Saturday, 12 February 2022

रूस, यूक्रेन, बेलारूस, मध्य एशिया के देश और चीन ---

 रूस, यूक्रेन, बेलारूस, मध्य एशिया के देश और चीन ---

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रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों में मैं रह चुका हूँ, और किसी समय वहाँ मेरे अनेक मित्र भी थे। सोवियत-संघ के समय तक इनमें कोई भेद नहीं था। सोवियत-संघ की सेना और प्रशासन में यूक्रेन के कई बड़े बड़े अधिकारी भी थे। हजारों रूसी और यूक्रेनी युवक-युवतियों ने आपस में एक-दूसरे से विवाह भी कर रखे हैं। अब यूक्रेन के नाटो (N.A.T.O.) में शामिल होने के निर्णय से रूस आहत है, और बेलारूस के साथ मिलकर यूक्रेन को तीन तरफ से अपनी सेना द्वारा घेर लिया है। जहां तक क्रीमिया प्रायदीप की बात है, ऐतिहासिक दृष्टि से उस पर रूस का अधिकार स्वभाविक है। अज़ोव सागर पर तनाव कोई बड़ा विवाद नहीं है। वह आराम से बातचीत के द्वारा सुलझाया जा सकता है। अगर रूस यूक्रेन पर आक्रमण करता है तो उसे यूक्रेन पर अधिकार करने से कोई नहीं रोक सकता। वर्तमान विवाद के पीछे अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा यूक्रेन को भड़काया जाना है।
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यूक्रेन को चाहिए कि वह क्रीमिया को तो भूल जाये, और नाटो से जुड़ने की जिद छोड़ दे। फिर कोई विवाद नहीं रहेगा। यूक्रेन कई मामलों में रूस से अधिक उन्नत है। अपने विशाल पड़ोसी देश से किसी के भड़कावे में आकर उसे विवाद नहीं करना चाहिए। इस मामले में यूक्रेन को मैं अधिक दोषी मानता हूँ। यूक्रेन को भी हम नाराज नहीं कर सकते। यूक्रेन भारत से भारी मात्रा में तंबाकू और चायपत्तियाँ खरीदता है। भारत के हजारों विद्यार्थी वहाँ मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, क्योंकि पूरी मेडिकल की पढ़ाई वहाँ २५ लाख में हो जाती है, जब कि भारत के किसी भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में १ करोड़ में होती है।
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यदि विश्वयुद्ध हुआ तो इसमें रूस अपने हित में यूक्रेन के साथ-साथ मध्य एशिया के पाँच देशों -- कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान पर भी अपना अधिकार कर लेगा। मध्य एशिया के इन सभी देशों के शासक रूसी कम्युनिष्ट पार्टी के पूर्व सदस्य हैं और रूस की गुप्तचर पुलिस से भी जुड़े हुए थे। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पूतिन भी रूसी गुप्तचर पुलिस का एक बड़ा अधिकारी रह चुका है। ये सब आपस में एक-दूसरे के यार हैं। रूस यदि सिर्फ यूक्रेन और कजाखस्तान पर भी अपना अधिकार कर लेता है तो वह विश्व की एक बहुत बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। यूक्रेन तो अन्न का भंडार है, और कजाखस्तान प्रकृतिक गैस और यूरेनियम का।
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चीन की बुरी निगाह किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान की भूमि पर भी है। वह इन दो देशों पर अपना अधिकार चाहता है पर रूस के डर से चुपचाप बैठा है, क्योंकि इन सभी मध्य एशियाई देशों में रूसी सेना की उपस्थिती है। रूस से उसूरी नदी के जल पर अधिकार को लेकर वह रूस से मार भी खा चुका है।
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चीन का इतना बड़ा आकार रूस के पूर्व तानाशाह स्टालिन की कृपा से है। स्टालिन की कृपा से ही माओ सत्ता में आया था, उसका लॉन्ग-मार्च का इतिहास और क्रान्ति की बातें पूरी तरह कपोल-कल्पित हैं। उसका झूठा महिमा-मंडन किया गया है। स्टालिन की कृपा से ही उसे मंचूरिया, दक्षिण मंगोलिया, कैंटोनिया, पूर्वी तुर्किस्तान (सिंकियांग) और तिब्बत मिला। पूरा तिब्बत भारत के संरक्षण में था, जिसे अपने गुरु स्टालिन के आदेश पर स्टालिन के चेले नेहरू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से अनुमति लेकर चीन को सौंप दिया था। चीनी सेना जब तिब्बत पर अधिकार कर रही थी तब चीनी सेना की चावल, मांस-मछली आदि खाने-पीने की और कपड़ों की आपूर्ति गुप्त रूप से भारत ने ही की थी। भारत में उस समय इतनी शक्ति थी कि वह चीन को रोक ही नहीं, हरा भी सकता था। पूरे चीन के इतिहास में चीन ने कभी भी कोई युद्ध नहीं जीता था। भारत के विरुद्ध १९६२ में उसकी विजय प्रथम ऐतिहासिक विजय थी, जो भारत के शीर्ष नेतृत्व की मूर्खता से हुई।
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यदि विश्व युद्ध होता है तो भारत के सामने एक दुविधा होगी कि वह अमेरिका के पक्ष में रहे या रूस के पक्ष में। अमेरिका आज की तारीख में तो भारत का मित्र है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता शून्य है। लेकिन चीन को पराजित करने के लिए भारत को रूस और अमेरिका दोनों की ही सहायता चाहिए।
जो भी होगा वह सही ही होगा। मैं भविष्य के प्रति बहुत अधिक सकारात्मक रूप से आशान्वित हूँ। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
११ फरवरी २०२२

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