रक्षा-बंधन, रक्षा-सूत्र, भगवा ध्वज और श्रावण पूर्णिमा .....
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(आज २६ अगस्त २०१८ को प्रातः रा.स्व.से.संघ झुंझुनूं की प्रौढ़ शाखा में निम्न बौद्धिक मेरे द्वारा दिया गया)
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परम पवित्र भगवा ध्वज, माननीय विभाग संघचालक जी, अधिकारीगण व उपस्थित स्वयंसेवको,
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वैसे तो भारत त्योहारों का देश है जहाँ पूरे वर्ष ही अनेक त्यौहार मनाये जाते हैं| संघ में हम सिर्फ छः उत्सव मनाते हैं ... वर्षप्रतिपदा, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, शिवाजी साम्राज्य दिनोत्सव, विजयादशमी और मकर संक्रांति| आज हम रक्षा बंधन का पर्व मना रहे हैं| आज पवित्र श्रावण माह की पूर्णिमा होने के कारण रक्षाबंधन का पर्व है|
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रक्षा-बंधन वह बंधन है जो रक्षा के लिए बांधा जाता है| भगवा रंग अग्नि का रंग है जो पवित्रता का प्रतीक है| भगवा ध्वज भारत के धर्म और संस्कृति का प्रतीक है| हम परम पवित्र भगवा ध्वज को तिलक लगा कर और रक्षा-सूत्र बांधकर प्रणाम करते हैं तो यह हमारे धर्म और संस्कृति का सम्मान है| यह हमारा संकल्प है कि हम हमारे धर्म, संस्कृति और मान-सम्मान की रक्षा करेंगे|
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हम भारत को एक परम वैभवयुक्त, सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो वर्गभेद मिटाकर समानता और समरसता का भाव जागृत करना होगा| यह तभी संभव होगा जब हम समाज के दुर्बल, और उपेक्षित लोगों में राष्ट्रीय चेतना जगाकर उनमें राष्ट्र-रक्षा का भाव जागृत करेंगे| धर्म उन्हीं की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते हैं| धर्मरक्षा हेतु हमें समाज के उपेक्षित और दुर्बल वर्ग को गले लगाना होगा| वर्तमान में देश की आतंरिक व बाह्य सुरक्षा को बड़ी चुनौतियां मिल रही हैं| इन चुनौतियों के मध्य हमारा क्या दायित्व हो सकता है, इसका निर्णय हम अपने विवेक से करें|
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श्रावण-पूर्णिमा का दिन ब्राह्मण वर्ग के लिए आत्मशुद्धि का पर्व है| वैदिक परम्परानुसार यह वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है जो इसे श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते हैं| नदियों व तालाबों के किनारे ब्राह्मण एकत्र होते हैं और आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक व हवन करते हैं| इस में विधि-विधान से बनाया हुआ पंचगव्य, भस्म, चन्दन, अपामार्ग, दूर्वा, कुशा और मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है| नया यज्ञोपवीत भी धारण करते हैं| गुरुकुलों में वेदपाठ का आरम्भ भी आज के दिन से ही होता है|
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एक बार कालखंड में वेदों का ज्ञान लुप्त हो गया था, स्वयं ब्रह्मा जी के पास भी वेदों का ज्ञान नहीं रहा| तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव का अवतार लेकर फिर से वेदों का ज्ञान ब्रह्माजी को दिया| हयग्रीव अवतार में उनकी देह मनुष्य की थी पर सिर घोड़े का था| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी| भगवान हयग्रीव बुद्धि के देवता है| तब से श्रावणी उपाकर्म को आत्मशुद्धि के लिए मनाते हैं| हयग्रीव नाम का एक राक्षस भी था, उसका वध भी भगवान विष्णु ने हयग्रीवावतार में किया|
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देवासुर संग्राम में देवताओं की असुरों द्वारा सदा पराजय ही पराजय होती थी| एक बार इन्द्राणी ने इन्द्र के हाथ पर विजय-सूत्र बांधा और विजय का संकल्प कराकर रणभूमि में भेजा| उस दिन युद्ध में इंद्र विजयी रहे|
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राजा बली का सारा साम्राज्य भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में दान में प्राप्त कर लिया था और सिर्फ पाताल लोक ही उसको बापस दिया| अपनी भक्ति से राजा बलि ने विष्णु को वश में कर के उन्हें अपने पाताल लोक के महल में ही रहने को बाध्य कर दिया| लक्ष्मी जी ने बड़ी चतुरता से राजा बली को रक्षासूत्र बांधकर एक वचन लिया और विष्णु जी को वहाँ से छुड़ा लाईं| तब से रक्षासूत्र बांधते समय ....
"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल" .... मन्त्र का पाठ करते हैं|
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महाभारत में शिशुपाल वध के समय भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में चोट लग गयी थी और रक्त बहने लगा| तब द्रोपदी वहीं खड़ी थी| उसने अपनी साड़ी का एक पल्लू फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में एक पट्टी बाँध दी| चीर-हरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की लाज की रक्षा की|
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मध्यकाल में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा हिन्दू नारियों पर अत्यधिक अमानवीय क्रूरतम अत्याचार होने लगे थे| तब से महिलाऐं अपने भाइयों को राखी बाँधकर अपनी रक्षा का वचन लेने लगीं, और रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन मनाने की यह परम्परा चल पड़ी|
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भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पेशवा नाना साहब और और रानी लक्ष्मीबाई के मध्य राखी का ही बंधन था| रानी लक्ष्मीबाई ने पेशवा को रक्षासूत्र भिजवा कर यह वचन लिया था कि वे ब्रह्मवर्त को अंग्रेजों से स्वतंत्र करायेंगे|
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बंग विभाजन के विरोध में रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणा से बंगाल के अधिकाँश लोगों ने एक-दूसरे को रक्षासूत्र बांधकर एकजूट रहने का सन्देश दिया|
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श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान शिव धर्मरूपी बैल पर बैठकर अपनी सृष्टि में भ्रमण करने आते हैं| हमारे घर पर भी उनकी कृपादृष्टि पड़े, और वे कहीं नाराज न हो जाएँ, इस उद्देश्य से राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में महिलाऐं अपने घर के दरवाजों पर रक्षाबंधन के पर्व से एक दिन पहिले "सूण" मांडती हैं|
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अंत में मैं इस प्रार्थना के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ कि .... "भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों, सम्पूर्ण भारत में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो, और सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा हो| वन्दे मातरं !! भारत माता की जय !!!
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कृपा शंकर
२६ अगस्त २०१८