Tuesday 14 September 2021

रूस और यूक्रेन के मध्य का विवाद ---

 

मैं रूस में भी रहा हूँ और यूक्रेन में भी। एक बात की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि रूस और यूक्रेन आपस में शत्रु भी हो सकते हैं !! सोवियत यूनियन के समय रूस के बाद यूक्रेन सर्वाधिक महत्वपूर्ण गणराज्य था सोवियत संघ का। सोवियत सेना में और प्रशासन में अनेक वरिष्ठ अधिकारी यूक्रेन के थे। हजारों रूसी व यूक्रेनी युवक-युवतियों ने आपस में विवाह कर रखे थे। आश्चर्य है, अब उनमें युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न हो गई है। मुझे लगता है यूक्रेन गलती कर रहा है और अमेरिका के बहकावे में आ गया है। उसे धैर्य से काम लेना चाहिए।
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मुख्य विवाद क्रीमिया के कारण है, जो ऐतिहासिक सृष्टि से नहीं होना चाहिए था। सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के समय क्रीमिया में तातार जाति के मुसलमान रहते थे। १८ वी सदी में क्रीमिया पर रूस ने अधिकार कर लिया।सोवियत संघ बनने के बाद वहाँ के तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने क्रीमिया के सब मुसलमानों को वहाँ से हटा कर रूस की मुख्य भूमि में बसा दिया, और उस क्षेत्र को तातारिस्तान गणराज्य का नाम दिया, जिसकी राजधानी कजान है। यह रूस का बहुत सम्पन्न क्षेत्र है।
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जोसेफ स्टालिन ने क्रीमिया में रूसी नस्ल के लोगों को बसा दिया। बाद में अन्य नस्लों के लोगों को भी वहाँ आने की अनुमति मिल गई और कई सौ परिवार तातार मुसलमानों के भी बापस वहाँ आ गए। जोसेफ़ स्टालिन के बाद निकिता ख्रुश्चेव सत्ता में आए तो उन्होने सन १९५४ में यूक्रेन गणराज्य को भेंट में क्रीमिया प्रायदीप दे दिया। तब सोवियत संघ था अतः किसी भी तरह के विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं था।
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२६ दिसंबर १९९१ को सोवियत संघ का विघटन हो गया और रूस व यूक्रेन अलग-अलग देश हो गए।
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२६ फरवरी २०१४ को हथियारबंद रूस समर्थकों ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप में संसद और सरकारी इमारतों पर अधिकार कर लिया। ६ मार्च २०१४ को क्रीमिया की संसद ने रूसी संघ का हिस्सा बनने के पक्ष में मतदान किया। जनमत संग्रह के परिणामों को आधार बनाकर १८ मार्च २०१४ को क्रीमिया को रूसी फेडरेशन में मिलाने के प्रस्ताव पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही क्रीमिया रूसी फेडरेशन का हिस्सा बन गया। रूस ने वहाँ अपनी सेना भेज दी और अपनी स्थिति बहुत मज़बूत कर ली। रूस का तर्क यह था कि वहाँ रूसी मूल के लोग अधिक हैं, और १८वीं शताब्दी से ही वह रूस का भाग है।
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दूसरा विवाद अजोव सागर में प्रवेश को लेकर "कर्च जलडमरूमध्य" पर है। यह कोई बड़ा मामला नहीं है। इसे दोनों पार्टियां आमने-सामने बैठकर आराम से सुलझा सकती हैं। इसमें रूस का अहंकार आड़े आ गया अतः रूस की गलती अधिक है। बुद्धिमानी से देखा जाये तो यह विवाद का विषय ही नहीं है।
कृपा शंकर
११ सितंबर २०२१

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