जिन के हृदय में इन्द्रीय सुखों की कामना भरी पडी है वे आध्यात्म के क्षेत्र में न आयें, उन्हें लाभ की बजाय हानि ही होगी| साधना में विक्षेप ही सब से बड़ी बाधा है| विक्षेप उन्हीं को होता है जिनके विचार वासनात्मक होते हैं| जिनके हृदय में वासनात्मक विचार भरे पड़े हैं उन्हें किसी भी तरह की ध्यान साधना नहीं करनी चाहिए अन्यथा लाभ की बजाय हानि ही होगी| वासनात्मक विचारों से भरा ध्यान साधक निश्चित रूप से आसुरी शक्तियों का उपकरण बन जाता है| इसीलिए पतंजलि ने यम-नियमों पर इतना जोर दिया है| गुरु गोरखनाथ तो अपने शिष्यों के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य की पात्रता अनिवार्य रखते थे| स्वामी विवेकानंद ने भी ध्यान साधना से पूर्व ब्रह्मचर्य को अनिवार्य बताया है| जिन लोगों का मन वासनाओं से भरा पडा है वे बाहर ही रहें, उन्हें भीतर आने की आवश्यकता नहीं है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ फरवरी २०१९
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