Tuesday, 14 September 2021

राधाष्टमी और दधीचि-जयंती पर श्रद्धालुओं का अभिनंदन !! ---

 राधाष्टमी और दधीचि-जयंती पर श्रद्धालुओं का अभिनंदन !!

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"गोपाल सहस्रनाम" के अनुसार एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव (श्रीकृष्ण) -- अर्थात् श्रीराधा ही श्रीकृष्ण हैं, और कृष्ण ही राधा हैं --
"तस्माज्ज्योतिरभूद्द्वेधा राधामाधवरूपकम्‌।"
वैष्णव निंबार्क संप्रदाय और चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों में श्रीराधा जी की आराधना मुख्य होती है।
महर्षि दधीचि एक वैदिक ऋषि थे। इन्हीं की हड्डियों से बने वज्र से इंद्र ने वृत्रासुर का संहार किया था।
 
१४ सितंबर २०२१ 

अपनी बुद्धि रूपी कन्या का विवाह ---

 

अपनी बुद्धि रूपी कन्या का विवाह परमात्मा से कर के निश्चिंत हो रहा हूँ। उनसे अच्छा वर और कोई नहीं मिलेगा। दहेज में अपना मन, अहंकार व चित्त भी दे रहा हूँ।
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इस बुद्धि रूपी कन्या ने अनंतकाल तक तप, आराधना और प्रतीक्षा की है। उन
सर्वलोकेश्वरेश्वर अनाथाश्रय दयाधाम ने इस किंकरी पर द्रवित होकर यह संबंध स्वीकार कर लिया है। अपने आराध्य की आराधना से यह कन्या तो धन्य हुई ही है, साथ साथ मैं और आप सब भी धन्य हो गए हैं। ॐ तत्सत् !!
१३ सितंबर २०२१

कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम पर निरंतर सदा ध्यान रहे ---


कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम पर निरंतर सदा ध्यान रहे ---
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संसार में कहीं भी सुख-शांति-सुरक्षा नहीं है, क्योंकि हमारी इस सृष्टि का निर्माण द्वैत से हुआ है, जिसमें सदा द्वन्द्व रहता है। सुख-शांति-सुरक्षा अद्वैत में है, द्वैत में नहीं। भगवान ने स्वयं को "खं" यानि आकाश-तत्व के रूप में व्यक्त किया है, जहाँ कोई द्वैत नहीं होता। इसलिए जो भगवान के सपीप है, वह "सुखी" है, और जो उन से दूर है वह "दुःखी" है।
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गीता का सर्वप्रथम उपदेश इस जीवन में जिन विद्वान आचार्य से मैंने ग्रहण किया, उन्होने मुझे सब से पहिले क्षर-अक्षर योग का उपदेश दिया था --
"द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते॥१५:१६॥"
अर्थात् इस लोक में क्षर (नश्वर) और अक्षर (अनश्वर) ये दो पुरुष हैं। समस्त भूत क्षर हैं और कूटस्थ अक्षर कहलाता है॥
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यह "कूटस्थ" शब्द मुझे बहुत प्यारा लगा और मैं इसी के अनुसंधान में लग गया और लगा रहा जब तक कूटस्थ-चैतन्य की प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं हुई। निषेधात्मक कारणों से अपनी अनुभूतियों को तो नहीं लिख सकता, लेकिन यह तो लिख ही सकता हूँ कि आध्यात्म में अब कोई रहस्य - रहस्य नहीं रहा है। कूटस्थ पुरुषोत्तम स्वयं भगवान वासुदेव हैं, वे ही परमशिव हैं। वे ही हमारे वास्तविक अमूर्त स्वरूप हैं।
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"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥"
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥"
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ सितंबर २०२१
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कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान और क्रिया-योग साधना -- यही इस अकिंचन का जीवन है। यज्ञ में यजमान की तरह मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ। कर्ता और भोक्ता तो भगवान स्वयं हैं। रात्रि को सोने से पूर्व और ब्राह्ममुहूर्त में उठते ही भगवान का ध्यान, और हर समय उनका अनुस्मरण अनिवार्य है।
भगवान कहते है --
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
अर्थात् - सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
Abandoning all duties, take refuge in Me alone: I will liberate thee from all sins; grieve not.
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ॐ तत्सत् ॥ गुरु ॐ !! जय गुरु !!
१८ सितंबर २०२१
 

गुरु-चरणों में आश्रय ---

 अपनी इस अति-सीमित और अत्यल्प बुद्धि से कुछ भी मुझे समझ में नहीं आता। मुझे न तो कोई शास्त्रों की समझ है, और न कुछ ज्ञान। हृदय में एक गहन अभीप्सा थी जिसने श्रीगुरु चरणों में आश्रय दिला ही दिया। इस जीवन की यही एकमात्र उपलब्धि और एकमात्र स्थायी निधि है।
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प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम ध्यान श्रीगुरुचरणों का ही होता है, रात्रि को सोने से पूर्व, और स्वप्न में भी श्रीगुरुचरण ही दिखाई देते हैं। वे ही मेरी गति हैं, अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है। मेरी सारी कमियाँ-खूबियाँ, दोष-गुण, बुराई-भलाई, सारा अस्तित्व, सब कुछ श्रीगुरुचरणों में अर्पित है। श्रीगुरुचरणों के दर्शन कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म और नाद के रूप में होते हैं। इस नश्वर देह को निमित्त बनाकर सारी साधनायें भी वे स्वयं ही करते हैं।
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इस विमान के चालक वे ही हैं, और यह विमान भी वे ही हैं।
ॐ तत्सत् !!
१२ सितंबर २०२१

 

रूस और यूक्रेन के मध्य का विवाद ---

 

मैं रूस में भी रहा हूँ और यूक्रेन में भी। एक बात की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि रूस और यूक्रेन आपस में शत्रु भी हो सकते हैं !! सोवियत यूनियन के समय रूस के बाद यूक्रेन सर्वाधिक महत्वपूर्ण गणराज्य था सोवियत संघ का। सोवियत सेना में और प्रशासन में अनेक वरिष्ठ अधिकारी यूक्रेन के थे। हजारों रूसी व यूक्रेनी युवक-युवतियों ने आपस में विवाह कर रखे थे। आश्चर्य है, अब उनमें युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न हो गई है। मुझे लगता है यूक्रेन गलती कर रहा है और अमेरिका के बहकावे में आ गया है। उसे धैर्य से काम लेना चाहिए।
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मुख्य विवाद क्रीमिया के कारण है, जो ऐतिहासिक सृष्टि से नहीं होना चाहिए था। सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के समय क्रीमिया में तातार जाति के मुसलमान रहते थे। १८ वी सदी में क्रीमिया पर रूस ने अधिकार कर लिया।सोवियत संघ बनने के बाद वहाँ के तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने क्रीमिया के सब मुसलमानों को वहाँ से हटा कर रूस की मुख्य भूमि में बसा दिया, और उस क्षेत्र को तातारिस्तान गणराज्य का नाम दिया, जिसकी राजधानी कजान है। यह रूस का बहुत सम्पन्न क्षेत्र है।
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जोसेफ स्टालिन ने क्रीमिया में रूसी नस्ल के लोगों को बसा दिया। बाद में अन्य नस्लों के लोगों को भी वहाँ आने की अनुमति मिल गई और कई सौ परिवार तातार मुसलमानों के भी बापस वहाँ आ गए। जोसेफ़ स्टालिन के बाद निकिता ख्रुश्चेव सत्ता में आए तो उन्होने सन १९५४ में यूक्रेन गणराज्य को भेंट में क्रीमिया प्रायदीप दे दिया। तब सोवियत संघ था अतः किसी भी तरह के विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं था।
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२६ दिसंबर १९९१ को सोवियत संघ का विघटन हो गया और रूस व यूक्रेन अलग-अलग देश हो गए।
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२६ फरवरी २०१४ को हथियारबंद रूस समर्थकों ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप में संसद और सरकारी इमारतों पर अधिकार कर लिया। ६ मार्च २०१४ को क्रीमिया की संसद ने रूसी संघ का हिस्सा बनने के पक्ष में मतदान किया। जनमत संग्रह के परिणामों को आधार बनाकर १८ मार्च २०१४ को क्रीमिया को रूसी फेडरेशन में मिलाने के प्रस्ताव पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही क्रीमिया रूसी फेडरेशन का हिस्सा बन गया। रूस ने वहाँ अपनी सेना भेज दी और अपनी स्थिति बहुत मज़बूत कर ली। रूस का तर्क यह था कि वहाँ रूसी मूल के लोग अधिक हैं, और १८वीं शताब्दी से ही वह रूस का भाग है।
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दूसरा विवाद अजोव सागर में प्रवेश को लेकर "कर्च जलडमरूमध्य" पर है। यह कोई बड़ा मामला नहीं है। इसे दोनों पार्टियां आमने-सामने बैठकर आराम से सुलझा सकती हैं। इसमें रूस का अहंकार आड़े आ गया अतः रूस की गलती अधिक है। बुद्धिमानी से देखा जाये तो यह विवाद का विषय ही नहीं है।
कृपा शंकर
११ सितंबर २०२१

अमेरिका और तालीबान दोनों लंगोटिया यार हैं, - जो दुनियाँ को और अपनी खुद की जनता को मूर्ख बनाने के लिए - एक-दूसरे को आँखें दिखा रहे हैं ---

अमेरिका और तालीबान दोनों लंगोटिया यार हैं, - जो दुनियाँ को और अपनी खुद की जनता को मूर्ख बनाने के लिए - एक-दूसरे को आँखें दिखा रहे हैं ---
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अफगानिस्तान का विश्व की राजनीति में कोई महत्व नहीं है। यह एशिया का सबसे अधिक गरीब देश है। इसके पड़ोसी ताजिकिस्तान जैसे देश भी बहुत अधिक गरीब हैं। लेकिन विश्व के सबसे अधिक खूँखार आतंकियों द्वारा इस देश पर अधिकार करने से यह देश इस समय सम्पूर्ण विश्व में चर्चित है। यहाँ का गृहमंत्री विश्व का सबसे बड़ा घोषित आतंकी है, जिसे पकड़वाने पर बहुत बड़ा पुरस्कार बोला हुआ है। भारत में दाऊद इब्राहिम इसका ही सहयोगी था।
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अफगानिस्तान की समस्या का मूल और एकमात्र कारण अफीम की खेती और उसका प्रतिबंधित ड्रग व्यापार है। तालीबानी आतंकवाद के जनक तो ब्रिटेन और अमेरिका हैं जो तालिबान के संस्थापक भी हैं। तालिबान की अपनी आमदनी का स्रोत भी ड्रग व्यापार है। ड्रग के अवैध धंधे में अमेरिका और ब्रिटेन का भी हाथ है जो इस धंधे से खूब धन कमाते हैं।
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तालिबान की स्थापना के बाद से ही अफगानिस्तान में अफीम की खेती तेजी से बढ़ी, लेकिन उसकी असली वृद्धि अमरीका के प्रवेश के पश्चात ही हुई। अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रपतियों के शासन में अफीम की खेती अफगानिस्तान में सबसे तेजी से बढ़ी जिसका निर्यात तालिबान और पाकिस्तान की ISI की सहायता से होता था। अब तो अफगानिस्तान में अफीम की खेती बहुत अधिक बढ़ गयी है। ट्रम्प और बाइडेन ही नहीं, अमेरिका के सभी राष्ट्रपतियों की इसमें मिलीभगत है। असली अपराधी तो अमेरिका के शीर्ष नेता और अधिकारी हैं जिनकी पूंजी से अफीम की खेती की जाती है। तालिबान तो केवल बटाईदार है, और पाकिस्तान एक दलाल।
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मूल रूप से अफीम एक औषधि है जिस से नशीली दवा अंग्रेजों ने बनाई - चीनियों को अफीमची बनाने के लिये। अफगानिस्तान पर अधिकार करना ब्रिटेन का उद्देश्य कभी भी नहीं था, उसका उद्देश्य था - पठान कबीले के सरदारों को अफीम उगाने के लिए डरा-धमका कर बाध्य करना।
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विश्व के धन-पिशाच दानव ड्रग व्यापारियों को अफगानिस्तान जैसा देश और तालिबान जैसी सरकार चाहिये जो आराम से अफीम की खेती कर सके। उन्हें वहाँ की जनता के सुख-दुःख और जीने-मरने से कोई मतलब नहीं है। उन्हें सिर्फ अपना मुनाफा ही दिखाई देता है।
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तालिबान के ही मुल्ला उमर ने अफीम पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके एक साल होते ही अमेरिका ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया और अफीम की खेती शुरू करवा दी। अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में वर्षों से डटी हुई थी - अफीम के विरोधियों का सफाया करने के लिए। कहने के लिये तालिबान का लक्ष्य जिहाद है। इस्लाम में तो नशा हराम है तो फिर तालिबानी जिहादी कैसे हुए? यह अवश्य सत्य है कि वे फूहड़, गंवार, असभ्य और उन्मादी हैं, जिन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है।
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अमेरिका, ब्रिटेन और रूस यथार्थ में भारत के कभी मित्र नहीं हो सकते। वे कभी नहीं चाहेंगे कि भारत एक शक्तिशाली देश बने। पाकिस्तान का निर्माण - ब्रिटेन, अमेरिका और रूस की चाल थी, भारत को सदा के लिए पिछड़ा और कमजोर रखने के लिए। बाकी सब मात्र मोहरे थे। अमेरिका और ब्रिटेन भारत पर पाकिस्तान और तालीबान से एक युद्ध थोपना चाहते हैं। तालिबान को अफीम बेचना तो आता है, लेकिन लड़ना नहीं। पाकिस्तान के भी सभी वरिष्ठ सैन्य अधिकारी अरबपति सेठ हैं जिन का खूब धन विदेशों में जमा है। उनकी रुचि अपने धन को सुरक्षित रखने में है, न कि कश्मीर में। जनता को मूर्ख बनाने के लिए ये कश्मीर का राग अलापते रहते हैं। तालीबान की काट यह है कि हम उन्हें एक पख्तूनिस्तान बनाने के लिए प्रोत्साहित करें। यदि पख्तूनिस्तान बनता है तो पाकिस्तान का विघटन निश्चित है।
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वर्तमान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत एक महान शक्तिशाली देश है जो चीन, पाकिस्तान और तालीबान - तीनों से एक साथ निपट सकता है। निकट भविष्य के बारे में कुछ भी कहना कठिन है। घटनाक्रम नित्य बदल रहे हैं। भारत विजयी है और सदा विजयी रहेगा।
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पुनश्च: -- दुनियाँ का सबसे बड़ा क्रूर नाटक अफगानिस्तान में हो रहा है जिसमें गरीब व भोली जनता मर रही है, लेकिन कुछ धन-पिशाच दानव समूह धन कमा रहे हैं।
पुनश्च: -- अमेरिकी सैनिक पढ़े-लिखे, समझदार व संवेदनशील हैं। अनेक अमेरिकी सैनिकों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या, और सेना में निराशा व विद्रोह की भावना, -- ये मुख्य कारण थे अमेरिका द्वारा सेना बापस बुलाने के।
११ सितंबर २०२१

हमारा धर्म ही हमारी रक्षा करेगा ---

 

हमारा धर्म ही हमारी रक्षा करेगा ---
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विश्व के दानव समाज (मार्क्सवादी, चर्चवादी, और शैतान पूजक गोपनीय समूहों) द्वारा अमेरिका में आज १० से १३ सितंबर २०२१ से एक ३ दिवसीय Dismantling Global Hindutva यानि "हिन्दुत्व का विध्वंस करो" नाम का एक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। जिसका लक्ष्य है पूरे विश्व से हिन्दुत्व को उखाड़ फेंकना। इस कार्यक्रम के आयोजक चर्च की सहायता से चलाये जा रहे कई बड़े-बड़े विश्वविद्यालय हैं। इन असुरों का लक्ष्य भारत से हिन्दुत्व को सदा के लिए नष्ट करना है।
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इस तरह के राक्षसी प्रवृति के लोग पहले भी हुए हैं, और कई बार इंन्होंने अपने दानव समाज का राज्य स्थापित करने का प्रयास किया है। ये कभी सफल नहीं होंगे। हम अपने धर्म पर दृढ़ रहेंगे और पूर्ण सत्यनिष्ठा से धर्म का पालन करते हुए उसकी रक्षा करेंगे। इस समय तो हमारी रक्षा स्वयं भगवान कर रहे हैं, लेकिन अंततः हमारा धर्म ही हमारी रक्षा करेगा।
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विश्व के दानव समाज को हिन्दुत्व पसंद नहीं है। संयुक्त राष्ट्र दानवाधिकार आयोग भी उन्हीं के अधिकार में है। विश्व की ही नहीं, भारत की मीडिया पर भी उन्हीं का अधिकार है। भारत की मीडिया भारत का नहीं, दानवों का हित देखती है। उदाहरण के लिए सन १९७१ ई⋅ में २४ लाख से बहुत अधिक हिन्दुओं को पाकिस्तानी सेना ने पूर्वीं पाकिस्तान में मार डाला था। सारे संसार की मीडिया चुप थी। कहीं किसी ने कुछ लिखा भी तो लाख को हजार लिखा और हिन्दू को बंगाली लिखा।
हिन्दुओं की शिकायत अन्य कोई नहीं सुनेगा। हिन्दुओं को स्वयं जागना पड़ेगा।
ॐ तत्सत् !!
१० सितंबर २०२१
आत्मा शाश्वत है। जीवात्मा अपने संचित व प्रारब्ध कर्मफलों को भोगने के लिए बार-बार पुनर्जन्म लेती है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है। जब तक ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती तब तक संचित और प्रारब्ध कर्मफलों से कोई मुक्ति नहीं है। ये सनातन नियम हैं जो इस सृष्टि को चला रहे हैं। यह हमारा सनातन धर्म है।
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विश्व के धन-पिशाच आसुरी दानव समाज ने १० से १३ सितंबर २०२१ तक अमेरिका में एक ३ दिवसीय "Dismantling Global Hindutva" यानि "हिन्दुत्व का विध्वंस करो" नाम का एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसका लक्ष्य पूरे विश्व से हिन्दुत्व को उखाड़ फेंकना था। इस कार्यक्रम के आयोजक मार्क्सवादियों और चर्च की सहायता से चलाये जा रहे कई बड़े-बड़े विश्वविद्यालय थे। इन असुरों का लक्ष्य विश्व से सनातन धर्म व संस्कृति को नष्ट करना है। इस तरह के राक्षसी प्रवृति के लोग पहले भी हुए हैं, और कई बार इन्होंने अपने दानव समाज का राज्य स्थापित करने का प्रयास किया है। ये कभी सफल नहीं होंगे।
१४ सितंबर २०२१
 

ब्रह्ममय होकर ब्रह्म का ध्यान करो ---

 

ब्रह्ममय होकर ब्रह्म का ध्यान करो ---
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ध्यान की गहराई में ही अनुभव होगा कि भगवान ही अक्षर-ब्रह्म हैं। उन्हीं के शासन में सारी सृष्टि चल रही है। चाहे देवता हों या मनुष्य, सब उन्हीं से शासित हैं। भगवान को ही ब्रह्म कहते हैं, वे कूटस्थ हैं। हमें निरंतर उनका स्मरण करते रहना चाहिए। जिस पर भी भगवान की कृपा है, उस का आचरण और जीवन ही ब्रह्ममय हो जाता है। वह कभी भी यह दिखावा नहीं करता कि उसे ब्रह्म का ज्ञान है। जिसे ब्रह्म का ज्ञान नहीं है, वह ही ब्रह्म की जिज्ञासा करता है, लेकिन ब्रह्मज्ञ कभी भूल से भी अपने मुंह से नहीं कहता कि वह ब्रह्मज्ञ है।
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भगवान के ध्यान के लिए हर पल एक शुभ मुहूर्त होता है। जब भी भगवान की याद आए वह पल एक शुभ मुहूर्त है, जो अनेक जन्मों के सद्कर्मों का फल है। भगवान की भक्ति के लिए कोई देश-काल या शौच-अशौच का बंधन नहीं है। निरंतर भगवान का स्मरण रहे। जब भूल जाएँ तब याद आते ही फिर स्मरण आरंभ कर दें।
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हर साँस के आने-जाने व जाने-आने के मध्य का क्षण एक संधि-क्षण होता है जो सर्वाधिक शुभ समय होता है। उस समय भगवान का स्मरण रहना चाहिए। जब दोनों नासिका छिद्रों से साँस चल रही हो वह समय सर्वश्रेष्ठ है। उस समय भगवान का ध्यान सिद्ध होता है। उस समय का उपयोग भगवान के ध्यान के लिए करना चाहिए।
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यथार्थ में भगवान ही हमारे माध्यम से सांसें ले रहे हैं, और हर जीव को जीवंत रखे हुए हैं। उनके स्मरण और प्रेम में व्यतीत किया हुआ जीवन ही सार्थक है। जो भी क्षण परमात्मा की स्मृति में, उनके स्मरण में लिकल जाए वह ही शुभ और सर्वश्रेष्ठ है, बाकी समय विराट मरुभूमि की रेत में गिरे जल की कुछ बूंदों की तरह निरर्थक है।
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निरंतर अपने ब्रह्मत्व का ध्यान करो। ब्रह्ममय होकर ब्रह्म का ध्यान करो। पवित्र देह और पवित्र मन के साथ, एक ऊनी कम्बल पर कमर सीधी रखते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुँह कर के बैठ जाओ। भ्रूमध्य में भगवान के अपने प्रियतम रूप का ध्यान करो। मान लो यदि आप भगवान शिव का ध्यान करते हो तो देखिये कि वे पद्मासन में शाम्भवी मुद्रा में बैठे हुए हैं, उनके सिर से ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है, और दसों दिशाएँ उनके वस्त्र हैं। धीरे धीरे उनके रूप का विस्तार करो। आपकी देह, आपका कमरा, आपका घर, आपका नगर, आपका देश, यह पृथ्वी, यह सौर मंडल, यह आकाश गंगा, सारी आकाश गंगाएँ, और सारी सृष्टि व उससे परे भी जो कुछ है वह सब शिवमय है। उस शिव रूप का ध्यान करो। वह शिव आप स्वयं हो। आप यह देह नहीं बल्कि साक्षात शिव हो। बीच में एक-दो बार आँख खोलकर अपनी देह को देख लो और बोध करो कि आप यह देह नहीं हो बल्कि शिव हो। उस शिव रूप में यथासंभव अधिकाधिक समय रहो। सारे ब्रह्मांड में एक ध्वनी गूँज रही है, उस ध्वनी को ही निरंतर सुनो। वह ध्वनि ही अक्षर-ब्रह्म है। हर आती-जाती साँस के साथ यह भाव रहे कि मैं "वह" हूँ -- "हँ सः" या "सोsहं"। यही अजपा-जप है, यही प्रत्याहार, धारणा और ध्यान है। यही है शिव बनकर शिव का ध्यान, यही है सर्वोच्च साधना।
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यह साधना उन्हीं को सिद्ध होती है जो निर्मल, निष्कपट है, जिन में कोई कुटिलता नहीं है और जो सत्यनिष्ठ और परम प्रेममय हैं। उपरोक्त का अधिकतम स्वाध्याय करो। भगवान की परम कृपा से आप सब समझ जायेंगे। भगवान सबका कल्याण करेंगे। अपने अहंकार, अस्तित्व और पृथकता का बोध उनमें समर्पित कर दो।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० सितंबर २०२१