Monday 26 June 2017

साधक कौन है ? .....

साधक कौन है ? .....
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साधना के कठिनाइयों से भरे मार्ग पर साधना का आरम्भ तो साधक स्वयं करता है, क्योंकि तब तक अहंभाव प्रबल रहता है| फिर इतनी अधिक कठिनाइयाँ आती हैं कि साधक विचलित हो जाता है|
उस समय गुरु महाराज काम आते हैं| साधक का स्थान वे स्वयं ले लेते हैं और साधना वे ही करते हैं| शरीर और मन तो साधक का ही रहता है पर कर्ता गुरु महाराज हो जाते हैं|
फिर शीघ्र ही वह समय आता है जब गुरु महाराज तो अपने स्थान से हट जाते हैं और उनका स्थान भगवान स्वयं ले लेते हैं| ऐसे समय में साधक का कुछ भी दायित्व नहीं रहता, सब कुछ परमात्मा स्वयं ही बन जाते हैं|
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इससे आगे कहने के लिए और कुछ भी नहीं है| हे परमशिव, आप ही सर्वस्व हैं| "मैं" नहीं आप ही आप रहें| यह "मैं" और "मेरापन" सदा के लिए नष्ट हो जाएँ |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ जून २०१७

परमेश्वरार्पण बुद्धि ......


परमेश्वरार्पण बुद्धि ......
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"परमेश्वरार्पण बुद्धि" .... यह शब्द मैनें पहली बार जोधपुर के स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी के एक लेख में पढ़ा था| बड़ा अद् भुत शब्द है जिसने मेरे अंतर्मन पर गहरा प्रभाव डाला| उनका अभिप्राय यह था कि जब सारा जीवन ही अर्चना बन जाता है, जहाँ शास्त्रोक्त वर्णाश्रम के धर्म को परमेश्वर की अर्चना के लिये, उनकी आज्ञापालन के लिये ही किया जाता है, न फल की इच्छा और न कर्म में आसक्ति रहे ...... वह "परमेश्वरार्पण बुद्धि" है|
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जब साधक स्वयं के लिए कुछ न चाह कर सब कुछ यानि कर्ताभाव और साधना का फल भी परमात्मा को समर्पित कर देता है तभी उसका अंतःकरण शुद्ध होता है और परमात्मा उस पर प्रसन्न होते हैं| परमात्मा की प्रसन्नता और कृपा के अतिरिक्त हमें और चाहिए भी क्या?
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हे परमशिव, हमारी बुद्धि परमेश्वरार्पिता हो, चैतन्य में सिर्फ आप का ही अस्तित्व रहे, आप से पृथक अन्य कुछ भी न हो| आपसे विमुखता और पृथकता कभी न हो|


ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

"काम वासना" ही "शैतान" है .....

"काम वासना" ही "शैतान" है .....
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"शैतान" शब्द के अर्थ का जितना अनर्थ किया गया है सम्भवतः उतना अन्य किसी भी शब्द का नहीं| शैतान का अर्थ लोग लगाते हैं कि वह कोई राक्षस या बाहरी शक्ति है पर यह सत्य नहीं है| शैतान कोई बाहरी शक्ति नहीं अपितु मनुष्य के भीतर की कामवासना ही है जो कभी तृप्त नहीं होती और अतृप्त रहने पर क्रोध को जन्म देती है| क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है और मनुष्य का पतन हो जाता है| यही मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है|
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मूल ईसाईयत आदि मजहबों में इसे Devil या Satan कहा गया| उनके अनुसार भगवान सही रास्ते पर ले जाता है पर शैतान गलत रास्ते पर भटका देता है| पर वास्तव में यह काम वासना ही है जो शैतान है|
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इससे बचने का एक ही मार्ग है और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना|
यह अति गंभीर विषय है जिसे प्रभुकृपा से ही समझा जा सकता है|
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स्वयं के सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो| यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||


कृपा शंकर
२६ जून २०१६