आओ, अब विशुद्ध आध्यात्म की बातें करेंगे ---
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मैं विश्व के कारण नहीं, विश्व मेरे कारण है। मैं ही समस्त जीवन हूँ। जीवन मेरा नहीं, मैं जीवन का निर्माण कर रहा हूँ। मैं भगवान के साथ एक हूँ, और भगवान मेरे साथ एक है। सृष्टि मेरे से है, मैं सृष्टि से नहीं।
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जीवन में आज तक भगवान के रूप में मैं सिर्फ स्वयं से यानि भगवान से ही मिला हूँ, और भगवान में ही विचरण किया है। अन्य कोई है ही नहीं। भगवान ही यह "मैं" बन गए हैं। भगवान से पृथक होने का बोध एक भ्रम मात्र है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
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