Monday, 3 January 2022

सुखी होना स्वयं में यानि परमात्मा में स्थित होना है ---

 

सुखी होना स्वयं में यानि परमात्मा में स्थित होना है। यह एक मानसिक अवस्था है। सुखी होना वर्तमान में है, भविष्य में नहीं। श्रुति भगवती कहती है --"ॐ खं ब्रह्म।" 'खं' कहते है आकाश तत्व यानि परमात्मा को। जो परमात्मा से जितना समीप है, वह उतना ही सुखी है। जितने हम परमात्मा से दूर हैं, उतने ही दुःखी हैं। जो प्रभु से सब के कल्याण की प्रार्थना करता है, जो सब को सुखी और निरामय देखना चाहता है, सिर्फ वही सुखी है। प्रभु की सभी संतानें यदि सुखी होंगी, तभी हम सुखी हो सकते हैं, अन्यथा नहीं।
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आवरण और विक्षेप के रूप में माया तो अपना काम करेगी ही। हमें भी अपना काम भक्ति, शरणागति, समर्पण, अभ्यास, सत्संग और वैराग्य द्वारा निरंतर करते रहना चाहिए। रात्रि में सोने से पहिले, और प्रातः उठते ही भगवान का स्मरण, जप और ध्यान करें। निरंतर भगवान की स्मृति बनाये रखें। जब भी समय मिले खूब जप और ध्यान करें। जितना साधन हो सके उतना करें, बाकी शरणागत होकर भगवान को समर्पित कर दें। आगे का काम उनका है। भगवान का इतना चिंतन करें कि वे स्वयं हमारी चिंता करने लगें।
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दो साँसों के मध्य का हर क्षण दिव्य है। जब दोनों नासिकाओं से साँस चल रही है, वह सर्वश्रष्ठ समय/मुहूर्त होता है जिसका उपयोग भगवान की भक्ति/ध्यान आदि में करना चाहिए। ध्यान साधना के लिए यह आवश्यक है कि दोनों नासिकाओं से सांस चल रही हो। अन्यथा हम ध्यान नहीं कर सकते।
सभी को शुभ कामनाएँ और सप्रेम नमन ! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२८ दिसंबर २०२१
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पुनश्च: --- आपको इसकी अनुभूति करनी होगी। अपनी सूक्ष्म देह से परे परमात्मा की अनंतता पर ध्यान करे॥ "ख' को भूल जाएँ, और अनंत विस्तार में ॐ शब्द को सुनते हुए, ध्यान करे। "ख" शब्द प्रतीकात्मक मात्र है।

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