Wednesday 8 November 2017

सारे भौतिक प्रदूषणों का कारण मानसिक व वैचारिक प्रदूषण है ......

सारे भौतिक प्रदूषणों का कारण मानसिक व वैचारिक प्रदूषण है ......
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हमारा वैचारिक प्रदूषण ही सारे प्रदूषणों का कारण है | हमारे विचार, हमारा चिंतन, हमारी मानसिकता ही प्रदूषित हो गयी है, अतः प्रकृति हमारे से कुपित है | यही इस सभ्यता का सर्वनाश करेगा |
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हमारे विचार ही इस सृष्टि के समस्त घटनाक्रमों को संचालित कर रहे हैं | जैसा हम सोचते हैं, जैसे हमारे विचार हैं, वे ही घनीभूत होकर बाहर के विश्व में प्रकट हो रहे हैं |
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वास्तविक विकास आत्मिक विकास है | बड़ी बड़ी इमारतें और साफ़ सुथरी व चौड़ी सड़कें ही विकास की निशानी नहीं हैं | वास्तविक विकास है नागरिकों का चरित्र | वह शिक्षा अशिक्षा है जो व्यक्ति को चरित्रवान नहीं बनाती | हम दूसरों को ठगने, बेईमानी करने, व कामुकता का निरंतर चिंतन करते हैं, यह हमारा पतन है | यह भीतर का पतन ही बाहर परिलक्षित हो रहा है |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

दिल्ली का प्रदूषण .....

दिल्ली अब रहने योग्य नगर नहीं रहा है | पर जिनकी आजीविका वहीं है वे तो दिल्ली में ही रहेंगे | दिल्ली के चारों ओर नीम, पीपल, बड़ जैसे वातावरण को शुद्ध करने वाले वृक्षों की अति सघन वृक्षावली लगानी चाहिए | नगर के भीतर जहाँ भी संभव हो वहाँ नीम व पीपल जैसे वृक्षों को लगाना चाहिए | हर परिवार को अपने घरों में तुलसी के पौधे खूब लगाने चाहिएँ | निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम हो और सार्वजनिक वाहनों का अधिक से अधिक | सरकारी भूमि पर जहाँ खूब दिखावटी दूब और सजावटी बगीचे लगे हैं, के स्थान पर वातावरण को शुद्ध करने वाले वृक्ष लगाए जाएँ | धीरे धीरे युक्लिप्टस और गुलमोहर जैसे वृक्षों को हटा दिया जाए, और उनके स्थान पर नीम के पेड़ लगाए जायें | मंत्रियों और सांसदों के घरों में पीपल और नीम के सारे पेड़ कटवा दिए गए थे, उन्हें बापस लगाया जाए | तभी दिल्ली प्रदूषण मुक्त होगी, अन्यथा दिल्ली में सारे वाहन बंद कर सिर्फ तांगे चलाने पड़ेंगे |

सदा सफल हनुमान ....

अब तक के सारे ज्ञात और अज्ञात इतिहास और साहित्य के सर्वाधिक और सदा सफल यदि कोई पात्र हैं तो वे हैं श्री हनुमान जी जिन्हें किसी भी काम में कभी भी कोई असफलता नहीं मिली| वे सदा सफल रहे| इतना ही नहीं उन्होंने अपने आराध्य देव भगवान श्रीराम के प्रति जितना प्रेम और सेवाभाव अपने निज जीवन में व्यक्त किया उतना अन्य कोई भी नहीं कर पाया|
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इसीलिये वे स्वयं सदा पूज्य हैं| भारत में सर्वाधिक मंदिर भी श्री हनुमान जी के ही हैं| उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि हम भगवान से सदा निरंतर जुड़े रहें| वे स्वयं भी भगवान ही हैं| उनकी जय हो|
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मनोजवं मारुत तुल्यवेगं जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं |
वातात्मजमं वानर यूथ मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
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हनुमान जी के चरित्र में तीन गुण ऐसे हैं जिन का दस लाखवाँ भाग भी यदि किसी को उपलब्ध हो जाए तो वह भगवान श्री राम को पा सकता है| वे गुण हैं ----
(1) पूर्ण प्रेम|
(2) पूर्ण समर्पण|
(3) पूर्ण सेवा|
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हे हनुमान जी, आप हमारे रक्षक हैं| सब तरह के विक्षेप, आवरण व बाधाओं से हमारी रक्षा करो|
हमें अपनी परम प्रेम रूपा पूर्ण भक्ति दो| अन्य किसी भी तरह की कोई कामना और विकार हमारे में ना रहे|
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हमारे राष्ट्र की रक्षा करो| किसी भी तरह के असत्य और अन्धकार का अवशेष हमारे राष्ट्र में ना रहे| यह राष्ट्र पूर्णतः धर्मनिष्ठ और अखंड हो| यहाँ रामराज्य पुनश्चः स्थापित हो|
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हमारा अस्तित्व राममय हो| किसी भी तरह की पृथकता ना हो|
ना मैं रहूँ न कोई मेरापन रहे, सिर्फ तुम रहो और मेरे प्रभु श्री राम रहें|
श्री राम, राम, राम, राम, राम, राम ||
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कहइ रीछपति सुनु हनुमाना, का चुप साधी रहेहु बलवाना|
पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि बिबेक बिज्ञान निधाना |
कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होय तात तुम पाहि ||
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* शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥

भावार्थ:-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥

* नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥

भावार्थ:-हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥

* अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥

भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥3

भगवान की परम कृपा ही भारत से भ्रष्टाचार को मिटा सकती है .....

भगवान की परम कृपा ही भारत से भ्रष्टाचार को मिटा सकती है, यह किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है .....
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भारत में नोटबंदी के क्रांतिकारी निर्णय का एक वर्ष पूर्ण हो गया है| यह देशहित में एक नए युग का प्रारम्भ था| व्यक्तिगत रूप से तो पास में पैसा नहीं होने का आनंद आया| अनाप-शनाप पैसा होता तो मुझे भी बहुत अधिक पीड़ा होती| कैसे भी कम पैसों से काम चलाया पर कोई शिकायत नहीं है| कम पैसे में काम चलाना सिखाने के लिए मैं इस नोटबंदी की घटना का आभारी हूँ|
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जो लोग नोटबंदी को लूट बताते हैं उनके लिए 2g, 3g, coal-gate, और cw घोटाले तो सिर्फ हाथ की सफाई थे|
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कटु सत्य तो यह है कि भारत की नौकरशाही यानि ब्यूरोक्रेसी ही सबसे अधिक भ्रष्ट है जिस पर लगाम लगाना असंभव है| अब तो न्यायपालिका भी भ्रष्ट हो गयी है| भारत की सबसे बड़ी समस्या ही ऊपर के स्तर पर छाया भ्रष्टाचार है| यह भ्रष्टाचार वर्त्तमान व्यवस्था की एक मजबूरी है|
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हर बड़ी राजनीतिक रैली में २०-२५ करोड़ रुपये खर्च होते हैं| चुनावों के लिए हर राजनीतिक दल को हज़ारों करोड़ रुपये चाहिएँ| इन रुपयों की व्यवस्था और प्रबंध उच्च सरकारी अधिकारी ही करते हैं| चाहे वे परजीवी हों पर इन भ्रष्ट अधिकारियों की आवश्यकता हर राजनीतिक दल को होती है| ईमानदारी दिखाने के लिए पैसा विदेशी बैंकों में जमा करा दिया जाता है| भारत में उच्चतम स्तर पर वे ही अधिकारी राज करते हैं जो जितने अधिक भ्रष्ट व कुटिल होते हैं, क्योंकि व्यवस्था ही ऐसी है, जिसे वर्त्तमान परिस्थितियों में बदलना असंभव है|
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यह भ्रष्टाचार भारत को अंग्रेजी शासन व्यवस्था की देन है जिन्होनें भारत को लूटने के लिए ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया| अंग्रेज़ी शासन व्यवस्था से यह भ्रष्टाचार हमें विरासत में मिला जो वर्तमान व्यवस्था में और भी कई गुणा अधिक बढ़ गया है|
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भगवान की परम कृपा ही भारतवर्ष से भ्रष्टाचार को मिटा सकती है, यह किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है|