२५ दिसंबर के दिन ही घटी एक महान घटना --- (संपादित व पुनर्प्रस्तुत लेख)
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२५ दिसंबर १८९२ को एक ऐसी घटना घटी जिसने भारत की चिंतन धारा को बदलना आरंभ कर दिया था। २९ वर्ष से भी कुछ कम आयु के स्वामी विवेकानंद देश का भ्रमण करते हुए कन्याकुमारी गए हुए थे। भारत माता की तत्कालीन दशा से अत्यधिक क्षुब्ध और व्यथित थे। उन्हें बहुत अधिक पीड़ा हो रही थी। ईश्वर से बस यही जानना चाहते कि पुण्यभूमि भारत का पुनः उत्थान कैसे हो। एक प्रचंड अग्नि उनके ह्रदय में जल रही थी। सामने समुद्र में उन्होने देवीपादम् शिलाखंड को देखा। उनसे और रहा नहीं गया और उन्होंने समुद्र में छलांग लगा ली, व प्राणों की बाजी लगाकर उथल-पुथल भरे समुद्र की लहरों में तैरते हुए दूर उस शिलाखंड पर चढ़ गए। उनके ह्रदय में बस एक ही भाव था कि भारत का उत्थान कैसे हो।
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उस शिलाखंड पर तीन दिन और तीन रात वे समाधिस्थ रहे। उसके पश्चात उन्हें ईश्वर से मार्गदर्शन मिला और उनका कार्य आरम्भ हुआ। उस समय भारत के लोगों में इतनी हीन भावना व्याप्त थी कि लोग कहते कि चाहे मुझे गधा कह दो पर हिंदू मत कहो। उन्होंने ही सबको गर्व से हिंदू कहना सिखाया। उन्हीं का प्रयास और भारत के मनीषियों का पुण्यप्रताप था कि आज हम गर्व से सिर ऊँचा कर के बैठे हैं।
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आज फिर हमारे धर्म और राष्ट्र पर संकट के बादल छाये हुए हैं। उसकी रक्षा करने के लिये हमारे युवकों में वो ही उत्साह, तड़प और अभीप्सा चाहिए। ईश्वर से जुड़कर ही हम कुछ अच्छा कार्य कर सकते हैं। मैं सभी से प्रार्थना करता हूँ कि सनातन धर्म व भारत की रक्षा के लिये ईश्वर को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएँ। आगे का मार्ग ईश्वर स्वयं दिखाएँगे|
वंदे मातरम ! भारत माता की जय ! सनातन हिंदू धर्म की जय !
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०२१
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