हमारा "स्वधर्म" क्या है? ---
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हमारा
स्वधर्म है निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति। दिन में चौबीस घंटे,
सप्ताह में सातों दिन, परमात्मा को अपनी स्मृति में रखते हुए, उन्हें कर्ता
बनाकर, निमित्त मात्र होकर हर कार्य करें। यही हमारा स्वधर्म है। भगवान को
भूलना ही परधर्म है।
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हमारे हृदय में भगवान होंगे तो हमारी भी रक्षा होगी और भारत की भी।
"यतः कृष्णस्ततो धर्मो, यतो धर्मस्ततो जयः॥" जहाँ भगवान श्रीकृष्ण हैं, वहाँ धर्म है। जहाँ धर्म है, वहीं विजय है।
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है॥
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सत्य-सनातन-धर्म
की और परमात्मा की सर्वाधिक अभिव्यक्ति भारत में हुई है। अतः भारत निश्चित
रूप से विजयी होगा। हमारा काम सिर्फ अपने स्वधर्म का पालन करना है। बाकी
काम भगवान करेंगे।
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि। अथ चेत्वमहाङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥"
मुझमें
चित्तवाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जाएगा,
और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा॥
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हमारे से भगवान को सिर्फ सत्यनिष्ठा और प्रेम चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं। अन्य सब तो उन्हीं का है। प्रेम तभी होगा जब सत्यनिष्ठा होगी।
भारत
माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी।
असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा। हर ओर परमात्मा की चेतना
व्याप्त होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०२१
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हमारा
स्वधर्म है निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति। दिन में चौबीस घंटे,
सप्ताह में सातों दिन, परमात्मा को अपनी स्मृति में रखते हुए, उन्हें कर्ता
बनाकर, निमित्त मात्र होकर हर कार्य करें। यही हमारा स्वधर्म है। भगवान को
भूलना ही परधर्म है।
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हमारे हृदय में भगवान होंगे तो हमारी भी रक्षा होगी और भारत की भी।
"यतः कृष्णस्ततो धर्मो, यतो धर्मस्ततो जयः॥" जहाँ भगवान श्रीकृष्ण हैं, वहाँ धर्म है। जहाँ धर्म है, वहीं विजय है।
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है॥
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सत्य-सनातन-धर्म
की और परमात्मा की सर्वाधिक अभिव्यक्ति भारत में हुई है। अतः भारत निश्चित
रूप से विजयी होगा। हमारा काम सिर्फ अपने स्वधर्म का पालन करना है। बाकी
काम भगवान करेंगे।
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि। अथ चेत्वमहाङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥"
मुझमें
चित्तवाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जाएगा,
और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा॥
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हमारे से भगवान को सिर्फ सत्यनिष्ठा और प्रेम चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं। अन्य सब तो उन्हीं का है। प्रेम तभी होगा जब सत्यनिष्ठा होगी।
भारत
माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी।
असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा। हर ओर परमात्मा की चेतना
व्याप्त होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०२१
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