Friday 17 January 2020

हमारा जीवन सदा उत्तरायण, धर्मपरायण व राममय रहे ....

लोहिड़ी / मकर संक्रांति / पोंगल के शुभ अवसर पर चलो हम सब तीर्थराज त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं ताकि हमारा जीवन सदा उत्तरायण, धर्मपरायण व राममय रहे|
.
इड़ा भगवती गंगा है, पिंगला यमुना नदी है और उनके मध्य में सुषुम्ना सरस्वती है| इस त्रिवेणी का संगम तीर्थराज है जहां स्नान करने से सर्व पापों से मुक्ति मिलती है| वह तीर्थराज त्रिवेणी प्रयाग का संगम कहाँ है? वह स्थान ... तीर्थराज त्रिवेणी का संगम हमारे भ्रूमध्य में है| अपनी चेतना को भ्रूमध्य में और उससे ऊपर रखना ही त्रिवेणी संगम में स्नान करना है| आने-जाने वाली हर सांस के प्रति सजग रहें| चेतना का निरंतर विकास करते रहें|
.
हम अनंत, सर्वव्यापक, असम्बद्ध, अलिप्त व शाश्वत हैं| हं सः/सो हं| ॐ || हमारे हृदय की हर धड़कन, हर आती जाती साँस, ..... परमात्मा की कृपा है| हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है| हम जीवित हैं सिर्फ परमात्मा के लिए| सचेतन रूप से परमात्मा से अन्य कुछ भी हमें नहीं चाहिए| माया के एक पतले से आवरण ने हमें परमात्मा से दूर कर रखा है| उस आवरण के हटते ही हम परमात्मा के साथ एक हैं| उस आवरण से मुक्त होंने का प्रयास ही साधना है| यह साधना हमें स्वयं को ही करनी पड़ेगी, कोई दूसरा इसे नहीं कर सकता| न तो इसका फल कोई साधू-संत हमें दे सकता है और न अन्य किसी का आशीर्वाद| अपने स्वयं का प्रयास ही हमें मुक्त कर सकता है| अतः दूसरों के पीछे मत भागो| अपने समक्ष एक जलाशय है जिसे हमें पार करना है, तो तैर कर पार तो स्वयं को ही करना होगा, कोई दूसरा यह कार्य नहीं कर सकता| किनारे बैठकर तैरूँगा तैरूँगा बोलने से कोई पार नहीं जा सकता| उसमें कूद कर तैरते हुए पार तो स्वयं को ही जाना है|
.
जब भी भगवान की याद आये वही सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है| उसी क्षण स्वयं प्रेममय बन जाओ, यही सर्वश्रेष्ठ साधना है| अपनी व्यक्तिगत साधना/उपासना में एक नए संकल्प और नई ऊर्जा के साथ गहनता लायें .....
> रात्रि को सोने से पूर्व भगवान का ध्यान कर के निश्चिन्त होकर जगन्माता की गोद में सो जाएँ| > दिन का प्रारम्भ परमात्मा के प्रेम रूप पर ध्यान से करें| >पूरे दिन परमात्मा की स्मृति रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही पुनश्चः स्मरण करते रहें|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जनवरी २०२०

लोहड़ी के त्योहार की अग्रिम शुभ कामनायें .....

लोहड़ी के त्योहार की अग्रिम शुभ कामनायें .....
-----------------------------------------------
एक मध्यकालीन महान राजपूत हुतात्मा धर्मरक्षक महावीर दुल्ला भट्टी (मृत्यु: १५९९) की स्मृति में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाला लोहड़ी का त्योहार हर वर्ष १३ जनवरी को मनाया जाता है| अब क्रमशः होने वाले खगोलीय परिवर्तनों के कारण १४ जनवरी को मनाया जायेगा| मकर संक्रांति भी १४ जनवरी के स्थान पर १५ जनवरी को पड़ेगी| पंजाब में जो वीर योद्धा दुल्ला भट्टी के नाम से प्रसिद्ध था, राजपूताने में वह दूलिया भाटी के नाम से विख्यात था| राजस्थान में भी नौटंकी के लोक कलाकार दूलिया का नाटक खुले मैदान में दिखाते थे| लगभग ६० वर्ष पूर्व झुञ्झुणु में देखे गए लोकनायक दूलिया के नाटक की एक स्मृति मुझे भी है|
.
पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है| रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और रेवड़ी, मूंगफली आदि खाते हैं| गीत भी गाये जाते हैं और महिलाएं नृत्य भी करती हैं|
.
मुगल बादशाहों के काल में विशेषकर अकबर बादशाह के काल में हिन्दू कन्याओं का अपहरण बहुत अधिक होने लगा था| विवाहों के अवसर पर जब सभी सगे-संबंधी एकत्र होते थे, मुगल सैनिक हमला कर के सभी पुरूषों को मार देते और महिलाओं का अपहरण कर के ले जाते| हिन्दू बहुत अधिक आतंकित थे| तभी से हिंदुओं में बाल-विवाह और रात्री-विवाह की प्रथा पड़ी| तभी से छोटे बच्चों का विवाह रात के अंधेरे में चुपचाप कर दिया जाने लगा|
.
दुल्ला भट्टी एक राजपूत थे जिन्हें बलात् मुसलमान बना दिया गया था| पर हिंदुओं की गरीबी और दुःख-दर्द उन से सहन नहीं हुआ और वे विद्रोही बन बैठे| दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे| उन्होंने एक छापामार विद्रोहियों की सेना बनाकर मुगल अमीरों और जमीदारों से धन लूटकर गरीबो में बाँटने के अलावा, जबरन रूप से बेचीं जा रही हजारों हिंदू लड़कियों को मुक्त करवाया| साथ ही उन्होंने हिंदू परम्पराओं के अनुसार उन सभी हिन्दू लड़कियों का विवाह हिंदू लड़कों से करवाने की व्यवस्था की, और उन्हें दहेज भी प्रदान किया| इस कारण वह पंजाब के हिंदुओं में एक लोक-नायक बन गए| धीरे-धीरे दुला भट्टी के प्रशंसकों और चाहने वालों की संख्या बढऩे लगी| सताये हुए निर्धन हिन्दू अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसके पास जाते और अपना दुखड़ा रोते| उनके दुखों को सुनकर दुला भट्टी उठ खड़ा होता और जैसे भी संभव होता उनकी समस्याओं का समाधान करता|
.
एक धर्मांतरित मुसलमान होकर भी हिंदुओं की सेवा करने के कारण दुला भट्टी से अकबर बादशाह बहुत अधिक नाराज हुआ| उस ने दुला भट्टी को एक डाकू घोषित कर दिया और देखते ही उसकी हत्या का आदेश भी जारी कर दिया| अकबर बादशाह के सिपाही कभी भी दुला भट्टी को जीवित नहीं पकड़ सके क्योंकि उसका भी सूचनातंत्र बहुत ही गहरा और व्यापक था| वह मुगलों को लूटता और उस धन से निर्धन हिंदुओं की पुत्रियों का विवाह बड़े धूमधाम से करता| कहीं-कहीं वह यदि व्यक्तिगत रूप से किसी विवाह समारोह में उपस्थित ना हो पाता था तो वहाँ अपनी ओर से धन भेजकर सारी व्यवस्था अपने लोगों के माध्यम से करा देता| दुला भट्टी के लोग पंजाब, जम्मू कश्मीर आज के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा, राजस्थान और पाकिस्तान के भी बहुत बड़े भूभाग पर सक्रिय हो गये थे| इतने बड़े भूभाग में अकबर ने कई बार भट्टी को मारने का अभियान चलाया, परंतु उसे कभी सफलता नहीं मिली|
.
एक बार एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पुत्री के विवाह में सहायता प्राप्त करने हेतु दुला भट्टी के पास गया| उस गरीब ब्राह्मण की दरिद्रता को देखकर दुला भट्टी बहुत अधिक दु:खी हुआ| उस गरीब कन्या के कोई भाई नहीं था इस लिए दुला भट्टी ने उसे अपनी धर्मबहिन बना लिया और स्वयं उपस्थित रहकर विवाह करवाने का वचन भी दे दिया| यह समाचार अपने गुप्तचरों से अकबर को मिल गया| उसने उस गाँव के आसपास अपने गुप्तचर इस आदेश के साथ नियुक्त कर दिये कि देखते ही बिना किसी चेतावनी के दुला भट्टी की हत्या कर दी जाये|
.
विवाह कार्यक्रम में दुला भट्टी दहेज का सारा सामान लेकर स्वयं उपस्थित हुआ| विवाह के बाद जब डोली विदा हो रही थी तब अकबर के छद्म सैनिकों को पता चल गया और उन्होने उस पर बिना किसी चेतावनी के आक्रमण कर दिया| उसे संभलने का अवसर भी नहीं मिला और वह महान धर्मरक्षक महावीर मारा गया| जिस दिन उस की हत्या हुई वह दिन मकर संक्रांति से पहले वाला दिन था|
.
दुला भट्टी के रोम-रोम में अपने देशवासियों के प्रति प्रेम भरा था, वह उनकी व्यथाओं से व्यथित था और उनका उद्घार चाहता था| अपने इसी आदर्श के लिये अपनी समकालीन मुगल सत्ता के सबसे बड़े बादशाह अकबर से टक्कर ली| वह जब तक जीवित रहा तब तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता रहा| वह परम राष्ट्रभक्त था| दुला भट्टी की स्मृति में पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान और पाकिस्तान में (अकबर का साम्राज्य की लगभग इतने ही क्षेत्र पर था) लोहिड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है| वह महावीर दुल्ला भट्टी अमर है और अमर रहेगा| भारत माता की जय|
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२०

परमात्मा में निरंतर रमण ही सद् आचरण यानि सदाचार है .....

परमात्मा में निरंतर रमण ही सद् आचरण यानि सदाचार है .....
.
आध्यात्म में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ..... सद् आचरण में तत्परता| रण का आध्यात्मिक अर्थ है ... जिसमें हमारी आत्मा रमण कर सके उसका निज जीवन में आविर्भाव यानि निरंतर आगमन| हम शाश्वत आत्मा है और सिर्फ परमात्मा में ही रमण कर सकते हैं जैसे महासागर में जल की एक बूँद| हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें ... यही सद् आचरण है जिसके लिए हमें सदा तत्पर रहना चाहिए| जो परमात्मा में निरंतर रमण करते हैं उन्हें किसी उपदेश की आवश्यकता नहीं है| उनके मुँह से जो निकल जाता है वही उपदेश है|
.
हम परमात्मा में निरंतर रमण करते रहें, इसके लिए ... (१) हमारे जीवन में कुटिलता नहीं हो| (२) हम सत्यवादी हों| (३) सबके प्रति प्रेम हमारे ह्रदय में हो| (४) हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों
ब्रह्मा जी ने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्व को दिया| ब्रह्मा जी का ज्येष्ठ पुत्र कौन हो सकता है? थर्व का अर्थ है कुटिलता| जिनके जीवन में कोई कुटिलता नहीं है वे अथर्व यानि ब्रह्मा जी के ज्येष्ठ पुत्र, और ब्रह्मज्ञान के अधिकारी है|
परमात्मा सत्य है, इसीलिए हम उन्हें भगवान सत्यनारायण कहते हैं| हमारे जीवन में जितना झूठ-कपट है, उतना ही हम परमात्मा से दूर हैं| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया हुआ कोई भी मन्त्र-जप, पूजा-पाठ और प्रार्थना प्रभावी नहीं होती| असत्यवादी कभी परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता| सिर्फ धर्मरक्षा और प्राणरक्षा के लिए कहा गया झूठ तो माफ़ हो सकता है, अन्यथा नहीं| झूठे व्यक्ति नर्कपथगामी हैं|
जब हमारे ह्रदय में परमात्मा के प्रति प्रेम होगा तभी हम दूसरों को प्यार और निज जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ कर सारे गुणों को स्वयं में आकर्षित कर सकते हैं|
जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| हमारे विचारों और संकल्प का प्रभाव सभी पर पड़ता है, अतः अपने विचारों पर सदा दृष्टी रखनी चाहिए| कुविचार को तुरंत त्याग दें, और सुविचार पर दृढ़ रहें| दूसरों से कभी कोई अपेक्षा न रखें पर हर परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ करें|
.
हम सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं, अतः सभी को सादर नमन|ॐ तत्सत ! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर बावलिया मुद्गल
झुंझुनूं (राजस्थान)
१३ जनवरी २०२०

यह सोचना छोड़ दें कि कौन हमारे बारे में क्या सोच रहा है ....

हम इसी क्षण से यह सोचना छोड़ दें कि कौन हमारे बारे में क्या सोच रहा है| ध्यान सिर्फ इसी बात का सदा रहे कि स्वयं जगन्माता यानी माँ भगवती हमारे बारे में क्या सोचेंगी| भगवान माता भी है और पिता भी| माँ का रूप अधिक ममता और प्रेममय होता है| भगवान के मातृरूप पर ध्यान अधिक फलदायी होता है| जितना अधिक हम भगवान का ध्यान करते हैं, उतना ही अधिक हम स्वयं का ही नहीं, पूरी समष्टि का उपकार करते हैं| यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम कर सकते हैं| जब हम परमात्मा की चेतना में होते हैं तब हमारे से हर कार्य शुभ ही शुभ होता है| जिस के हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा पड़ा है वह संसार में सबसे अधिक सुन्दर व्यक्ति है, चाहे उस की भौतिक शक्ल-सूरत कैसी भी हो|
.
भगवान से हमें उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं माँगना चाहिए| प्रेम ही मिल गया तो सब कुछ मिल गया|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जनवरी २०२०

शराब और भांग-गांजे में क्या अंतर है?.....

शराब और भांग-गांजे में क्या अंतर है?.....
.
ईसा की उन्नीसवीं शताब्दि तक अमेरिका में भांग-गांजे का सेवन पूरे विश्व में सबसे अधिक था| वहाँ के मूल निवासी, काले नीग्रो और गरीब श्वेत लोग भांग-गांजे का खूब सेवन करते थे, और श्वेत अमीर लोग शराब पीते थे| शराब मंहगी होती थी और उसे अमीर लोग ही पी सकते थे| भांग के पौधे free होते थे जिन्हें कहीं पर भी उगाया जा सकता था, इस लिए गरीब अमेरिकन लोग खूब भांग खाते थे| वहाँ की सरकार भी इसे प्रोत्साहित करती थी| फिर एक समय ऐसा आया कि शराब बनाने वाली कंपनियों ने अपने डॉलरों के जोर से अमेरिकी सरकार पर दबाव डाल कर अमेरिका में ही नहीं पूरे विश्व में भांग-गांजे पर प्रतिबंध लगवा दिया ताकि शराब खूब बिके|
.
आजकल नई मेडिकल शोधों में भांग में कैंसर रोधी तत्व पाये गए हैं और यह देखा गया है कि भांग खाने वालों को केन्सर नहीं होता| अब अमेरिका में एक आन्दोलन चल पड़ा है भांग-गांजा फिर से free करने के लिए| उनका तर्क है कि जहाँ तंबाकू और शराब का सेवन कर हर वर्ष हजारों लोग मरते हैं, वहाँ आज तक के इतिहास में भाँग-गांजे के सेवन से एक भी आदमी नहीं मरा है|
.
भारत में नियम बड़े सख्त हैं| बिना लाइसेंस के भांग-गाँजा और अफीम उगाना एक अपराध है जिसमें जमानत भी नहीं होती और बहुत अधिक सजा का प्रावधान है| अतः भांग-गांजा पास में भी रखने जैसी गलती भूल कर भी न करें| भारत में इनके सेवन करने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है, अन्यथा इनको पास में रखना भी गंभीर अपराध है| इसलिए इन से दूर रहें|
.
आजकल भारत में बढ़ रही शराब के नशे की प्रवृति बड़ी दुखद है| समाज के हर वर्ग में, क्या अमीर और क्या गरीब,यहाँ तक कि महिलाओं में भी पनप रही शराब पीने की प्रवृति बड़ी दुखद है| यह भ्रष्टाचार से भी अधिक भयावह है| यह भारत को खोखला कर रही है| भारत में अंग्रेजों के आने से पूर्व मद्यपान बहुत कम लोग करते थे| अंग्रेजों ने इसे लोकप्रिय बनाया| अंग्रेजों के आने से पूर्व नशा करने वाले भांग खाते थे और गांजा पीते थे जो बहुत कम हानि करता था| भांगची और गंजेड़ी लोग अपनी पत्नियों को नहीं पीटते थे, और किसी का कोई नुकसान नहीं करते थे| पर सरकारों को इसमें कोई टेक्स नहीं मिलता था इसलिए सरकारों ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया| शराब की बिक्री से सरकार को 40% कर मिलता है इसलिए सरकारें शराब को प्रोत्साहन देती हैं|
.
भारत में साधू संत अति प्राचीन काल से भांग गांजे का सेवन करते आ रहे हैं| जंगलों में और पहाड़ों की दुर्गम ऊंची चोटियों पर रहने वाले साधु स्वस्थ रहने के लिए भांग-गांजे का सेवन करते हैं और बीमार पड़ने पर शंखिया नाम के जहर का एक कण खाते हैं, पता नहीं इस से वे कैसे ठीक हो जाते हैं| किसी दवा का कोई साधन उनके पास नहीं होता और वे इन्हीं से काम चलाते हैं| सीमित मात्रा में नियमित भांग खाने वालों ने बहुत लम्बी उम्र पाई है|
.
प्राचीन भारत के राजा बड़े गर्व से कहते थे कि मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है और कोई शराब नहीं पीता| भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि भारत में एक दिन ऐसा अवश्य आये जब कोई चोर, दुराचारी और शराबी नहीं हो|
.
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
११ जनवरी २०२०

नववर्ष की शुभ कामनाएँ और संकल्प :-----

नववर्ष की शुभ कामनाएँ और संकल्प :-----
.
आज़ादी मिलेगी, आज़ादी मिलेगी, आज़ादी मिलेगी, निश्चित रूप से आज़ादी मिलेगी, सब को आज़ादी मिलेगी| सब तरह की कुत्सित राक्षसी विचारधाराओं से, गलत मज़हबी दुराग्रहों से, गलत राजनीतिक-पारिवारिक गुलामी की परम्पराओं से, और लोभ, राग-द्वेष, अहंकार, झूठ-कपट व कुटिलता से सब को आज़ादी मिलेगी| गुलामी की परम्पराएँ समाप्तप्राय हैं| सभी तरह की गुलामी का विनाश होगा, जो गुलाम रहना चाहेंगे, प्रकृति उन्हें नष्ट कर देगी|

आज़ादी सिर्फ परमात्मा में है| परमात्मा से बाहर गुलामी ही गुलामी है| साकार रूप में जो भगवान वासुदेव हैं, निराकार रूप में वे ही पारब्रह्म परमात्मा परमशिव हैं| आज़ादी मिलेगी गीता में बताई हुई अहैतुकी अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति और समर्पण से| श्रुति भगवती ने इसी का डिमडिम घोष किया है| अपनी अपनी गुरु-परंपरानुसार उपासना करें| जो मेरे साथ हैं वे अनंताकाश के सूर्यमण्डल में कूटस्थ ब्रह्म परमशिव का ध्यान करें| वहाँ निश्चित रूप से आज़ादी ही आज़ादी है, कोई गुलामी नहीं है|

आप मेरे प्रियतम परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप स्वयं शाश्वत परमशिव हैं, यह नश्वर देह नहीं| आप सब को नमन| आप सब को इस नववर्ष में आज़ादी मिले, यही मेरा इस नववर्ष का संकल्प है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३१ दिसंबर २०१९

.

"निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह| सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह||"
जो लोग 31 दिसंबर की मध्य रात्रि को ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार नववर्ष मनाते हैं, उन को नववर्ष की शुभ कामनाएँ .....
.
मुस्लिम देशों को छोड़कर विश्व के सभी देशों, यहाँ तक की पूर्व साम्यवादी देशों और भारतवर्ष में भी सरकारी स्तर पर नववर्ष ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार ही मनाया जाता है| (व्यक्तिगत रूप से मैं तो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को घट-स्थापना कर माँ भगवती की उपासना से नववर्ष मनाता हूँ) आज ३१ दिसंबर को निशाचर-रात्री है| निशाचर-रात्री को निशाचर लोग मदिरापान, अभक्ष्य भोजन, फूहड़ नाच गाना, और अमर्यादित आचरण करते हैं| "निशा" रात को कहते हैं, और "चर" का अर्थ होता है चलना-फिरना या खाना| जो लोग रात को अभक्ष्य आहार लेते हैं, या रात को अनावश्यक घूम-फिर कर आवारागर्दी करते हैं, वे निशाचर हैं| जिस रात भगवान का भजन नहीं होता वह राक्षस-रात्रि है, और जिस रात भगवान का भजन हो जाए वह देव-रात्रि है| ३१ दिसंबर की रात को लगभग पूरी दुनिया ही निशाचर बन जाएगी| अतः बच कर रहें, सत्संग का आयोजन करें|
.
भगवाम श्रीराम की प्रतिज्ञा अवश्य याद रखें .....
"निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह| सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह||"
भावार्थ :---- श्रीराम ने भुजा उठा कर प्रण किया कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा| फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा-जा कर उन को (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया ||
भगवान के भजन हेतु कोई तो बहाना चाहिए| इस बहाने यथासंभव अधिकाधिक भगवान का ध्यान, जप और कीर्तन करेंगे| जिन के भी ऐसे विचार हैं, मैं परमात्मा में उन के साथ हूँ| पुनश्च: सभी को शुभ कामनाएँ| यह नववर्ष हम सब के लिये मंगलमय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३१ दिसंबर २०१९

अग्नि स्नान :-----

अग्नि स्नान :-----
जो भगवान शिव की उपासना करते हैं उन्हें गले में रुद्राक्ष की माला, रुद्राक्ष की जपमाला, माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड, और गुरु-परंपरानुसार देह के विभिन्न अंगों पर भस्म लगानी चाहिए| इनके बिना शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती| भस्म सिर्फ देसी गाय के शुद्ध गोबर से ही बनती है| इसकी विधि यह है कि देसी गाय जब गोबर करे तब भूमि पर गिरने से पहिले ही उसे शुद्ध पात्र या बांस की टोकरी में एकत्र कर लें और स्वच्छ शुद्ध भूमि पर या बाँस की चटाई पर थाप कर कंडा (छाणा) बना कर सुखा दें| सूख जाने पर उन कंडों को आड़े-टेढ़े इस तरह रखें कि उनके नीचे शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाया जा सके| उस दीपक की लौ से ही वे कंडे पूरी तरह जल जाने चाहियें| जब कंडे पूरी तरह जल जाएँ तब उन्हें एक साफ़ थैले में रखकर अच्छी तरह कूट कर साफ़ मलमल के कपडे में छान लें| कपड़छान हुई भस्म को किसी पात्र में इस तरह रख लें कि उसे सीलन नहीं लगे| पूजा के लिए भस्म तैयार है|
.
देह पर भस्म-लेपन अग्नि स्नान कहलाता है| यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है| भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है| भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है| शैव दर्शन के तन्त्र ग्रंथों में इस विषय पर एक बड़ा विलक्षण बर्णन है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है| 'भ'कार शब्द की व्याख्या भगवान शिव पार्वती जी को करते हैं .....
"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली| महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये| आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
महादेवी को संबोधित करते हुए महादेव कहते हैं कि हे (चारू+अंगी) सुन्दर देह धारिणी, 'भ'कार 'परमकुंडली' है| यह महामोक्षदायी है जो सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त है| इसमें तीनों देवों की शक्तियां निहित हैं|
जब कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर गुरुकृपा से आज्ञाचक्र को भेद कर सीधे सहस्त्रार में प्रवेश करती है तब वह मार्ग उत्तरा सुषुम्ना कहलाता है| उत्तरा सुषुम्ना के मार्ग में यह "परमकुंडली" कहलाती है| महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ| इसलिए प्रयासपूर्वक अपनी चेतना को हर समय उत्तरा सुषुम्ना में रखना चाहिए|
शिवमस्तु ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर

चाय क्या सचमुच हमें सर्दी से बचाती है? ....

चाय क्या सचमुच हमें सर्दी से बचाती है?
(१) चाय की पत्तियों में एक तो बहुत भारी मात्रा में कीट नाशक रसायन मिलाये हुए होते हैं, जिससे चाय की पत्तियों में कीड़े नहीं पड़ते|
(२) फिर चाय की पत्तियों को मुरझाये जाने से बचाने के लिए किसी गुप्त रसायन से शोधित किया जाता है| जिस रसायन से चाय की पत्तियों को मुरझाये जाने से बचाने और कड़क रखने के लिए शोधित किया जाता है उसके फार्मूले अर्थात घटक व विधि को अत्यधिक गुप्त रखा जाता है क्योंकि उसमें पशुओं का रक्त भी मिला हो सकता है| आप किसी भी पेड़-पौधे की पत्तियों को लीजिये, सूखने के बाद मसलने पर उनका चूर्ण बन जाता है पर चाय की पत्तियाँ चाय बनाने से पहिले भी और बनाने के बाद भी कड़क रहती हैं|
अतः चाय के साथ साथ आप कीटनाशक और एक अज्ञात रसायन का सेवन करने के लिए भी बाध्य हो जाते हैं|
(३) चाय में होने वाला निकोटिन भी हानिप्रद है|
(४) अतः चाय क्या सचमुच ही निरापद है? इसका विकल्प क्या हो सकता है?