शीघ्र ही आने वाले पर्व -- महाशिवरात्रि व होली की अग्रिम शुभ कामनाएँ ---
Sunday, 23 February 2025
शीघ्र ही आने वाले पर्व -- महाशिवरात्रि व होली की अग्रिम शुभ कामनाएँ ---
हम क्या उपासना करें? किस देवता की आराधना करें? कौन सा मार्ग सर्वश्रेष्ठ है?
प्रश्न) :--- हम क्या उपासना करें? किस देवता की आराधना करें? कौन सा मार्ग सर्वश्रेष्ठ है?
अपने दिन का आरंभ और समापन, परमात्मा के गहनतम ध्यान से करें, और हर समय परमात्मा का स्मरण करते रहें :---
अपने दिन का आरंभ और समापन, परमात्मा के गहनतम ध्यान से करें, और हर समय परमात्मा का स्मरण करते रहें :---
ईश्वर की प्राप्ति के लिए --
ईश्वर की प्राप्ति के लिए --
हम प्रेममय हो जायें, यही भगवान की भक्ति है। अन्य है ही कौन?
हम प्रेममय हो जायें, यही भगवान की भक्ति है। अन्य है ही कौन?
(प्रश्न) : भगवान के ध्यान और भक्ति से हमें क्या मिलेगा?
पता नहीं, मेरा कल्याण कब होगा ---
भगवान ने सुपात्रों की जो पात्रता बताई है, उनमें से एक भी मुझ में नहीं है। पता नहीं, मेरा कल्याण कब होगा। भगवान कहते हैं --
जिन के हृदय में इन्द्रीय सुखों की कामना भरी पडी है वे आध्यात्म के क्षेत्र में न आयें ---
१८ फरवरी २०१९
आध्यात्म की गूढ बातें, गुरुकृपा से अनुभूतियों द्वारा ही समझ में आती हैं ---
पिछले कई वर्षों से मैं फेसबुक पर आध्यात्म और हिन्दू राष्ट्रवाद के छोटे-मोटे लेख लिखता आया हूँ। स्वयं के भावों को व्यक्त करने की अदम्य उत्कंठा ही लिखने को बाध्य करती थी। अब हृदय पूरी तरह तृप्त है। अवशिष्ट जीवन परमात्मा को समर्पित है। किसी भी तरह की कोई चाहत नहीं है, पूरा मार्गदर्शन भगवान से प्राप्त है, और किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है।
आध्यात्म की गूढ बातें -- गुरुकृपा से अनुभूतियों द्वारा ही समझ में आती हैं, अतः सार्वजनिक मंच पर उन की चर्चा करना व्यर्थ है।एक सामान्य व्यक्ति के लिए तो धीरे-धीरे मानसिक रूप से निरंतर राम नाम का जप ही सर्वश्रेष्ठ साधना है।
जहाँ तक आध्यात्म की बात है, कोई ऐसा प्रश्न, संशय, शंका या जिज्ञासा मेरे समक्ष नहीं है, जिसका समाधान अभी तक मुझे नहीं हुआ हो। सारा मार्ग पूर्णतः स्पष्ट है। अतः अब और कुछ लिखने को कुछ बचा ही नहीं है। भगवान स्वयं सामने आकर बैठ गए हैं, और इधर-उधर कहीं भी नहीं देखने दे रहे हैं। उनको छोड़कर अन्यत्र कहीं दृष्टि कर भी नहीं सकता। आप सब महान आत्माओं को नमन !! ॐ तत्सत् !!
जीवन में परमात्मा की निरंतर अभिव्यक्ति ही धर्म है ---
जीवन में हम धर्म और आध्यात्म की जो बड़ी बड़ी बातें और चर्चा करते हैं, वे सब मन को बहलाने का एक मनोरंजन मात्र ही है| उस से कुछ क्षणों के लिए मन में पवित्रता तो आती है पर उस से अधिक कुछ भी नहीं| धर्म की अभिव्यक्ति तो मनोनिग्रह से होती है, मनोरंजन से नहीं| धर्म तो अपनी चेतना में जीया जाता है, वह निज जीवन में निरंतर अभिव्यक्त हो|
सर्वाधिक दुर्लभ है परमात्मा के प्रति परमप्रेम, उन्हें पाने की अभीप्सा, सदगुरू, सत्संगति और ब्रह्मविचार --
जहाँ तक आध्यात्म का संबंध है, परमात्मा की परम कृपा से स्वयं के लिए किसी भी प्रकार का कण मात्र भी कोई संशय नहीं है, सारा परिदृश्य और मार्ग स्पष्ट है| मार्ग में कहीं भी अंधकार नहीं है|
यह संपूर्णता व विराटता -- भूमा-वासना है, जो सदा बनी रहे
जिन की अनुकंपा से हम चैतन्य हैं, और जिन के प्रकाश से हमें स्वयं के होने का बोध है, वे ही हमारे परमप्रिय परमात्मा हैं, जिन का प्रेम हमें निरंतर मिल रहा है। हम उन को अपने हृदय का सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें, और उन की चेतना में आनंदमय रहें। परमप्रेम हमारा स्वभाव है, और आनंद उसकी परिणिती। मानसिक भावुकता से ऊपर उठें, और जब भी समय मिले, कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करते हुए आध्यात्म की परावस्था में रहें। हमारी हर सांस उनके प्रति समर्पित हो।
किसी पर दोषारोपण मत करो। हम जो कुछ भी हैं, वह अपने कर्मों से हैं ---
आध्यात्म में किसी पर दोषारोपण मत करो। हम जो कुछ भी हैं, अपने कर्मों से हैं। अपने कर्मफलों को भोगने के लिए ही हमें यह जन्म मिला है। अपने विगत के कर्मफलों से मुक्त होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बहुत अच्छा और सरल मार्ग बताया है| स्वाध्याय और साधना तो स्वयं को ही करनी होगी|
स्वयं में आत्म-ज्योति प्रज्ज्वलित होते ही असत्य का अंधकार तुरंत दूर होगा ---
सनातन-धर्म -- जिन सत्य सनातन सिद्धांतों पर टिका है, जैसे - आत्मा की शाश्वतता, माया, कर्मफल, पुनर्जन्म, आध्यात्म और भगवत्-प्राप्ति, -- इन्हें कोई नष्ट नहीं कर सकता। ये सनातन सत्य हैं, और इस सृष्टि और प्रकृति के धर्म हैं। रामायण और महाभारत में इसे बहुत अच्छी तरह समझाया गया है। धर्म-शिक्षा के अभाव में हम इसे नहीं जानते।
धर्म और आध्यात्म -- बलशाली और समर्थवान व्यक्तियों के लिए हैं, शक्तिहीनों के लिए नहीं ---
धर्म और आध्यात्म -- बलशाली और समर्थवान व्यक्तियों के लिए हैं, शक्तिहीनों के लिए नहीं ---
आध्यात्म में किसी भी तरह की आकांक्षा और अपेक्षा ... पतन का कारण हैं, और अभीप्सा व परमप्रेम ... उन्नति का आरंभ है .....
आध्यात्म में किसी भी तरह की आकांक्षा और अपेक्षा ... पतन का कारण हैं, और अभीप्सा व परमप्रेम ... उन्नति का आरंभ है .....
आओ, अब विशुद्ध आध्यात्म की बातें करेंगे ---
आओ, अब विशुद्ध आध्यात्म की बातें करेंगे ---
"कूटस्थ सूर्यमंडल में पुरुषोत्तम का ध्यान" और "ऊर्ध्वमूल" का रहस्य --- .
"कूटस्थ सूर्यमंडल में पुरुषोत्तम का ध्यान" और "ऊर्ध्वमूल" का रहस्य ---
भारत की आत्मा ही आध्यात्म है, और सनातन-धर्म ही भारत का प्राण है ---
भारत की आत्मा ही आध्यात्म है, और सनातन-धर्म ही भारत का प्राण है। यह भारत भूमि धन्य है। यहाँ धर्म, भक्ति, और ज्ञान पर जितना चिंतन और विचार हुआ है, उतना पूरे विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं हुआ है। भगवान की भक्ति पर कितना भी लिखो, कोई अंत नहीं है। गंधर्वराज पुष्पदंत विरचित "शिव महिम्न स्तोत्र" का ३२वाँ श्लोक कहता है --
साधना, स्वाध्याय, सत्संग, और आध्यात्म का सार जो मुझे समझ में आया है ---
साधना, स्वाध्याय, सत्संग, और आध्यात्म का सार जो मुझे समझ में आया है ---