Monday 3 January 2022

सनातन धर्म ही इस देश का भविष्य है, हम अपनी उपासना भगवत्-प्राप्ति के लिए ही करें ---

 

सनातन धर्म ही इस देश का भविष्य है ---
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यहाँ की राजनीति, शिक्षा-व्यवस्था, कृषि-व्यवस्था, और अन्य सारी व्यवस्थाएं सनातन धर्म पर ही आधारित होंगी। एक आध्यात्मिक शक्ति इस दिशा में कार्य कर रही है जिसे रोकने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। यह कार्य धीरे धीरे हो रहा है। असत्य का अंधकार भारत से दूर चला जाएगा। भारत विजयी होगा। हमारा कार्य स्वधर्म पर दृढ़ रहना है। स्वधर्म और परधर्म क्या है, यह मैं अनेक बार लिख चुका हूँ। यह युग-परिवर्तन का समय है। आने वाले समय में अनेक परिवर्तन होंगे। भयावह विनाश भी होगा और नवनिर्माण भी होंगे।
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जिनके जीवन में सदाचार है और जिन्होंने भगवान का आश्रय लिया है, भगवान उनकी रक्षा करेंगे। हम अपनी सारी आध्यात्मिक उपासना "भगवत्-प्राप्ति" के लिए ही करें। हमारे जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य यही है। यही "सत्य-सनातन-धर्म" है और यही हमारा "स्वधर्म" है। इसका दृढ़ता से पालन ही हमारी रक्षा कर सकता है। अन्यथा विनाश सुनिश्चित है। हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली और संगठित बनें। हमारे चरित्र और आचरण में कोई कमी नहीं हो। नित्य ईश्वर का ध्यान करें, और ईश्वर-प्रदत्त विवेक के प्रकाश में ही निमित्तमात्र होकर हर कार्य करें। जीवन में मंगल ही मंगल और शुभ ही शुभ होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०२१

1 comment:

  1. जिस भारतभूमि पर स्वयं भगवान ने समय समय पर अनेक लीलाएँ रचीं, जहाँ हर युग में महानतम आत्माओं ने विचरण किया, वह पुण्य भूमि अब और पददलित नहीं रह सकती। भगवान स्वयं यहाँ पुनश्च अवतरित होंगे, और धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे। सज्जनों की रक्षा होगी, और दुर्जनों का नाश होगा। भगवान यहाँ आयें, उससे पूर्व हम सब अपने अपने हृदयों में उनका प्राकट्य करें।
    जो मैं लिख रहा हूँ, यह मेरी अगाध श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा, आस्था और अनुभूति है, कोई भावुकता या कल्पना नहीं। यह एक अनुभव भी है। जब भी भगवान मुझे अपना निमित्त बनाकर अपना स्वयं का ध्यान करते हैं, मैं उन्हें सदा अपने समक्ष पाता हूँ। वे हैं, बस इसके सिवाय मुझे अन्य कुछ भी नहीं चाहिए। वे हैं, इसी समय यहीं पर है, हर समय सदा सर्वत्र मेरे साथ हैं -- बस यही इस जीवन की एकमात्र उपलब्धि है, और कुछ भी नहीं चाहिए। यह शरीर तो अपने प्रारब्ध के कारण है, लेकिन मेरा एकमात्र संबंध अपने परमप्रिय से है। वे जहाँ भी जैसे भी रखें, किसी कामना का मन में कभी जन्म नहीं होगा।
    ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!

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