सांस्कृतिक झटका ---
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भारत में आजकल हिजाब और बुर्के पर बड़ा राजनीतिक विवाद चल रहा है। सन १९८० की बात है। मुझे सपत्नीक किसी काम से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर पर्थ नामक नगर में जाना पड़ा। वहाँ उस समय गर्मी का मौसम था। हमारे लिए यह एक सांस्कृतिक झटका था जब हमने देखा कि वहाँ सब लोग -- क्या लड़के और क्या लड़कियाँ, सब Swimming Costume पहने ही घूम रहे थे। मैं कल्पना कर रहा था कि वहाँ सब लोग कोट पेंट और टाई पहने मिलेंगे, लेकिन प्राय सभी स्त्री-पुरुष -- जाँघिया पहने ही घूमते मिले। ऑस्ट्रेलिया के कई नगरों में घूमा हूँ, मुझे एक भी महिला कहीं बुर्का पहिने दिखाई नहीं दी।
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कट्टर सुन्नी मुसलमान देश तुर्की में तो महिलाओं द्वारा बुर्का पहिनना अपराध है। बुर्के पर वहाँ प्रतिबंध है। तुर्क लोग बड़े कट्टर मुसलमान होते हैं, लेकिन अपनी महिलाओं को बुर्का नहीं पहिनने देते। वहाँ की महिलाएँ यूरोपीय महिलाओं की तरह ही वस्त्र पहिनती हैं। तुर्की का भी भ्रमण मैंने दो-तीन बार किया है। वहाँ खूब घूमा-फिरा भी हूँ, लेकिन बुर्का पहिने कहीं भी कोई महिला कभी दिखाई नहीं दी।
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दुनियाँ के सबसे बड़े मुस्लिम देश इन्डोनेशिया का भी भ्रमण मैंने दो बार किया है। वहाँ भी कभी किसी महिला को बुर्का पहिने मैंने नहीं देखा।
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यूरोप के भी कई देशों में, और कनाडा व अमेरिका में भी घूमने का अवसर मुझे मिला है। वहाँ भी कहीं मैंने कभी किसी महिला को बुर्का पहिने नहीं देखा।
सिर्फ भारत में ही मुस्लिम महिलाओं को बुर्का पहिनना अनिवार्य है। कल को इन्हें शरिया कानून भी चाहियेगा। अब समय आ गया कि "समान नागरिक संहिता" तुरंत लागू की जाये। एक देश एक विधान, एक देश एक कानून हो।
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