Monday, 3 January 2022

असहमति में उठा मेरा हाथ ---

असहमति में उठा मेरा हाथ ---
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असहमत होने का अधिकार मुझे भारत के संविधान ने दिया है, और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका समर्थन किया है। किसी को गोली मारने का मैं समर्थन नहीं करता, लेकिन ब्रह्मचर्य के परयोग करने वाले महातमा को राष्ट्रपिता कहने को मैं बाध्य नहीं किया जा सकता। भारत के राष्ट्रपिता तो स्वयं भगवान विष्णु हैं जिन्होंने बार बार अवतृत होकर अपनी लीलाओं द्वारा धर्म की रक्षा की है। भारत का नाम भारत ही पड़ा है प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को या उनके पुत्र भरत को भी राष्ट्रपिता घोषित किया जा सकता है।
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१४ अगस्त १९४७ को महातमा की नीतियों ने पाकिस्तान को जन्म दिया। पाकिस्तान का क़ायदे-आज़म जिन्ना था और और पिता था महातमा मोहनदास गांधी। गोली मारना गलत था, लेकिन गोडसे ने न्यायालय में जो बयान दिया था वह अकाट्य तर्कों के साथ था, इसलिए उन बयानों को छापने पर लगभग चालीस वर्षों तक प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसके बयान में दिये तर्कों का खंडन करने की सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। अनुत्तरित प्रश्न तो ये भी हैं कि --
(१) गोली लगने के बाद भी जीवित गांधी को किसी अस्पताल में ले जाकर इलाज़ क्यों नहीं करवाया गया?
(२) किसी डॉक्टर को भी इलाज करने के लिए मौके पर क्यों नहीं बुलाया गया?
(३) उन्हें बिना इलाज़ के ही मरने के लिए क्यों छोड़ दिया गया?
(४) मरने के बाद उनकी लाश का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया गया?
(५) गोली चलाने के लिए गोडसे के पास पिस्तोल कहाँ से आई? उस समय के क़ानूनों के अनुसार तो यह संभव ही नहीं था कि बिना लाइसेन्स के कोई किसी भी तरह का हथियार रख सके।
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गाँधी का वध गलत था, पर उसकी प्रतिक्रिया में महाराष्ट्र में पुणे के आसपास के हजारों निर्दोष ब्राह्मणों की कांग्रेसियों द्वारा की गई सामूहिक हत्या क्या अहिंसा थी? गांधी वध के बाद पुणे में लगभग ६ हजार, और पूरे महाराष्ट्र में लगभग १३ हजार निर्दोष ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी, क्योंकि गोडसे एक महाराष्ट्रीय ब्राह्मण था। उस हत्याकांड की कभी न तो कोई जांच की गई, और न किसी हत्यारे को कोई दंड मिला। क्या उन निर्दोष ब्राह्मणों का कोई मानवाधिकार नहीं था? क्या ब्राह्मण मनुष्य नहीं होते? घरों में सो रहे ब्राह्मणों को पकड़ पकड़ कर उन पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी गई, उनके घरों को लूट कर जला दिया गया, और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। क्या यही कॉंग्रेसी संस्कृति थी?
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भारत में हिंदुओं की आस्था पर प्रहार करने, हिन्दू देवी-देवताओं को गाली देने, और वेद, पुराण, महाभारत, रामायण आदि की निंदा करने की छूट "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" के नाम पर सब को है, जो गलत है। महातमा गाँधी का वध निंदनीय और बहुत गलत था। गाँधी कुछ दिन और जीवित रहते तो उनके पाखंड का पता सब को चल जाता, और वे जीते जी ही मर जाते।
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यदि मेरी भावनाओं और विचारों से किसी को कोई ठेस पहुंची है तो मैं क्षमा-याचना करता हूँ। लगता है देश पर शासन करने का अधिकार उन्हीं को है जो कोट के भीतर तो क्रॉस पहिनते हैं, और कोट के ऊपर जनेऊ। जो स्वयं को दत्तात्रेयगोत्री जनेऊधारी कश्मीरी ब्राह्मण कहते हैं, छुट्टी मनाने बार बार इटली भाग जाते हैं, मनोरंजन के लिए बार-बार भाग कर बैंकोक चले जाते हैं, लगता है वे ही इस देश के असली शासक हैं। ये संघी लोग पता नहीं कहाँ से आ गए? यह राष्ट्र और यह देश महातमा जी चेलों का ही है, जिन से पहिले कोई राष्ट्र नहीं था। उन्होने ही इसे राष्ट्र बनाया अतः वे ही राष्ट्रपिता हैं।
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लेकिन मेरा हाथ असहमति में ही उठा रहेगा। सभी को नमन॥ मेरी भूल-चूक माफ करें।
ॐ तत्सत् !!
३१ दिसंबर २०२१
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पुनश्च: --- भारत के विभाजन के समय लगभग २५-३० लाख से अधिक हिंदुओं की हत्या हुई, करोड़ों लोग विस्थापित हुए, लाखों बच्चे अनाथ हुए, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार करके उन्हें बेचा गया, और पता नहीं अथाह कितनी संपत्ति का विनाश हुआ। यह विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा हत्याकांड था। क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए थी? इसके क्या कारण थे? क्या उन कारणों को दूर किया गया? इसके लिए कौन जिम्मेदार थे? क्या कभी उन पर कोई अभियोग चला?
ईश्वर का न्याय अवश्य होगा। दोषियों को इसका दंड भी मिलेगा। भगवान स्वयं उन्हें दंडित करेंगे।
 
https://www.facebook.com/photo/?fbid=10216512295359761&set=a.2759933497382 
Birthday of Mahatma Gandhi should be observed on 2nd September. As Mohandas Gandhi, he was born on 2nd October, 1861. But as 'Mahatma', he was born on 2nd September, 1938 by order of Secretary to Government, GA Department, Government of CP & Berar.
अब उजागर हुए एक ब्रिटिश दस्तावेज के अनुसार मोहनदास करमचंद गांधी को "महात्मा" की उपाधि ब्रिटिश सरकार द्वारा २ सितंबर १९३८ को दी गई थी। ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार २ सितंबर १९३८ से "गांधी" को "महात्मा गांधी" कहना अनिवार्य था। यह झूठ है कि महात्मा की उपाधि उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस, या रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की सेवा का वचन देने के कारण श्री मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा कहलवाया गया। यह तथ्य जानने के बाद उन्हें "महात्मा गांधी" कहना अंग्रेजों की गुलामी है।

4 comments:

  1. (पार्ट 1) गांधी वध और ब्राह्मणों का 'नरसंहार' !!!
    30 जनवरी 1948 को हुआ क्या था? ये सबको पता है इसी दिन शाम 5 बजकर 17 मिनट पर गोडसे ने बापू की जान ले ली थी।लेकिन उसके बाद उस रात क्या हुआ था? ये किसी को नहीं पता।लेकिन ये पता होना चाहिए।ये पता होना चाहिए कि खुद को लिबरल,सेक्युलर,अहिंसक बताने वाले गांधी के चेलों ने उस रात गांधी के नाम पर क्या महापाप किया था? ये पाप इतिहास की किताबों से मिटा दिया गया है।लेकिन आज सच बताना ही होगा क्योंकि ये लिबरल,ये सेक्युलर एक बार फिर गांधीवाद के नकाब के पीछे अपनी कुत्सित चालें चल रहे हैं।
    तो सुनिए क्या हुआ था ग़ांधी हत्याकांड के बाद? देर रात तक पूरे भारत में ये ख़बर फैल गई थी कि गांधी का हत्यारे का नाम नाथूराम गोडसे है और उसकी जाति चितपावन ब्राह्मण है। देखते ही देखते ही बापू को मानने वाले“अहिंसा के पुजारियों” ने पूरे महाराष्ट्र में कत्लेआम शुरु कर दिया।1984 की तरह कांग्रेस के इन कार्यकर्ताओं के निशाने पर थे महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण।सबसे पहले दंगा मुंबई में शुरु हुआ उसी रात 15 लोग मारे गए और पुणे में 50 लोगों का कत्ल हुआ। भारत में ख़बर छपी या नहीं पता नहीं लेकिन अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने इस कत्लेआम को अपनी हेडलाइन बनाया।
    लेकिन सबसे दुखद अंजाम हुआ स्वतंत्रता सेनानी डॉ. नारायण सावरकर का।नारायण सावरकर,वीर सावरकर के सबसे छोटे भाई थे।गांधी की हत्या के एक दिन बाद पहले तो भीड़ ने रात में वीर सावरकर के घर पर हमला किया लेकिन जब वहां बहुत सफलता नहीं मिली तो शिवाजी पार्क में ही रहने वाले उनके छोटे भाई डॉ. नारायण सावरकर के घर पर हमला बोल दिया। डॉ. नारायण सावरकर को बाहर खींचकर निकाला गया और भीड़ उन्हे तब तक पत्थरों से लहूलुहान करती रही जब तक कि वो मौत के मुहाने तक नहीं पहुंच गए। इसके कुछ महीनों बाद ही डॉ.नारायण सावरकर की मौत हो गई।मुझे पता है लोग बोलेंगे वीर सावरकर ने तो अंग्रेज़ों से माफी मांगी थी,गांधी हत्याकांड में उनका नाम आया था। ठीक है।लेकिन कोई ये नहीं बोलेगा कि इसमें उनके छोटे भाई और स्वतंत्रता सेनानी डॉ. नारायण सावरकर का ऐसा क्या गुनाह था,जिसके लिए उन्हे पत्थर मार-मार कर मौत की सज़ा दे दी गई ??? आप ही बताइए कि आज़ादी का ये सिपाही, क्या ऐसी दर्दनाक मौत का हकदार था ???
    पहले निशाने पर सिर्फ चितपावन थे।लेकिन बापू के “अहिंसा के पुजारियों”ने सभी महाराष्ट्रीयन ब्राह्मणों को निशाना बनाना शुरु कर दिया।मुंबई,पुणे,सांगली,नागपुर,नासिक,सतारा, कोल्हापुर,बेलगाम (वर्तमान में कर्नाटक) मे जबरदस्त कत्लेआम मचाया गया।सतारा में 1000 से ज्यादा महाराष्ट्रियन ब्राह्मणों के घरों को जला दिया गया।एक परिवार के तीन पुरुषों को सिर्फ इसलिए जला दिया गया क्योंकि उनका सरनेम गोडसे था।उस कत्लेआम के दौर में जिसके भी नाम के आगे आप्टे,गोखले, जोशी, रानाडे, कुलकर्णी, देशपांडे जैसे सरनेम लगे थे भीड़ उनकी जान की प्यासी हो गई।
    मराठी साहित्यकार और तरुण भारत के संपादक गजानंद त्र्यंबक माडखोलकर की किताब “एका निर्वासिताची कहाणी” (एक शरणार्थी की कहानी) के मुताबिक गांधीवादियों की इस हिंसा में करीब 15 हज़ार महाराष्ट्रियन ब्राहमण मारे गए।खुद 31 जनवरी को माडखोलकर के घर पर भी हमला हुआ था और उन्होने महाराष्ट्र के बाहर शरण लेनी पड़ी थी और अपने इसी अनुभव पर उन्होने ये किताब “एका निर्वासिताची कहाणी” (एक शरणार्थी की कहानी) लिखी थी।

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  2. (part 2) लेकिन जब आप 1948 के इस नरसंहार का रिकॉर्ड ढूंढने की कोशिश करेंगें तोआपको हर जगह निराशा हाथ लगेगी।भारत में आज तक जितने भी दंगे हुए हैं उसकी लिस्ट में आपको Anti-Brahmin riots of 1948 का जिक्र तो मिलेगा लेकिन जब उसके सामने लिखे मारे गए लोगों का कॉलम देखेंगे तो इसमें लिखा होगा Un
    known!!!! यानि दंगे तो हुए लेकिन कितने ब्राह्मण मारे गए इसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं है, क्यों जिक्र नहीं है ?क्यों इतिहास के इस काले पन्ने को मिटा दिया गया?वजह सिर्फ एक है आने वाली पीढ़ी को ये कभी पता नहीं चलना चाहिए कि गांधी टोपी पहनने वाले “अहिंसा के पुजारियों” ने कैसा खूनी खेल खेला था? क्यों नेहरू और पटेल इस हिंसा को रोकने में ठीक उसी तरह नाकाम रहे जिस तरह वो गांधी के हत्यारे को रोकने में नाकाम रहे थे? 20 जनवरी को गांधी पर पर पहला हमला होने के बाद ही पता चल जाना चाहिए था कि गांधी की जान को किससे खतरा है? 20 जनवरी के बाद अगले 10 दिन तक नेहरू और पटेल की पुलिस गोडसे तक नहीं पहुंच पाई, उसकी पहचान पता नहीं कर पाई।लेकिन जैसे ही 30 जनवरी को गोडसे ने बापू की जान ले ली तो महज 6 घंटे केअंदर उसकी पहचान,उसका धर्म,उसकी जात और जात में भी वो कौन सा ब्राह्मण है ये सब जानकारी महाराष्ट्र की उन्मादी कांग्रेसी गांधीवादियों को मिल गई।वो भी उस दौर में जब सोशल मीडिया तो छोड़िये फोन भी नहीं होते थे।क्या तब भी “बड़ा बरगद गिरता है तो धरती तो हिलती ही है” ये वाली सोच काम कर रही थी ???
    आर्यावर्त का अघोर अतीत।

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  3. https://www.youtube.com/watch?v=NOk-Aq_N2kY

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  4. Arun Kumar Upadhyay ji का दिलीप मृदुल को उत्तर:-
    सरदार पटेल कांग्रेस द्वारा प्रधान मन्त्री पद के लिए चुने गये थे। उनको हटा कर नेहरू को प्रधान मन्त्री बनवाने का क्या अर्थ था? क्या गान्धी अपनी निन्दा के लिए लेख लिखते थे कि उनके वाङ्मय में उनके कुकर्मों का उल्लेख होगा? तुर्की के खलीफा के पक्ष में आन्दोलन को असहयोग नाम देना सत्य था या धोखा? विभाजन कालीन हिंसा का मुख्य कारण था गान्धी का झूठा आश्वासन कि उनके शव पर विभाजन होगा। किन्तु स्टैफर्ड क्रिप्स द्वारा स्वाधीनता का प्रस्ताव केवल इस कारण अस्वीकार किया था कि उसमें विभाजन का प्रस्ताव नहीं था। बहाना बनाया कि कामनवेल्थ में रहना पड़ेगा जो आज भी है। विभाजन मनवाने के लिए गान्धी की सलाह से नेहरू सिंगापुर में माउण्टबेटन को मनाने गये थे (Cambridge History of India, Vol.5)। लोग गान्धी के झूठे प्रचार से निश्चिन्त थे कि विभाजन नहीं होगा, इस कारण वे मारे गए। पाकिस्तान को पूर्व तथा पश्चिम भाग के बीच २० मील चौड़ा कॉरिडोर देना किस समझौते का अंग था? युद्ध के समय शत्रु को आर्थिक सहायता देने का एकमात्र अर्थ देशद्रोह ही होता है। पाकिस्तान से आये १८० लाख शरणार्थियों तथा ३० लाख मृतकों की सम्पत्ति क्यों नहीं मांगी? यह सम्पत्ति मांगने का कोई उदाहरण गान्धी वाङ्मय में दिखा दें जो आपके लिए एकमात्र वेद है।

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