Monday, 3 January 2022

सौ बात की एक बात ---

 

सौ बात की एक बात ---
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पिछले दस वर्षों से अब तक भगवान की भक्ति के बारे में जो कुछ भी लिखा है, वह सब एक तरफ, और आज जो लिखने जा रहा हूँ वह एक तरफ है। इधर उधर की बड़ी-बड़ी बातों से कोई लाभ नहीं है, सबसे बड़ी काम की बात सीधे ही कहना चाहता हूँ। इसके बाद मेरे पास भी समय नहीं है, क्योंकि भगवान से उधार मांगे हुये समय में जी रहा हूँ।
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मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवत्-प्राप्ति है, यही हमारा स्वधर्म है, और यही सत्य-सनातन-धर्म का सार है। यदि कोई व्यक्ति अपने निज जीवन में भगवत्-प्राप्ति के लिए गंभीर और निष्ठावान है, तो उसे प्रतिदिन पूरी सत्यनिष्ठा से कम कम तीन घंटे तो भगवान का ध्यान करना ही होगा। उससे कम में काम नहीं चलेगा। इससे अधिक की कोई सीमा नहीं है। भगवान ने हमें दिन में २४ घंटे दिये हैं, उसके आठवें भाग पर तो भगवान का पूरा अधिकार है। अतः वह भाग भगवान को बापस दें।
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यदि ध्यान नहीं कर सकते तो नित्य कम से कम एकसौ माला अपने इष्ट देवी/देवता के बीज मंत्र की जपें। बीजमंत्र की एकसौ माला जपने में कम से कम ढाई से तीन घंटे लगेंगे। जो शक्ति साधक हैं, वे कमलगट्टे की, शिव साधक रुद्राक्ष की, और वैष्णव तुलसी माला का प्रयोग करें। निष्काम साधना में नियमों के अधिक बंधन नहीं हैं। अतः तीन घंटे तक पूरी सत्यनिष्ठा से यानि ईमानदारी से जपयोग करें। तीन घंटे तक सत्यनिष्ठा से बीज मंत्र के जप करने को एक सौ माला के बराबर मान लीजिये।
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यदि आप बीजमंत्र के स्थान पर अपने इष्ट देवी/देवता के पूरे मंत्र का जप करते हैं तो भी कम से कम तीन घंटे तक जप करना चाहिए। इसे दिन में दो टुकड़ों में भी कर सकते हैं। जो द्विज हैं उन्हें दिन में कम से कम से कम संख्या में दस बार गायत्री जप अनिवार्य हैं। यदि वे एक बार भी नहीं करते तो द्विजत्व से च्युत हो जाते है, और प्रायश्चित करना पड़ता है। अधिक से अधिक वे जितना भी जप कर सकते हैं करें, फिर भी वह कम ही रहेगा।
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जपयज्ञ सबसे बड़ा यज्ञ है क्योंकि श्रीमद्भवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --
"महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः॥१०:२५॥"
अर्थात् -- महर्षियों में भृगु और वाणियों-(शब्दों-) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव मैं हूँ। सम्पूर्ण यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालों में हिमालय मैं हूँ।
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वैसे मानसिक रूप से हमें हर समय चौबीस घंटे निरंतर भगवान के नाम का मानसिक जप करते रहना चाहिए। यह संसार एक युद्धभूमि है जहाँ हम निरंतर एक युद्ध लड़ रहे हैं। वह युद्ध अधर्म के विरुद्ध है। भगवान का निरंतर अनुस्मरण करते हुए हम यह युद्ध करें। भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् -- इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो। मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
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इतना ही लिखने की प्रेरणा भगवान से मिली थी, सो लिख दिया। मैं आप सब का एक सेवक मात्र हूँ। समष्टि के कल्याण हेतु ही मेरे माध्यम साधना होती है। समष्टि का हित ही मेरा हित है। मेरी कोई कामना नहीं है। मैं सदा आपके साथ हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० दिसंबर २०२१

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