियों ने पाकिस्तान को जन्म दिया। पाकिस्तान का क़ायदे-आज़म जिन्ना था और और पिता था महातमा मोहनदास गांधी। गोली मारना गलत था, लेकिन गोडसे ने न्यायालय में जो बयान दिया था वह अकाट्य तर्कों के साथ था, इसलिए उन बयानों को छापने पर लगभग चालीस वर्षों तक प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसके बयान में दिये तर्कों का खंडन करने की सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। अनुत्तरित प्रश्न तो ये भी हैं कि --
(१) गोली लगने के बाद भी जीवित गांधी को किसी अस्पताल में ले जाकर इलाज़ क्यों नहीं करवाया गया?
(२) किसी डॉक्टर को भी इलाज करने के लिए मौके पर क्यों नहीं बुलाया गया?
(३) उन्हें बिना इलाज़ के ही मरने के लिए क्यों छोड़ दिया गया?
(४) मरने के बाद उनकी लाश का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया गया?
(५) गोली चलाने के लिए गोडसे के पास पिस्तोल कहाँ से आई? उस समय के क़ानूनों के अनुसार तो यह संभव ही नहीं था कि बिना लाइसेन्स के कोई किसी भी तरह का हथियार रख सके।
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गाँधी का वध गलत था, पर उसकी प्रतिक्रिया में महाराष्ट्र में पुणे के आसपास के हजारों निर्दोष ब्राह्मणों की कांग्रेसियों द्वारा की गई सामूहिक हत्या क्या अहिंसा थी? गांधी वध के बाद पुणे में लगभग ६ हजार, और पूरे महाराष्ट्र में लगभग १३ हजार निर्दोष ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी, क्योंकि गोडसे एक महाराष्ट्रीय ब्राह्मण था। उस हत्याकांड की कभी न तो कोई जांच की गई, और न किसी हत्यारे को कोई दंड मिला। क्या उन निर्दोष ब्राह्मणों का कोई मानवाधिकार नहीं था? क्या ब्राह्मण मनुष्य नहीं होते? घरों में सो रहे ब्राह्मणों को पकड़ पकड़ कर उन पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी गई, उनके घरों को लूट कर जला दिया गया, और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। क्या यही कॉंग्रेसी संस्कृति थी?
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भारत में हिंदुओं की आस्था पर प्रहार करने, हिन्दू देवी-देवताओं को गाली देने, और वेद, पुराण, महाभारत, रामायण आदि की निंदा करने की छूट "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" के नाम पर सब को है, जो गलत है। महातमा गाँधी का वध निंदनीय और बहुत गलत था। गाँधी कुछ दिन और जीवित रहते तो उनके पाखंड का पता सब को चल जाता, और वे जीते जी ही मर जाते।
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यदि मेरी भावनाओं और विचारों से किसी को कोई ठेस पहुंची है तो मैं क्षमा-याचना करता हूँ। लगता है देश पर शासन करने का अधिकार उन्हीं को है जो कोट के भीतर तो क्रॉस पहिनते हैं, और कोट के ऊपर जनेऊ। जो स्वयं को दत्तात्रेयगोत्री जनेऊधारी कश्मीरी ब्राह्मण कहते हैं, छुट्टी मनाने बार बार इटली भाग जाते हैं, मनोरंजन के लिए बार-बार भाग कर बैंकोक चले जाते हैं, लगता है वे ही इस देश के असली शासक हैं। ये संघी लोग पता नहीं कहाँ से आ गए? यह राष्ट्र और यह देश महातमा जी चेलों का ही है, जिन से पहिले कोई राष्ट्र नहीं था। उन्होने ही इसे राष्ट्र बनाया अतः वे ही राष्ट्रपिता हैं।
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लेकिन मेरा हाथ असहमति में ही उठा रहेगा। सभी को नमन॥ मेरी भूल-चूक माफ करें।
ॐ तत्सत् !!
३१ दिसंबर २०२१
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पुनश्च: --- भारत के विभाजन के समय लगभग २५-३० लाख से अधिक हिंदुओं की हत्या हुई, करोड़ों लोग विस्थापित हुए, लाखों बच्चे अनाथ हुए, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार करके उन्हें बेचा गया, और पता नहीं अथाह कितनी संपत्ति का विनाश हुआ। यह विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा हत्याकांड था। क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए थी? इसके क्या कारण थे? क्या उन कारणों को दूर किया गया? इसके लिए कौन जिम्मेदार थे? क्या कभी उन पर कोई अभियोग चला?
ईश्वर का न्याय अवश्य होगा। दोषियों को इसका दंड भी मिलेगा। भगवान स्वयं उन्हें दंडित करेंगे।
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Birthday
of Mahatma Gandhi should be observed on 2nd September. As Mohandas
Gandhi, he was born on 2nd October, 1861. But as 'Mahatma', he was born
on 2nd September, 1938 by order of Secretary to Government, GA
Department, Government of CP & Berar.
अब
उजागर हुए एक ब्रिटिश दस्तावेज के अनुसार मोहनदास करमचंद गांधी को
"महात्मा" की उपाधि ब्रिटिश सरकार द्वारा २ सितंबर १९३८ को दी गई थी।
ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार २ सितंबर १९३८ से "गांधी" को "महात्मा गांधी"
कहना अनिवार्य था। यह झूठ है कि महात्मा की उपाधि उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र
बोस, या रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की
सेवा का वचन देने के कारण श्री मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा कहलवाया
गया। यह तथ्य जानने के बाद उन्हें "महात्मा गांधी" कहना अंग्रेजों की
गुलामी है।