आध्यात्म में किसी पर दोषारोपण मत करो। हम जो कुछ भी हैं, अपने कर्मों से हैं। अपने कर्मफलों को भोगने के लिए ही हमें यह जन्म मिला है। अपने विगत के कर्मफलों से मुक्त होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बहुत अच्छा और सरल मार्ग बताया है| स्वाध्याय और साधना तो स्वयं को ही करनी होगी|
यदि पर्वत का पानी तालाब में आता है तो पर्वत का क्या दोष? तालाब को स्वयं ही पर्वत से भी अधिक ऊँचा बनना होगा|
एड़ियाँ ऊँची कर के पंजों पर खड़े होने, या दूसरों के सिर काट कर हम बड़े नहीं हो सकते|
आध्यात्म में कुछ पाने या प्राप्ति की कामना एक मरीचिका है। जो कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है, वह तो हम स्वयं हैं।
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०१८
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