अमेरिका और तालीबान दोनों लंगोटिया यार हैं, - जो दुनियाँ को और अपनी खुद की जनता को मूर्ख बनाने के लिए - एक-दूसरे को आँखें दिखा रहे हैं ---
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अफगानिस्तान का विश्व की राजनीति में कोई महत्व नहीं है। यह एशिया का सबसे अधिक गरीब देश है। इसके पड़ोसी ताजिकिस्तान जैसे देश भी बहुत अधिक गरीब हैं। लेकिन विश्व के सबसे अधिक खूँखार आतंकियों द्वारा इस देश पर अधिकार करने से यह देश इस समय सम्पूर्ण विश्व में चर्चित है। यहाँ का गृहमंत्री विश्व का सबसे बड़ा घोषित आतंकी है, जिसे पकड़वाने पर बहुत बड़ा पुरस्कार बोला हुआ है। भारत में दाऊद इब्राहिम इसका ही सहयोगी था।
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अफगानिस्तान की समस्या का मूल और एकमात्र कारण अफीम की खेती और उसका प्रतिबंधित ड्रग व्यापार है। तालीबानी आतंकवाद के जनक तो ब्रिटेन और अमेरिका हैं जो तालिबान के संस्थापक भी हैं। तालिबान की अपनी आमदनी का स्रोत भी ड्रग व्यापार है। ड्रग के अवैध धंधे में अमेरिका और ब्रिटेन का भी हाथ है जो इस धंधे से खूब धन कमाते हैं।
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तालिबान की स्थापना के बाद से ही अफगानिस्तान में अफीम की खेती तेजी से बढ़ी, लेकिन उसकी असली वृद्धि अमरीका के प्रवेश के पश्चात ही हुई। अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रपतियों के शासन में अफीम की खेती अफगानिस्तान में सबसे तेजी से बढ़ी जिसका निर्यात तालिबान और पाकिस्तान की ISI की सहायता से होता था। अब तो अफगानिस्तान में अफीम की खेती बहुत अधिक बढ़ गयी है। ट्रम्प और बाइडेन ही नहीं, अमेरिका के सभी राष्ट्रपतियों की इसमें मिलीभगत है। असली अपराधी तो अमेरिका के शीर्ष नेता और अधिकारी हैं जिनकी पूंजी से अफीम की खेती की जाती है। तालिबान तो केवल बटाईदार है, और पाकिस्तान एक दलाल।
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मूल रूप से अफीम एक औषधि है जिस से नशीली दवा अंग्रेजों ने बनाई - चीनियों को अफीमची बनाने के लिये। अफगानिस्तान पर अधिकार करना ब्रिटेन का उद्देश्य कभी भी नहीं था, उसका उद्देश्य था - पठान कबीले के सरदारों को अफीम उगाने के लिए डरा-धमका कर बाध्य करना।
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विश्व के धन-पिशाच दानव ड्रग व्यापारियों को अफगानिस्तान जैसा देश और तालिबान जैसी सरकार चाहिये जो आराम से अफीम की खेती कर सके। उन्हें वहाँ की जनता के सुख-दुःख और जीने-मरने से कोई मतलब नहीं है। उन्हें सिर्फ अपना मुनाफा ही दिखाई देता है।
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तालिबान के ही मुल्ला उमर ने अफीम पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके एक साल होते ही अमेरिका ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया और अफीम की खेती शुरू करवा दी। अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में वर्षों से डटी हुई थी - अफीम के विरोधियों का सफाया करने के लिए। कहने के लिये तालिबान का लक्ष्य जिहाद है। इस्लाम में तो नशा हराम है तो फिर तालिबानी जिहादी कैसे हुए? यह अवश्य सत्य है कि वे फूहड़, गंवार, असभ्य और उन्मादी हैं, जिन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है।
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अमेरिका, ब्रिटेन और रूस यथार्थ में भारत के कभी मित्र नहीं हो सकते। वे कभी नहीं चाहेंगे कि भारत एक शक्तिशाली देश बने। पाकिस्तान का निर्माण - ब्रिटेन, अमेरिका और रूस की चाल थी, भारत को सदा के लिए पिछड़ा और कमजोर रखने के लिए। बाकी सब मात्र मोहरे थे। अमेरिका और ब्रिटेन भारत पर पाकिस्तान और तालीबान से एक युद्ध थोपना चाहते हैं। तालिबान को अफीम बेचना तो आता है, लेकिन लड़ना नहीं। पाकिस्तान के भी सभी वरिष्ठ सैन्य अधिकारी अरबपति सेठ हैं जिन का खूब धन विदेशों में जमा है। उनकी रुचि अपने धन को सुरक्षित रखने में है, न कि कश्मीर में। जनता को मूर्ख बनाने के लिए ये कश्मीर का राग अलापते रहते हैं। तालीबान की काट यह है कि हम उन्हें एक पख्तूनिस्तान बनाने के लिए प्रोत्साहित करें। यदि पख्तूनिस्तान बनता है तो पाकिस्तान का विघटन निश्चित है।
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वर्तमान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत एक महान शक्तिशाली देश है जो चीन, पाकिस्तान और तालीबान - तीनों से एक साथ निपट सकता है। निकट भविष्य के बारे में कुछ भी कहना कठिन है। घटनाक्रम नित्य बदल रहे हैं। भारत विजयी है और सदा विजयी रहेगा।
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पुनश्च: -- दुनियाँ का सबसे बड़ा क्रूर नाटक अफगानिस्तान में हो रहा है जिसमें गरीब व भोली जनता मर रही है, लेकिन कुछ धन-पिशाच दानव समूह धन कमा रहे हैं।