धर्म और आध्यात्म -- बलशाली और समर्थवान व्यक्तियों के लिए हैं, शक्तिहीनों के लिए नहीं ---
.
श्रुति भगवति (वेद) स्पष्ट कहती है कि बलहीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती -- "नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्।"
(मुण्डकोपनिषद् ३/२/४)
अर्थात् -- यह 'परमात्मा' बलहीन व्यक्ति के द्वारा लभ्य नहीं है, न ही प्रमादपूर्ण प्रयास से, और न ही लक्षणहीन तपस्या के द्वारा प्राप्य है|
.
एक बलशाली व्यक्ति और समाज ही ईश्वर को उपलब्ध हो सकता है। पहले हम स्वयं की रक्षा करने में समर्थ हों तभी आध्यात्मिक बन सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया था जो सबसे बड़ा वीर, भक्त और शक्तिशाली था।
हमारी सबसे बड़ी समस्या है -- सनातन-धर्म और भारत की रक्षा कैसे करें?
धर्म की रक्षा -- धर्म के पालन से होती है। हम अपने धर्म व राष्ट्र की रक्षा करें। इस पर गहन विचार करें। यही हमारी एकमात्र समस्या इस समय है। बलशाली और पराक्रमी होकर ही हम परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।
.
आध्यात्म में जितना भी मुझे समझ में आया, और जो भी संभव हुआ, वह मेरे माध्यम से खूब लिखा गया है। भगवान श्रीकृष्ण की कुछ विशेष कृपा ही मुझ पर रही है, इसलिए उनके उपदेशों को समझने में मुझे कभी कोई कठिनाई नहीं हुई।
अब तो प्रत्यक्ष रूप से पूरा अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) ही उनका हो गया है, अतः शेष लौकिक जीवन उन्हीं के ध्यान, भजन, स्मरण आदि में ही व्यतीत हो जाएगा। सोशियल मीडिया पर बना रहूँगा। इसे नहीं छोड़ूँगा।
आप सब में परमात्मा को नमन !!
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१५ मई २०२२
.
पुनश्च: -- धर्म और आध्यात्म की बातें बलशाली और समर्थवान व्यक्तियों के लिए होती हैं, शक्तिहीनों के लिए नहीं। श्रुति भगवति (वेद) स्पष्ट कहती है कि बलहीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती ---
"नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्।"
(मुण्डकोपनिषद् ३/२/४)
अर्थात् -- यह 'परमात्मा' बलहीन व्यक्ति के द्वारा लभ्य नहीं है, न ही प्रमादपूर्ण प्रयास से, और न ही लक्षणहीन तपस्या के द्वारा प्राप्य है|
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
No comments:
Post a Comment