भगवान ने तो बहुत पहिले ही मेरी पदोन्नति कर दी थी, पर मैं स्वयं ही झूठे बहाने बनाकर मोह-माया के बंधनों में बंधा रहा। अब समय आ गया है, स्वयं को इन सब बंधनों से मुक्त करने का। कब तक दूसरों के पीछे-पीछे भागता रहूँगा? कब तक एक साधक और साधकत्व के भावों से ही बंधा रहूँगा? इनसे तो बहुत पहिले ही मुझे ऊपर उठ जाना चाहिए था?
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भगवान ने मुझे जहाँ भी और जैसे भी रखा है, वहीं पर मैं इसी क्षण से मुक्त हूँ। कोई बंधन, मुझ पर नहीं है। मैं सब बंधनों से परे हूँ। यह शरीर एक वाहन है, मेरे प्रारब्ध में जब तक इस पर लोकयात्रा करना लिखा है, तब तक करूँगा। उसके पश्चात का भी मुझे पता है, लेकिन अपना रहस्य किसी को क्यूँ दूँ? वह रहस्य, रहस्य ही रहना चाहिए। इसी क्षण से मेरा वर्तमान भी सबके लिए एक रहस्य ही रहेगा। मेरे लिए कोई पराया है ही नहीं। मैं सबके साथ एक हूँ।
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ॐ नमस्तुभ्यं नमो मह्यं तुभ्यं मह्यं नमोनमः। अहं त्वं त्वमहं सर्वं जगदेतच्चराचरम्॥
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२९ दिसंबर २०२१
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