Saturday 12 February 2022

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम ---

 राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम ---

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हृदय में भगवान को रखते हुए, रामकाज में जुट जाओ। पीछे मुड़कर देखने की आवशयकता नहीं है। जब तक रामकाज पूर्ण नहीं होता, तब तक कोई विश्राम नहीं है। जब धनुर्धारी भगवान श्रीराम, सुदर्शनचक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण, और पिनाकपाणी देवाधिदेव महादेव स्वयं हमारे कूटस्थ हृदय में बिराजमान हैं तब कौन सी ऐसी बाधा है जो पार नहीं हो सकती?
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है।
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जीवन की बची खुची सारी ऊर्जा एकत्र कर के -- "प्रबिसि नगर कीजे सब काजा हृदयँ राखि कोसलपुर राजा" करना ही होगा। राष्ट्र में व्याप्त असत्य रूपी अन्धकार घनीभूत पीड़ा दे रहा है। भूतकाल को तो हम बदल नहीं सकते, उसका रोना रोने से कोई लाभ नहीं है। वास्तव में यह हमारे ही भीतर का अंधकार है जो बाहर व्यक्त हो रहा है। इसे दूर करने के लिए तो स्वयं के भीतर ही प्रकाश की वृद्धि करनी होगी, तभी यह अन्धकार दूर होगा। इसके लिए आध्यात्मिक साधना द्वारा आत्मसाक्षात्कार करना होगा। जब यह स्वयं भगवान की ही आज्ञा है तो उस दिशा में अग्रसर भी होना ही होगा। यही राम काज है जिसे पूरा किये बिना कोई विश्राम नहीं हो सकता है। गीता में भगवान हमें एकसाथ पाँच आदेश देते हैं -- निर्द्वंद्व, नित्यसत्वस्थ, निर्योगक्षेम, आत्मवान, और त्रिगुणातीत होने का। हमारे लिए उनके बताए लक्ष्य को सिद्ध करना ही रामकाज है।
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
अर्थात् - हे अर्जुन, वेदों का विषय तीन गुणों से सम्बन्धित (संसार से) है, तुम त्रिगुणातीत, निर्द्वन्द्व, नित्य सत्त्व (शुद्धता) में स्थित, योगक्षेम से रहित, और आत्मवान् बनो॥
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पूर्ण भक्ति के साथ हम उनमें समर्पित हों।
ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति ! हर हर महादेव महादेव महादेव !!
कृपा शंकर
११ फरवरी २०२२

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