जहाँ तक आध्यात्म का संबंध है, परमात्मा की परम कृपा से स्वयं के लिए किसी भी प्रकार का कण मात्र भी कोई संशय नहीं है, सारा परिदृश्य और मार्ग स्पष्ट है| मार्ग में कहीं भी अंधकार नहीं है|
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्| यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्||"
"मूक होई वाचाल, पंगु चढ़ै गिरिवर गहन| जासु कृपा सु दयाल, द्रवहु सकल कलिमल दहन||"
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वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण, गुरु महाराज और सूक्ष्म जगत के उन सभी महात्माओं को मैं नमन करता हूँ, जिन्होनें समय समय पर मेरी रक्षा और मार्गदर्शन किया है| उनका मैं सदैव ऋणी हूँ| सारा जीवन उन्हीं को समर्पित है|
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
"ब्रह्मानन्दं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् |
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि ||"
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दुर्लभ क्या है? सर्वाधिक दुर्लभ है परमात्मा के प्रति परमप्रेम, उन्हें पाने की अभीप्सा, सदगुरू, सत्संगति और ब्रह्मविचार| ये मिल गए तो भवसागर पार है, फिर और कुछ नहीं चाहिए|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ नवम्बर २०१९
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