Monday, 27 August 2018

हमारी पूँजी परमात्मा को समर्पित तप है .....

हमारी वास्तविक व्यवहारिक आध्यात्मिक पूंजी परमात्मा को समर्पित "तप" है| यही हमारी असली कमाई है| अन्य बड़ी बड़ी झूठी दार्शनिक बातों में कुछ नहीं रखा है| परमात्मा स्वयं हमारे माध्यम से सांस ले रहे हैं, वे ही हमारा जीवन जी रहे हैं| कितना समय हमने उनके ध्यान में व्यतीत किया है, कितने समय तक हमने उनके पवित्र नाम का जप किया है, कितना हमने उनका स्मरण किया है, यह हमारे राम नाम के खाते में जुड़ कर राम नाम की बैंक में स्वतः ही जमा हो जाता है| इसे हम से कोई छीन नहीं सकता, इसकी कोई चोरी भी नहीं हो सकती| यह शरीर छूटने के पश्चात यही पूंजी काम आयेगी| अन्य कुछ भी काम नहीं आयेगा| यह धन बढ़ाएं, इसकी खूब कमाई करें|
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दूसरों की कमाई हमारे काम नहीं आ सकती| दूसरा कोई अपनी कमाई हमें क्यों देगा? हमारा खुद का कमाया ही काम आयेगा| अतः किसी के पीछे पीछे भागने में कोई सार नहीं है| अपनी कमाई खुद ही करें|
वह धन "राम" नाम की ही पूंजी है.

रक्षा-बंधन, रक्षा-सूत्र, भगवा ध्वज और श्रावण पूर्णिमा .....

रक्षा-बंधन, रक्षा-सूत्र, भगवा ध्वज और श्रावण पूर्णिमा .....
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(आज २६ अगस्त २०१८ को प्रातः रा.स्व.से.संघ झुंझुनूं की प्रौढ़ शाखा में निम्न बौद्धिक मेरे द्वारा दिया गया)
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परम पवित्र भगवा ध्वज, माननीय विभाग संघचालक जी, अधिकारीगण व उपस्थित स्वयंसेवको,
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वैसे तो भारत त्योहारों का देश है जहाँ पूरे वर्ष ही अनेक त्यौहार मनाये जाते हैं| संघ में हम सिर्फ छः उत्सव मनाते हैं ... वर्षप्रतिपदा, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, शिवाजी साम्राज्य दिनोत्सव, विजयादशमी और मकर संक्रांति| आज हम रक्षा बंधन का पर्व मना रहे हैं| आज पवित्र श्रावण माह की पूर्णिमा होने के कारण रक्षाबंधन का पर्व है|
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रक्षा-बंधन वह बंधन है जो रक्षा के लिए बांधा जाता है| भगवा रंग अग्नि का रंग है जो पवित्रता का प्रतीक है| भगवा ध्वज भारत के धर्म और संस्कृति का प्रतीक है| हम परम पवित्र भगवा ध्वज को तिलक लगा कर और रक्षा-सूत्र बांधकर प्रणाम करते हैं तो यह हमारे धर्म और संस्कृति का सम्मान है| यह हमारा संकल्प है कि हम हमारे धर्म, संस्कृति और मान-सम्मान की रक्षा करेंगे|
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हम भारत को एक परम वैभवयुक्त, सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो वर्गभेद मिटाकर समानता और समरसता का भाव जागृत करना होगा| यह तभी संभव होगा जब हम समाज के दुर्बल, और उपेक्षित लोगों में राष्ट्रीय चेतना जगाकर उनमें राष्ट्र-रक्षा का भाव जागृत करेंगे| धर्म उन्हीं की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते हैं| धर्मरक्षा हेतु हमें समाज के उपेक्षित और दुर्बल वर्ग को गले लगाना होगा| वर्तमान में देश की आतंरिक व बाह्य सुरक्षा को बड़ी चुनौतियां मिल रही हैं| इन चुनौतियों के मध्य हमारा क्या दायित्व हो सकता है, इसका निर्णय हम अपने विवेक से करें|
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श्रावण-पूर्णिमा का दिन ब्राह्मण वर्ग के लिए आत्मशुद्धि का पर्व है| वैदिक परम्परानुसार यह वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है जो इसे श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते हैं| नदियों व तालाबों के किनारे ब्राह्मण एकत्र होते हैं और आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक व हवन करते हैं| इस में विधि-विधान से बनाया हुआ पंचगव्य, भस्म, चन्दन, अपामार्ग, दूर्वा, कुशा और मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है| नया यज्ञोपवीत भी धारण करते हैं| गुरुकुलों में वेदपाठ का आरम्भ भी आज के दिन से ही होता है|
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एक बार कालखंड में वेदों का ज्ञान लुप्त हो गया था, स्वयं ब्रह्मा जी के पास भी वेदों का ज्ञान नहीं रहा| तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव का अवतार लेकर फिर से वेदों का ज्ञान ब्रह्माजी को दिया| हयग्रीव अवतार में उनकी देह मनुष्य की थी पर सिर घोड़े का था| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी| भगवान हयग्रीव बुद्धि के देवता है| तब से श्रावणी उपाकर्म को आत्मशुद्धि के लिए मनाते हैं| हयग्रीव नाम का एक राक्षस भी था, उसका वध भी भगवान विष्णु ने हयग्रीवावतार में किया|
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देवासुर संग्राम में देवताओं की असुरों द्वारा सदा पराजय ही पराजय होती थी| एक बार इन्द्राणी ने इन्द्र के हाथ पर विजय-सूत्र बांधा और विजय का संकल्प कराकर रणभूमि में भेजा| उस दिन युद्ध में इंद्र विजयी रहे| 
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राजा बली का सारा साम्राज्य भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में दान में प्राप्त कर लिया था और सिर्फ पाताल लोक ही उसको बापस दिया| अपनी भक्ति से राजा बलि ने विष्णु को वश में कर के उन्हें अपने पाताल लोक के महल में ही रहने को बाध्य कर दिया| लक्ष्मी जी ने बड़ी चतुरता से राजा बली को रक्षासूत्र बांधकर एक वचन लिया और विष्णु जी को वहाँ से छुड़ा लाईं| तब से रक्षासूत्र बांधते समय ....
"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल" .... मन्त्र का पाठ करते हैं|
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महाभारत में शिशुपाल वध के समय भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में चोट लग गयी थी और रक्त बहने लगा| तब द्रोपदी वहीं खड़ी थी| उसने अपनी साड़ी का एक पल्लू फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में एक पट्टी बाँध दी| चीर-हरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की लाज की रक्षा की| 
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मध्यकाल में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा हिन्दू नारियों पर अत्यधिक अमानवीय क्रूरतम अत्याचार होने लगे थे| तब से महिलाऐं अपने भाइयों को राखी बाँधकर अपनी रक्षा का वचन लेने लगीं, और रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन मनाने की यह परम्परा चल पड़ी|
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भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पेशवा नाना साहब और और रानी लक्ष्मीबाई के मध्य राखी का ही बंधन था| रानी लक्ष्मीबाई ने पेशवा को रक्षासूत्र भिजवा कर यह वचन लिया था कि वे ब्रह्मवर्त को अंग्रेजों से स्वतंत्र करायेंगे|
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बंग विभाजन के विरोध में रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणा से बंगाल के अधिकाँश लोगों ने एक-दूसरे को रक्षासूत्र बांधकर एकजूट रहने का सन्देश दिया| 
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श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान शिव धर्मरूपी बैल पर बैठकर अपनी सृष्टि में भ्रमण करने आते हैं| हमारे घर पर भी उनकी कृपादृष्टि पड़े, और वे कहीं नाराज न हो जाएँ, इस उद्देश्य से राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में महिलाऐं अपने घर के दरवाजों पर रक्षाबंधन के पर्व से एक दिन पहिले "सूण" मांडती हैं|
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अंत में मैं इस प्रार्थना के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ कि .... "भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों, सम्पूर्ण भारत में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो, और सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा हो| वन्दे मातरं !! भारत माता की जय !!!
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कृपा शंकर 
२६ अगस्त २०१८

परमात्मा को हम क्या दे सकते हैं ? ....

परमात्मा को हम क्या दे सकते हैं ?
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ये पंक्तियाँ मैं ईश्वरीय प्रेरणा से अपने पूर्ण हृदय से लिख रहा हूँ| अपने हृदय का पूर्ण प्रेम मैनें इन शब्दों में डाल दिया है| इन शब्दों को समझने के लिए सिर्फ प्रेम चाहिए, कोई विद्वता नहीं| मैं अपनी गुरु-परम्परा और परमात्मा की परम कृपा से ही इन शब्दों को लिख पा रहा हूँ, अन्यथा मुझ अकिंचन की कोई औकात नहीं है कि इन शब्दों को लिख सकूँ| जो भी इन शब्दों को समझेगा उसका निश्चित रूप से कल्याण होगा.

हम परमात्मा को "स्वयं" को ही दे सकते हैं, अन्य कुछ भी नहीं| अपने सम्पूर्ण अस्तित्व, अपने सम्पूर्ण अंतःकरण, यानि अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार .... अपनी पृथकता का बोध, ..... सब कुछ हम परमात्मा को पूर्ण रूप से अर्पित कर दें| इसके अतिरिक्त हमारे पास है ही क्या? सब कुछ तो उसी का है|
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यह देह रूपी उपकरण जो परमात्मा ने हमें लोकयात्रा के लिए दिया है, उस उपकरण में अंतर्रात्मा यानी आत्म-तत्व के रूप में परमात्मा स्वयं बिराजमान हैं| वे ही इस देहरूपी विमान के चालक हैं, यह विमान भी वे स्वयं ही हैं, वे ही इस देह में सांस ले रहे हैं| इस देह के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड यानि सम्पूर्ण सृष्टि भी सांस ले रही है| हम यह देह नहीं, परमात्मा की परमप्रेममय अनंतता हैं| इस सांस रूपी यज्ञ में हर सांस के साथ-साथ हम अपने अहंकार रूपी शाकल्य की आहुति श्रुवा बन कर दे दें|
"यह आहुति ही है जो हम परमात्मा को दे सकते हैं, अन्य कुछ भी नहीं"|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्| ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना||४:२४||
अर्थात् .... अर्पण (अर्पण करने का साधन श्रुवा) ब्रह्म है, और हवि (शाकल्य अथवा हवन करने योग्य द्रव्य) भी ब्रह्म है, ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा जो हवन किया गया है वह भी ब्रह्म ही है| इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है||
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परमात्मा द्वारा दी हुई अपनी इस अति सीमित व अति अल्प बुद्धि और क्षमता द्वारा इस से अधिक और कुछ भी लिखने में मैं असमर्थ हूँ|
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परमात्मा का आश्वासन है कि जिनमें भी उनके प्रति परमप्रेम और उन्हें पाने की अभीप्सा होगी, उन्हें वे निश्चित रूप से प्राप्त होंगे| उन्हें मार्गदर्शन भी मिलेगा| हम अपनी साधना में परमात्मा को सर्वत्र देखें, और सब में परमात्मा को देखें|
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गीता में ही भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति"||६:३०||
अर्थात् ..... जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता||
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को सप्रेम नमन ! आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ अगस्त २०१८

"शैतान" कोई झूठी परिकल्पना नहीं, एक वास्तविकता है .....

"शैतान" कोई झूठी परिकल्पना नहीं, एक वास्तविकता है .....
परमात्मा की सृष्टि में "शैतान" एक सर्वव्यापी सचेतन मायावी आसुरी शक्ति है जो हमें निरंतर पतन की ओर धकेलती है| यह सर्वप्रथम "काम वासना" के रूप में, फिर "लोभ" के रूप में, फिर "राग-द्वेष" और "अहंकार" के रूप में स्वयं को व्यक्त करती है| भगवान् की कृपा ही हमें इस से बचा सकती है|
जो माया हमें सत्य यानि परमात्मा से दूर रखती है, उसे ही इब्राहिमी मज़हबों (ईसाईयत, इस्लाम और यहूदीवाद) ने "शैतान" का नाम दिया है| अब हम उसे समझें या न समझें यह हमारी स्वयं की समस्या है| ॐ ॐ ॐ ||

मनुष्य का स्वभाविक "स्वधर्म" क्या हो सकता है ? .....

मनुष्य का स्वभाविक "स्वधर्म" क्या हो सकता है ? .....
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"परम तत्व की खोज और उससे एकात्मता" ही मेरी दृष्टी में हमारा स्वधर्म है|
इस स्वधर्म का पालन और उस की रक्षा का अनवरत प्रयास ही मेरी दृष्टि में आध्यात्म है, अन्य कुछ भी नहीं|
आध्यात्म कोई व्यक्तिगत मोक्ष, सांसारिक वैभव, इन्द्रीय सुख या अपने अहंकार की तृप्ति की कामना का प्रयास नहीं है| यह कोई दार्शनिक वाद-विवाद या बौद्धिक उपलब्धी भी नहीं है| 
साथ साथ सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों का विनाश भी हमारा लौकिक धर्म है| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||३:३५||
और ...
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||
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भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का जीवन हमारे लिए आदर्श है| उन जैसे महापुरुषों के गुणों को स्वयं के जीवन में धारण करना, उन की शिक्षा और आचरण का पालन करना एक सच्ची आराधना है| भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने जन्म से ही धर्मरक्षार्थ, धर्मसंस्थापनार्थ, व धर्मसंवर्धन हेतु शौर्य, संघर्ष, संगठन व साधना का आदर्श हमारे समक्ष रखा|
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भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिया, इस प्रसंग के आध्यात्मिक सन्देश को समझें कि रणभूमि में उतरे बिना यानि साधना भूमि में उतरे बिना हम आध्यात्म को, स्वयं के ईश्वर तत्व को उसके यथार्थ स्वरुप में अनुभूत नहीं कर सकते|
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भगवान श्रीराम ने भी धर्मरक्षार्थ अपने राज्य के वैभव का त्याग किया, और भारत में पैदल भ्रमण कर अत्यंन्त पिछड़ी और उपेक्षित जातियों को जिन्हें लोग तिरस्कार पूर्वक वानर और रीछ तक कह कर पुकारते थे, संगठित कर धर्मविरोधियों का संहार किया| लंका का राज्य स्वयं ना लेकर विभीषण को ही दिया| ऋषि मुनियों की रक्षार्थ ताड़का का वध भी किया|
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उपरोक्त दोनों ही महापुरुष हजारों वर्षों से हमारे प्रातःस्मरणीय आराध्य हैं|
स्वयं के भीतर के राम और कृष्ण तत्व से एकात्मता भी आध्यात्म है, यही सच्ची साधना है, यही शिवत्व की प्राप्ति है| ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ अगस्त २०१८