Saturday 12 February 2022

लोभ और अहंकार से मुक्ति ही अहिंसा है जो हमारा परम धर्म है ---

 मनुष्य का लोभ और अहंकार ही सबसे बड़ी हिंसा है| लोभ और अहंकार से मुक्ति ही अहिंसा है जो हमारा परम धर्म है|

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जहाँ कुटिलता (छल-कपट) और असत्य (झूठ) है, वहाँ परमात्मा का अनुग्रह कभी भी, किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकता| ऐसे विकट समय में हमारे जीवन का क्या उद्देश्य हो, और हम क्या साधना करें, और क्या न करें? यह एक यक्ष-प्रश्न है| मनुष्य सिर्फ अपनी मृत्यु से ही डरता है, अन्य किसी भी चीज से नहीं| अतः अपने सामने अपनी मृत्यु को देखकर ही वह परमात्मा का स्मरण करता है, अन्यथा तो परमात्मा एक साधन (माध्यम) है, और संसार साध्य (धन, संपत्ति, यश और इंद्रिय सुख)| आजकल के लोग दूयरों को ठगने में सफल हों, और उनकी चोरी-बेईमानी पकड़ी न जाये, इसके लिए ही भगवान का स्मरण करते हैं| वे अपने अधर्म में भगवान को भी साझेदार बनाना चाहते हैं|
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मेरी आस्था वर्तमान मनुष्यता से उठ चुकी है| यह समय बड़ा विकट है| भगवान के नाम पर, और अन्यथा भी इतना अधिक झूठ और छल-कपट इस समय व्यावहारिक रूप से समाज में प्रचलित है, जिसकी कभी मैंने कल्पना भी नहीं की थी| ये --- "इंसानियत", "भाईचारा", "नेकी", "मानवता", "मनुष्यता", "अच्छे इंसान बनो", जैसे भ्रमित करने वाले शब्द दूसरों को भ्रमित और ठगने के लिए ही प्रयुक्त होते हैं|
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जहाँ कुटिलता और असत्य है, वहाँ परमात्मा का अनुग्रह कभी भी किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकता| लोग दूसरों को ठगने के लिए बड़ी मधुर वाणी में मीठी-मीठी बातें करते हैं, पर उनकी अंतर्दृष्टि छल-कपट द्वारा दूसरों का धन छीनने में ही रहती है| आजकल के तथाकथित भले लोग स्वयं के एक रुपये के लाभ के लिए दूसरे का लाखों रुपये का नुकसान कर देते हैं| वास्तविकता यह है कि आज का मनुष्य अपबे स्वयं के समाज में भी दूसरों को दुःखी देखकर ही सुखी होता है| कुछ भलाई का काम वह कर भी लेता है तो सिर्फ अपने अहंकार की पूर्ति के लिए ही करता है| मैं कोई नकारात्मक व्यक्ति नहीं हूँ, पूरी तरह सकारात्मक और आशावादी हूँ, लेकिन जो सत्य प्रत्यक्ष देख रहा हूँ, वही कह रहा हूँ|
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ऐसे समय में क्या करें और क्या न करें? यह अपने हृदय से ही पूछो| हृदय कभी झूठ नहीं बोलता| हमारा मन ही धोखेबाज है क्योंकि वह नफा-नुकसान सोच कर ही उत्तर देता है| सदा अपने हृदय की ही आवाज सुनें| हृदय में परमात्मा का निवास है| हृदय सदा सत्य ही कहेगा|
ॐ तत्सत् || ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ फरवरी २०२१

भारत विजयी हो / भारत विजयी होगा ---

भारत विजयी हो ---
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इस समय स्थिति बहुत विकट है। बाहर के भौतिक विश्व में ही नहीं, आंतरिक सूक्ष्म जगत में भी आसुरी शक्तियाँ बड़ी प्रबल हैं। मेरे अंतर में भी एक देवासुर-संग्राम चल रहा है। सूक्ष्म जगत की आसुरी शक्तियाँ अपनी पूरी शक्ति से मुझ पर भी आक्रमण कर रही हैं। आत्मरक्षा के लिए मुझे कुछ अधिक ही संघर्ष करना पड़ रहा है।
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अगले कुछ दिन तक कुछ भी नहीं लिखूंगा। किसी से मिलना-जुलना भी बंद कर रखा है। एकांत में बैठकर परमशिव का यथासंभव गहनतम और अधिकतम ध्यान करूंगा। किसी भी परिस्थिति में भारत विजयी हो। यही मेरा शुभ संकल्प है। भारत ही सत्य-सनातन-धर्म है, और सत्य-सनातन धर्म ही भारत है।
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मुझ अकिंचन पर अपना परम प्रेम और आशीर्वाद बनाए रखें। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर

९ मार्च २०२२
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पुनश्च:

भारत विजयी होगा। भारत की विजय सत्य-सनातन-धर्म की विजय है। सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण होगा। असत्य का अंधकार पराभूत होगा। भारत की राजनीति "सनातन-धर्म" होगी। भारत माँ अपने द्वीगुणित परमवैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी। "यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः॥" हर हर महादेव !!

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"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
"क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥९:३१॥"
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥१८:७८॥" (श्रीमद्भवद्गीता)
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥" (वा.रामायण ६/१८/३३)

हम जहाँ हैं, भगवान वहीं है ---

 हम जहाँ हैं, भगवान वहीं है ---

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हम जहाँ भी हैं, हर समय वहीं सारे तीर्थ हैं, वहीं सारे सिद्ध संत-महात्मा हैं, और वहीं परमात्मा हैं। परमात्मा ने हमें जहाँ भी रखा है, वे भी वहीं हैं। वे हमसे दूर जा ही नहीं सकते। वे हमारी सत्यनिष्ठा ही देखते हैं, और हमसे हमारा परमप्रेम ही मांगते हैं। यदि सत्यनिष्ठा नहीं है तो कुछ भी नहीं है। भगवान को प्रेम भी सत्यनिष्ठा से ही संभव है। यह सत्यनिष्ठा और भगवत्-प्राप्ति -- हमारा सत्य-सनातन-धर्म है।
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गीता में बताई हुई ब्राह्मी स्थिति यानि कूटस्थ चैतन्य में हम निरंतर रहें। बिना किसी तनाव के, शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों की पुतलियों को भ्रूमध्य के समीप लाकर, भ्रूमध्य में प्रणव यानि ॐकार से लिपटी हुई दिव्य ज्योतिर्मय सर्वव्यापी आत्मा का चिंतन करते-करते, एक दिन ध्यान में विद्युत् आभा सदृश्य देदीप्यमान ब्रह्मज्योति प्रकट होती है। यह ब्रहमज्योति -- इस सृष्टि का बीज, और परमात्मा का द्वार है। इसे 'कूटस्थ' कहते हैं। इस अविनाशी ब्रह्मज्योति और उसके साथ सुनाई देने वाले प्रणवनाद में लय रहना 'कूटस्थ चैतन्य' है। यह सर्वव्यापी, निरंतर गतिशील, ज्योति और नाद - 'कूटस्थ ब्रह्म' हैं। इस कूटस्थ चैतन्य में निरंतर सदा प्रयासपूर्वक बने रहें, हमारा यह मनुष्य जीवन धन्य हो जाएगा।
गीता में भगवान कहते हैं --
"ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।
सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्॥१२:३॥"
"संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः॥१२:४॥"
अर्थात् - परन्तु जो भक्त अक्षर ,अनिर्देश्य, अव्यक्त, सर्वगत, अचिन्त्य, कूटस्थ, अचल और ध्रुव की उपासना करते हैं॥ इन्द्रिय समुदाय को सम्यक् प्रकार से नियमित करके, सर्वत्र समभाव वाले, भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं॥
"द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते॥१५:१६॥"
अर्थात् - इस लोक में क्षर (नश्वर) और अक्षर (अनश्वर) ये दो पुरुष हैं, समस्त भूत क्षर हैं और 'कूटस्थ' अक्षर कहलाता है॥
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कूटस्थ का केंद्र भी परिवर्तनशील ऊर्ध्वगामी है। कूटस्थ चैतन्य में प्रयासपूर्वक निरंतर स्थिति 'योग-साधना' है। सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी में प्राणों का प्रवेश होने से शनैः शनैः बड़ी शान से एक राजकुमारी की भाँति भगवती कुंडलिनी महाशक्ति हमारे सूक्ष्मदेह में सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी में जागृत होती है, जो स्वयं जागृत होकर हमें भी जगाती है। सुषुम्ना में कुंडलिनी का श्रद्धापूर्वक संचलन वेदपाठ है। साधना करते करते ब्रह्मनाड़ी में स्थित सभी चक्रों को भेदते हुये, सभी अनंताकाशों व दहराकाश से परे 'परमशिव' में इसका विलीन होना परमसिद्धि है। यही योगसाधना का लक्ष्य है। फिर हम परमशिव के साथ एक होकर स्वयं परमशिव हो जाते हैं। कहीं कोई भेद नहीं रहता।
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परमात्मा की कृपा ही हमें पार लगाती है। परमात्मा अपरिछिन्न हैं। परिछिन्नता का बोध हमें चंचल मन के कारण होता है। मन के शांत होने पर अपरिछिन्नता का पता चलता है। कूटस्थ में ध्यान -श्रीगुरु चरणों का ध्यान है। कूटस्थ में स्थिति - श्रीगुरु चरणों में आश्रय है। कूटस्थ ही पारब्रह्म परमात्मा है। कूटस्थ ज्योति - साक्षात सद्गुरु है। कूटस्थ प्रणवनाद -- गुरु-वाक्य है।
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किसी पूर्वजन्म के पुण्यों के उदय होने से मुझे गीता के स्वाध्याय का यह अवसर मिला है। मेरा जीवन धन्य हुआ। भगवान कहते हैं --
"प्रयाणकाले मनसाऽचलेन, भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्, स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्॥८:१०॥"
"यदक्षरं वेदविदो वदन्ति, विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति, तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये॥८:११॥"
"सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्॥८:१२॥"
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्॥८:१३॥"
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
"मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः॥८:१५॥"
"आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥८:१६॥"
सब (इन्द्रियों के) द्वारों को संयमित कर मन को हृदय में स्थिर करके और प्राण को मस्तक में स्थापित करके योगधारणा में स्थित हुआ।। जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।। हे पार्थ ! जो अनन्यचित्त वाला पुरुष मेरा स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त योगी के लिए मैं सुलभ हूँ अर्थात् सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ।। परम सिद्धि को प्राप्त हुये महात्माजन मुझे प्राप्त कर अनित्य दुःख के आलयरूप (गृहरूप) पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते हैं।। हे अर्जुन ! ब्रह्म लोक तक के सब लोग पुनरावर्ती स्वभाव वाले हैं। परन्तु, हे कौन्तेय ! मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता।।
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नारायण !! और क्या कहूँ? अंतिम ४ बातें ये हैं --
(१) भगवान से प्रेम करो। (२)भगवान से खूब प्रेम करो। (२) भगवान से सदा प्रेम करो। और (४) प्रेम करते-करते आत्माराम (आत्मा में रमण करने वाला) हो जाओ।
आप सब पुण्यात्माओं को नमन जिन्होंने इस आलेख को पढ़ा है। मैं तो इसे लिखते लिखते ही भगवान में स्थित हो गया हूँ। भगवान मुझमें हैं, और मैं भगवान में हूँ॥
ॐ नमो नारायण !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१२ फरवरी २०२२
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पुनश्च: ----- शिवभाव में स्थित होकर कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम भगवान नारायण का सदा ध्यान करें। इसे कभी न भूलें।

स्वयं भगवान नारायण यहाँ कूटस्थ में हैं, उनके सिवाय कोई अन्य है ही नहीं ---

 स्वयं भगवान नारायण यहाँ कूटस्थ में हैं, उनके सिवाय कोई अन्य है ही नहीं ---

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कहते हैं कि चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। ये चित्त की वृत्तियाँ तो अब बेकार हैं। दुःख-तस्कर, चोर-जार-शिखामणि, भगवान श्रीहरिः ने चित्त के साथ-साथ मन, बुद्धि, अहंकार व सारे दुःखों को भी कब चुराया? कुछ पता ही नहीं चला।
मेरे पास तो अब कोई सामान ही नहीं है। जिसका था, उसे वे ले गए। मुझ अकिंचन और निराश्रय की एकमात्र संपत्ति -- स्वयं भगवान नारायण हैं। मुझ निराश्रय की रक्षा करो ---
"हरे मुरारी मधु-कैटभारि गोविंद गोपाल मुकुन्द माधव।
यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णु, निराश्रयं मां जगदीश रक्षः॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१२ फरवरी २०२२

सांस्कृतिक झटका ---

 सांस्कृतिक झटका ---

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भारत में आजकल हिजाब और बुर्के पर बड़ा राजनीतिक विवाद चल रहा है। सन १९८० की बात है। मुझे सपत्नीक किसी काम से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर पर्थ नामक नगर में जाना पड़ा। वहाँ उस समय गर्मी का मौसम था। हमारे लिए यह एक सांस्कृतिक झटका था जब हमने देखा कि वहाँ सब लोग -- क्या लड़के और क्या लड़कियाँ, सब Swimming Costume पहने ही घूम रहे थे। मैं कल्पना कर रहा था कि वहाँ सब लोग कोट पेंट और टाई पहने मिलेंगे, लेकिन प्राय सभी स्त्री-पुरुष -- जाँघिया पहने ही घूमते मिले। ऑस्ट्रेलिया के कई नगरों में घूमा हूँ, मुझे एक भी महिला कहीं बुर्का पहिने दिखाई नहीं दी।
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कट्टर सुन्नी मुसलमान देश तुर्की में तो महिलाओं द्वारा बुर्का पहिनना अपराध है। बुर्के पर वहाँ प्रतिबंध है। तुर्क लोग बड़े कट्टर मुसलमान होते हैं, लेकिन अपनी महिलाओं को बुर्का नहीं पहिनने देते। वहाँ की महिलाएँ यूरोपीय महिलाओं की तरह ही वस्त्र पहिनती हैं। तुर्की का भी भ्रमण मैंने दो-तीन बार किया है। वहाँ खूब घूमा-फिरा भी हूँ, लेकिन बुर्का पहिने कहीं भी कोई महिला कभी दिखाई नहीं दी।
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दुनियाँ के सबसे बड़े मुस्लिम देश इन्डोनेशिया का भी भ्रमण मैंने दो बार किया है। वहाँ भी कभी किसी महिला को बुर्का पहिने मैंने नहीं देखा।
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यूरोप के भी कई देशों में, और कनाडा व अमेरिका में भी घूमने का अवसर मुझे मिला है। वहाँ भी कहीं मैंने कभी किसी महिला को बुर्का पहिने नहीं देखा।
सिर्फ भारत में ही मुस्लिम महिलाओं को बुर्का पहिनना अनिवार्य है। कल को इन्हें शरिया कानून भी चाहियेगा। अब समय आ गया कि "समान नागरिक संहिता" तुरंत लागू की जाये। एक देश एक विधान, एक देश एक कानून हो।

रूस, यूक्रेन, बेलारूस, मध्य एशिया के देश और चीन ---

 रूस, यूक्रेन, बेलारूस, मध्य एशिया के देश और चीन ---

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रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों में मैं रह चुका हूँ, और किसी समय वहाँ मेरे अनेक मित्र भी थे। सोवियत-संघ के समय तक इनमें कोई भेद नहीं था। सोवियत-संघ की सेना और प्रशासन में यूक्रेन के कई बड़े बड़े अधिकारी भी थे। हजारों रूसी और यूक्रेनी युवक-युवतियों ने आपस में एक-दूसरे से विवाह भी कर रखे हैं। अब यूक्रेन के नाटो (N.A.T.O.) में शामिल होने के निर्णय से रूस आहत है, और बेलारूस के साथ मिलकर यूक्रेन को तीन तरफ से अपनी सेना द्वारा घेर लिया है। जहां तक क्रीमिया प्रायदीप की बात है, ऐतिहासिक दृष्टि से उस पर रूस का अधिकार स्वभाविक है। अज़ोव सागर पर तनाव कोई बड़ा विवाद नहीं है। वह आराम से बातचीत के द्वारा सुलझाया जा सकता है। अगर रूस यूक्रेन पर आक्रमण करता है तो उसे यूक्रेन पर अधिकार करने से कोई नहीं रोक सकता। वर्तमान विवाद के पीछे अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा यूक्रेन को भड़काया जाना है।
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यूक्रेन को चाहिए कि वह क्रीमिया को तो भूल जाये, और नाटो से जुड़ने की जिद छोड़ दे। फिर कोई विवाद नहीं रहेगा। यूक्रेन कई मामलों में रूस से अधिक उन्नत है। अपने विशाल पड़ोसी देश से किसी के भड़कावे में आकर उसे विवाद नहीं करना चाहिए। इस मामले में यूक्रेन को मैं अधिक दोषी मानता हूँ। यूक्रेन को भी हम नाराज नहीं कर सकते। यूक्रेन भारत से भारी मात्रा में तंबाकू और चायपत्तियाँ खरीदता है। भारत के हजारों विद्यार्थी वहाँ मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, क्योंकि पूरी मेडिकल की पढ़ाई वहाँ २५ लाख में हो जाती है, जब कि भारत के किसी भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में १ करोड़ में होती है।
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यदि विश्वयुद्ध हुआ तो इसमें रूस अपने हित में यूक्रेन के साथ-साथ मध्य एशिया के पाँच देशों -- कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान पर भी अपना अधिकार कर लेगा। मध्य एशिया के इन सभी देशों के शासक रूसी कम्युनिष्ट पार्टी के पूर्व सदस्य हैं और रूस की गुप्तचर पुलिस से भी जुड़े हुए थे। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पूतिन भी रूसी गुप्तचर पुलिस का एक बड़ा अधिकारी रह चुका है। ये सब आपस में एक-दूसरे के यार हैं। रूस यदि सिर्फ यूक्रेन और कजाखस्तान पर भी अपना अधिकार कर लेता है तो वह विश्व की एक बहुत बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। यूक्रेन तो अन्न का भंडार है, और कजाखस्तान प्रकृतिक गैस और यूरेनियम का।
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चीन की बुरी निगाह किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान की भूमि पर भी है। वह इन दो देशों पर अपना अधिकार चाहता है पर रूस के डर से चुपचाप बैठा है, क्योंकि इन सभी मध्य एशियाई देशों में रूसी सेना की उपस्थिती है। रूस से उसूरी नदी के जल पर अधिकार को लेकर वह रूस से मार भी खा चुका है।
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चीन का इतना बड़ा आकार रूस के पूर्व तानाशाह स्टालिन की कृपा से है। स्टालिन की कृपा से ही माओ सत्ता में आया था, उसका लॉन्ग-मार्च का इतिहास और क्रान्ति की बातें पूरी तरह कपोल-कल्पित हैं। उसका झूठा महिमा-मंडन किया गया है। स्टालिन की कृपा से ही उसे मंचूरिया, दक्षिण मंगोलिया, कैंटोनिया, पूर्वी तुर्किस्तान (सिंकियांग) और तिब्बत मिला। पूरा तिब्बत भारत के संरक्षण में था, जिसे अपने गुरु स्टालिन के आदेश पर स्टालिन के चेले नेहरू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से अनुमति लेकर चीन को सौंप दिया था। चीनी सेना जब तिब्बत पर अधिकार कर रही थी तब चीनी सेना की चावल, मांस-मछली आदि खाने-पीने की और कपड़ों की आपूर्ति गुप्त रूप से भारत ने ही की थी। भारत में उस समय इतनी शक्ति थी कि वह चीन को रोक ही नहीं, हरा भी सकता था। पूरे चीन के इतिहास में चीन ने कभी भी कोई युद्ध नहीं जीता था। भारत के विरुद्ध १९६२ में उसकी विजय प्रथम ऐतिहासिक विजय थी, जो भारत के शीर्ष नेतृत्व की मूर्खता से हुई।
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यदि विश्व युद्ध होता है तो भारत के सामने एक दुविधा होगी कि वह अमेरिका के पक्ष में रहे या रूस के पक्ष में। अमेरिका आज की तारीख में तो भारत का मित्र है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता शून्य है। लेकिन चीन को पराजित करने के लिए भारत को रूस और अमेरिका दोनों की ही सहायता चाहिए।
जो भी होगा वह सही ही होगा। मैं भविष्य के प्रति बहुत अधिक सकारात्मक रूप से आशान्वित हूँ। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
११ फरवरी २०२२

"ॐ विश्वरूपमहाग्नये स्वाहा। इदं ते न मम॥" ---

 "ॐ विश्वरूपमहाग्नये स्वाहा। इदं ते न मम॥" ---

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पूर्ण भक्ति यानि अपने सम्पूर्ण प्रेम के साथ कूटस्थ में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनकी विश्वरूपमहाग्नि में अपनी सभी वासनाओं को भस्म कर दें। सम्पूर्ण विश्व -- भगवान विष्णु का रूप है। उसमें स्वयं का पूर्ण समर्पण कर दें। हम यह देह नहीं, सम्पूर्ण विश्वरूप में व्यक्त भगवान विष्णु के साथ एक हैं। हम सिर्फ निमित्त मात्र हैं, हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है। बंद आँखों के अंधकार के पीछे जो प्रकाश है, उसके सूर्य-मण्डल में उन्हीं पुरुषोत्तम की छवि निरंतर हो। हमारी चेतना सदा आज्ञाचक्र से ऊपर ही रहे। कोई वासना यदि बचती भी है तो वह वेदान्त-वासना ही हो। अन्य कोई वासना न रहे।
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सूक्ष्म देह के मेरुदंड में स्थित सभी चक्र -- सहस्त्रारचक्र के ही प्रतिबिंब हैं। उनका प्रकाश भी सहस्त्रार में प्रज्ज्वलित विश्वरूपमहाग्नि के कारण है। सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी में हर चक्र से अपनी चेतना को उठाते हुए कूटस्थ में जल रही अग्नि में मानसिक रूप से उसकी आहुती दे दें। ॐ स्वाहा॥ परमात्मा का यह विश्वरूप ही हमारा वास्तविक स्वरूप है। परमात्मा की छवि ही हमारी छवि है। हमारा कार्य परमात्मा के प्रकाश का विस्तार करना ही है। हमारी स्वयं की चेतना का विस्तार ही उनके प्रकाश का विस्तार है।
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ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
११ फरवरी २०२२

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम ---

 राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम ---

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हृदय में भगवान को रखते हुए, रामकाज में जुट जाओ। पीछे मुड़कर देखने की आवशयकता नहीं है। जब तक रामकाज पूर्ण नहीं होता, तब तक कोई विश्राम नहीं है। जब धनुर्धारी भगवान श्रीराम, सुदर्शनचक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण, और पिनाकपाणी देवाधिदेव महादेव स्वयं हमारे कूटस्थ हृदय में बिराजमान हैं तब कौन सी ऐसी बाधा है जो पार नहीं हो सकती?
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है।
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जीवन की बची खुची सारी ऊर्जा एकत्र कर के -- "प्रबिसि नगर कीजे सब काजा हृदयँ राखि कोसलपुर राजा" करना ही होगा। राष्ट्र में व्याप्त असत्य रूपी अन्धकार घनीभूत पीड़ा दे रहा है। भूतकाल को तो हम बदल नहीं सकते, उसका रोना रोने से कोई लाभ नहीं है। वास्तव में यह हमारे ही भीतर का अंधकार है जो बाहर व्यक्त हो रहा है। इसे दूर करने के लिए तो स्वयं के भीतर ही प्रकाश की वृद्धि करनी होगी, तभी यह अन्धकार दूर होगा। इसके लिए आध्यात्मिक साधना द्वारा आत्मसाक्षात्कार करना होगा। जब यह स्वयं भगवान की ही आज्ञा है तो उस दिशा में अग्रसर भी होना ही होगा। यही राम काज है जिसे पूरा किये बिना कोई विश्राम नहीं हो सकता है। गीता में भगवान हमें एकसाथ पाँच आदेश देते हैं -- निर्द्वंद्व, नित्यसत्वस्थ, निर्योगक्षेम, आत्मवान, और त्रिगुणातीत होने का। हमारे लिए उनके बताए लक्ष्य को सिद्ध करना ही रामकाज है।
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
अर्थात् - हे अर्जुन, वेदों का विषय तीन गुणों से सम्बन्धित (संसार से) है, तुम त्रिगुणातीत, निर्द्वन्द्व, नित्य सत्त्व (शुद्धता) में स्थित, योगक्षेम से रहित, और आत्मवान् बनो॥
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पूर्ण भक्ति के साथ हम उनमें समर्पित हों।
ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति ! हर हर महादेव महादेव महादेव !!
कृपा शंकर
११ फरवरी २०२२

हमारी चेतना का सूक्ष्मतम केंद्र बिंदु -- हमारा "चित्त" है ---

योग-दर्शन ने चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग परिभाषित किया है, लेकिन इसे गोपनीय ही रखा है कि चित्त क्या है और उसकी वृत्तियाँ क्या हैं| हमारी चेतना का सूक्ष्मतम केंद्र बिंदु -- हमारा "चित्त" है जिसे समझना बड़ा कठिन है| इसका नियंत्रण सीधे प्राण-तत्व से होता है| प्राण तत्व की चंचलता ही चित्त की वृत्ति है| प्राण-तत्व ही ऊर्ध्वमुखी होकर हमें देवता बना देता है, और अधोमुखी होकर यही हमें असुर/राक्षस बना सकता है|

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इसका ज्ञान शिष्य की पात्रता देखकर ही दिया जाता है, क्योंकि यह एक दुधारी तलवार है जो शत्रु को भी नष्ट कर सकती है और स्वयं को भी मार सकती है| इसीलिए इस में यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) और नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान) की अनिवार्यता कर दी गयी है| योग साधना से कुछ सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है| यदि साधक के आचार विचार सही नहीं हुए तो या तो उसे मस्तिष्क की कोई गंभीर विकृति हो सकती है या सूक्ष्म जगत की आसुरी शक्तियां उस को अपने अधिकार में लेकर अपना उपकरण बना सकती हैं| इस विषय पर मैं इस से अधिक नहीं लिखूंगा, क्योंकि यह एक अनधिकार चेष्टा होगी| भगवान से प्रेम होगा तो भगवान की कृपा से यह विषय स्वतः ही समझ में आ जाएगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ फरवरी २०२१