अध्यापक, शिक्षक, आचार्य, प्राचार्य, उपाध्याय और गुरु... इन सब में क्या अंतर है?.....
Thursday, 26 June 2025
अध्यापक, शिक्षक, आचार्य, प्राचार्य, उपाध्याय और गुरु... इन सब में क्या अंतर है? ---
ध्यान :---
ध्यान :--- कूटस्थ में परमात्मा की अनंतता का ध्यान करते हुए, अपनी चेतना का जितना अधिक विस्तार कर सकते हो, उतना अधिक विस्तार करो। पूरी सृष्टि तुम्हारी चेतना में है, और तुम समस्त सृष्टि में हो। सारे आकाशों की सीमाओं को तोड़ दो। कुछ भी तुम्हारे से परे नहीं है। लाखों किलोमीटर ऊपर उठ जाओ, और भी ऊपर उठ जाओ, ऊपर उठते रहो, जितना ऊपर उठ सकते हो, उतना ऊपर उठ जाओ। चेतना की जो उच्चतम सीमा है, वह परमशिव है, और वह परमशिव तुम स्वयं हो।
सम्पूर्ण सृष्टि ही मेरा शरीर हो सकता है, यह भौतिक देह नहीं ---
सम्पूर्ण सृष्टि ही मेरा शरीर हो सकता है,
अनेक कारणों से मैं जीवन में क्षुब्ध रहा हूँ
अनेक कारणों से मैं जीवन में क्षुब्ध रहा हूँ, लेकिन अब अपनी सोच बदल ली है, जिससे जीवन में सुख-शांति है। यह सृष्टि मेरी नहीं, परमात्मा की है। उसे उनकी प्रकृति अपने अपरिवर्तनीय नियमों के अनुसार चला रही है। प्रकृति तो अपने नियमों के अनुसार ही चलेगी, जिन्हें हम नहीं समझते हैं। हमें ही स्वयं को बदलना होगा। हम जो कुछ भी और जैसे भी हैं, अपने ही कर्मों के कारण हैं।