Tuesday 12 May 2020

अब मन भर गया है, कुछ भी लिखने की इच्छा नहीं है ....

अथ वायुः अमृतम् अनिलम् | इदम् शरीरं भस्मान्तं भूयात् | ॐ कृतो स्मर, कृतं स्मर, कृतो स्मर, कृतं स्मर || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||
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प्रिय निजात्मगण, सप्रेम अभिवादन ! मुझे आप सब से बहुत अधिक प्रेम, सम्मान, स्नेह और आशीर्वाद मिला है जिसके लिए मैं आप सब का बहुत अधिक आभारी हूँ| मेरा स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता है इसलिए मैं फेसबुक आदि सभी सोशियल मीडिया पर सभी तरह का लेखन कार्य स्थायी रूप से बंद कर रहा हूँ| अन्य कोई कारण नहीं है| इस लेखन के पीछे ईश्वर की प्रेरणा ही थी| पिछले कई वर्षों में बहुत अधिक लेख मेरे माध्यम से लिखे गए हैं जिन का श्रेय मैं नहीं लेता क्योंकि सारी शक्ति और प्रेरणा ईश्वर की ही थी, अतः सारा श्रेय ईश्वर को ही है, मुझे नहीं| ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत भी ईश्वर ही है, पुस्तकें नहीं| पुस्तकें तो मात्र प्रेरणा और सूचना ही देती हैं, कोई ज्ञान नहीं|
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मुझे किसी भी तरह का कोई यश, कीर्ति और सम्मान नहीं चाहिए| मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे याद भी करे| याद ही करना है तो शाश्वत परमात्मा को करें, इन नश्वर शरीर महाराज को नहीं, जिन की आयु ७२ वर्ष से अधिक की हो चुकी है| अब अवशिष्ट सारा जीवन परमात्मा की ध्यान साधना में ही बिताने की प्रेरणा मिल रही है| जब यह शरीर छोड़ने का समय आयेगा तब तक भगवान का ध्यान करते करते सचेतन रूप से देह-त्याग करने की क्षमता भी गुरुकृपा से प्राप्त हो ही जाएगी| पूर्व जन्मों के गुरु ही इस जन्म में भी मेरे गुरु हैं जो सूक्ष्म जगत से अपनी कृपा-वृष्टि करते रहते हैं| पूर्व-जन्म की स्मृतियाँ कभी-कभी सामने आ जाती हैं| इस जन्म में अपने गुरुओं को कभी अपनी भौतिक आँखों से देखा नहीं पर चैतन्य में उनकी उपस्थिती सदा रहती है|
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कुछ समय पहिले एक मोबाइल स्मार्ट मोबाइल फोन खरीदा था, उसका उपयोग बंद कर एक बेसिक मोबाइल फोन ही रखूँगा जिसका भी कम से कम और अति आवश्यक प्रयोग ही करूंगा| एक लेपटॉप है जिसका प्रयोग भी व्यक्तिगत मेल आदि के लिए ही करूंगा| मोबाइल फोन पर लिखना इस आयु में संभव नहीं है|

मेरी राजनीतिक विचारधारा : ---

सत्य सनातन धर्म ही भारत की राजनीति हो| भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान हों| भारत में असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव हो, भारत के भीतर और बाहर के शत्रुओं का नाश हो| सत्य सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो| इस से पृथक मेरी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं है|

मेरी आध्यात्मिक विचारधारा :---

जो श्रीमद्भगवद्गीता में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण की और श्रुति भगवती की विचारधारा है, वही मेरी भी आध्यात्मिक विचारधारा है, उस से एक माइक्रोमीटर भी इधर उधर नहीं| इसमें कोई संदेह नहीं है|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ और मेरे प्राण है| आप सब को सविनय सादर नमस्कार करता हूँ| आप सब का आशीर्वाद सदा बना रहे|
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||"
ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१२ मई २०२०

भगवान निरंतर हमारे साथ हैं .....

यह भाव हर समय बना रहे कि भगवान निरंतर हमारे साथ हैं| वे एक पल के लिए भी हमारे से दूर नहीं हो सकते| यह अपने आप में ही एक बहुत बड़ी साधना है|
भगवान हैं, यहीं पर है, सर्वत्र हैं, इसी समय हैं, सर्वदा हैं, वे ही सब कुछ हैं, और सब कुछ वे ही हैं| वे ही हमारे हृदय में धडक रहे हैं, वे ही इन नासिकाओं से सांसें ले रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन हाथों से वे ही हर कार्य कर रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, इस मन और बुद्धि से वे ही सोच रहे हैं, हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही हैं| सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि वे ही हैं| वे परम विराट और अनंत हैं| हम तो निमित्त मात्र, उन के एक उपकरण मात्र हैं| भगवान स्वयं ही हमें माध्यम बना कर सारा कार्य कर रहे हैं| कर्ता हम नहीं, स्वयं भगवान हैं|
सारी महिमा भगवान की है| भगवान ने जहाँ भी रखा है और जो भी दायित्व दिया है उसे हम नहीं, स्वयं भगवान ही कर रहे हैं| वे ही जगन्माता हैं, वे ही परमपुरुष हैं| हम उन के साथ एक हैं| कहीं कोई भेद नहीं है| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
११ मई २०२०

एक दिव्य अनुभूति .....

एक दिव्य अनुभूति .....

मनुष्य में जैसी बुद्धि होती है वह वैसे ही कर्म करता है| मुझ अकिंचन में भी कोई करामात नहीं है, सामान्य से भी कम ही बुद्धि है और अनेक कमियाँ हैं| मेरी पीड़ा यह है कि अब मेरी ऊर्जा हर ओर से तीब्र गति से क्षीण होती जा रही है| यह शरीर महाराज भी वृद्ध और बेकार हो गया है| इसके हृदय में छिपा अंधकार, और अवचेतन मन में भरा तमोगुण, अपना प्रभाव उग्र रूप से दिखाने लगा है| किसी के भी उपदेश अब अच्छे नहीं लगते| कोई मुझे उपदेश देता है तो ऐसे लगता है जैसे कोई भैंस के आगे बीन बजा रहा है| हृदय बहुत व्याकुल और आर-पार की लड़ाई लड़ना चाहता था|
अब और क्या करता? विवश होकर अपने इष्टदेव और गुरु महाराज का ध्यान किया और पूर्ण हृदय से प्रार्थना की| ध्यान करते करते चेतना एक भाव-समाधि में चली गई| धीरे-धीरे भावजगत में ऐसा लगा कि बालरूप में स्वयं भगवान मेरे समक्ष खड़े-खड़े मुस्करा रहे हैं| पता नहीं क्यों मुझे बहुत बुरा लगा और उन्हें डांट कर भगा दिया| कई ऐसे शब्द भी बोल दिये जो नहीं बोलने चाहियें थे| भगवान ने कोई बुरा नहीं माना और मुस्कराते हुए चले गए| पर घोर आश्चर्य! वे कहीं गए नहीं, देखा, सामने ही एक ऊंचे आसन पर उसी बालरूप में पद्मासन लगाए ध्यानस्थ हैं| उनका अप्रतिम सौंदर्य इतना मनमोहक और आकर्षक कि कोई सुध-बुध नहीं रही| कोई शिकायत या असंतोष अब नहीं रहा| हृदय के सारे भाव शांत होकर लुप्त हो गए| मन इतना शांत हो गया कि शब्द-रचना ही असंभव हो गई| अंत में एक ही बात इस अति-अति अल्प और अति सीमित बुद्धि से समझ में आई जब उनकी एक अंतिम मुस्कान के साथ वह दृश्य विसर्जित हो गया| उनकी मुस्कान का अर्थ था कि तुम्हें अब और कुछ भी नहीं करना है, जो करना है वह मैं ही करूंगा, तुम सिर्फ मेरी ओर सदा निहारते रहो, मेरी छवि सदा अपने समक्ष रखो, अन्य कुछ भी नहीं| वह भाव-समाधि भी समाप्त हो गई और आँखों में प्रेमाश्रुओं के अतिरिक्त सब कुछ सामान्य हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं था| पर उनका स्पष्ट संदेश मिल गया .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
अर्थात् जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं दूर नहीं होता और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता||
भगवान वासुदेव (जो सर्वत्र सम भाव से व्याप्त हैं) सब की आत्मा हैं, जो उन्हें सर्वत्र देखता है उसके लिए वे कभी अदृश्य नहीं होते|
ये पंक्तियाँ भी उन्हीं की प्रेरणा से लिखी जा रही हैं| मेरी कोई कामना नहीं है|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१० मई २०२०

हमें अपने कर्तव्य-कर्म तो नित्य करने ही पड़ेंगे ....

हमें अपने कर्तव्य-कर्म तो नित्य करने ही पड़ेंगे| यज्ञ, दान और तप हमारे नित्यकर्म हैं जिनके न करने पर उनका परिणाम भी भुगतना ही पड़ता है| अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने पर कोई क्षमा नहीं है| भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं .....
"उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्| सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः||३:२४||"
अर्थात् यदि मैं कर्म न करूँ, तो ये समस्त लोक नष्ट हो जायेंगे; और मैं वर्णसंकर का कर्ता तथा इस प्रजा का हनन करने वाला होऊँगा||
भगवान कहते हैं .....
"यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्| यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्||१८:५||"
अर्थात् यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याज्य नहीं है, किन्तु वह नि:सन्देह कर्तव्य है; यज्ञ, दान और तप ये मनीषियों (साधकों) को पवित्र करने वाले हैं|
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भगवान एक अति गोपनीय सूक्ष्म यज्ञ के बारे में बताते हैं .....
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे| प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः||४:२९||"
अर्थात् अन्य (योगीजन) अपानवायु में प्राणवायु को हवन करते हैं, तथा प्राण में अपान की आहुति देते हैं, प्राण और अपान की गति को रोककर, वे प्राणायाम के ही समलक्ष्य समझने वाले होते हैं||
उपरोक्त एक गोपनीय विद्या है जो भगवान की विशेष कृपा से ही समझ में आती है| इसे कोई सिद्ध गुरु ही समझा सकता है| एक बार यह समझ में आ जाये तो यह भी नित्य कर्म हो जाती है|
इनके अतिरिक्त हंसयोग (अजपा-जप) यानि शिवयोग व नादानुसंधान आदि भी बहुत अधिक प्रभावशाली सहायक साधनायें हैं, जिनका नित्य अभ्यास करना चाहिए| ये भी हमारे नित्य कर्मों में हो|
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अपनी शंकाओं के निवारण हेतु संतों से मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करें| संत सदा जन-कल्याण की ही सोचते हैं, वे कभी गलत बात नहीं बताएँगे|
१० मई २०२०

आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों को उन का सम्मान मिले ....

द्वितीय विश्व युद्ध के समय के, आजाद हिन्द फौज के सैनिकों सहित, जो भी पूर्व सैनिक जीवित हैं (अब उनकी आयु कम से कम ९० वर्ष से अधिक की ही होगी), उनका आधिकारिक रूप से पूरा सम्मान होना चाहिए| द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति का 'विजय दिवस', रूस को छोड़कर अन्य देश ८ मई को मनाते हैं, पर रूस ९ मई को मनाता है| द्वितीय विश्वयुद्ध में सबसे अधिक मरने वाले सैनिक भारत के थे क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों का उपयोग युद्ध में चारे की तरह किया था| जहाँ भी मृत्यु निश्चित होती वहाँ भारतीय सैनिकों को मरने के लिए युद्ध में झौंक दिया जाता था| बर्मा के मोर्चे पर तो लाखों भारतीय सिपाहियों को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया गया था| उनका राशन यूरोप में भेज दिया गया|
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युद्ध के बाद जीवित बचे भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों के आदेश मानना और उन्हे सलाम करना बंद कर दिया था| मुंबई में नौसैनिकों ने अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया| अंग्रेज सरकार ने पाया कि यदि अभी ससम्मान भारत नहीं छोड़ा तो भारत के लोग उन्हें मार कर भारत में ही गाड़ देंगे| विश्वयुद्ध में मार खाकर बुरी तरह थकी हुई हुई उनकी सेना में वह सामर्थ्य नहीं था कि अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह पर उतारू भारतीय सैनिकों पर नियंत्रण कर सके| अतः एकमात्र इसी कारण से अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय लिया| गांधीजी का योगदान इस में शून्य था| जाते-जाते अंग्रेजों ने भारत को जितना लूट सकते थे उतना लूटा, जितनी हानि पहुँचा सकते थे उतनी हानि पहुंचाई, भारत का विभाजन किया, और अपने मानस पुत्रों को भारत की सत्ता हस्तांतरित कर चले गए|
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सत्ता हस्तांतरण के बाद सत्ता में आए भारतीय शासकों ने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे अधिकारी थे| न तो उन्हें बापस सेना में लिया गया, न उन का बकाया वेतन दिया गया और न उन्हें कोई पेंशन दी गई| अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में २६ हजार से अधिक आजाद हिन्द फौज के सिपाही मारे गए थे जिन्हें वीरोचित सम्मान मिलना चाहिए था जो उन्हें नहीं दिया गया| नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत से भागने के लिए विवश किया गया| उनका क्या हुआ यह भी पता नहीं चलने दिया गया| कहा गया कि उनकी मृत्यु एक वायुयान दुर्घटना में हुई थी, पर मुखर्जी आयोग को ताईवान सरकार ने लिखित में दिया था कि उस दिन कोई वायुयान दुर्घटना ही नहीं हुई थी| वे भाग कर मंचूरिया चले गए थे जो उस समय रूस के अधिकार में था| फिर क्या हुआ किसी नहीं पता| यह तो रूसी सरकार ही बता सकती है जो कभी नहीं बताएगी क्योंकि इस से संबंध खराब हो सकते हैं|
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इस लेख के लिखने का उद्देश्य यही है कि आज जो हम सिर ऊँचा कर के बैठे हैं, इस का श्रेय द्वितीय विश्व युद्ध के जीवित या मृत भारतीय सैनिकों को हैं, उनमें आज़ाद हिन्द फौज के सैनिक भी हैं| उन्हें उन का गौरव लौटाया जाये, उनकी वीरता को मान्यता दी जाये और जो जीवित बचे हैं उनको उनका पूरा सम्मान दिया जाये| वंदे मातरम् !! भारत माता की जय !!
९ मई २०२०

मन कई बार अशांत क्यों हो जाता है? ....

"निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा||"
कई बार मन इतना अधिक शांत हो आता है कि किसी भी तरह की शब्द-रचना संभव नहीं होती| यह स्थिति बड़ी आदर्श और शान्तिदायक होती है क्योंकि तब हम परमात्मा के समीप होते हैं| यही स्थिति सदा बनी रहे तो आदर्श है| इस स्थिति में इस भौतिक देह का बोध अति अति अल्प होकर नगण्य हो जाता है, और परमात्मा की सर्वव्यापकता के साथ चेतना जुड़ जाती है| यह शरीर ही नहीं, इसके साथ-साथ हमारे मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार भी परमात्मा को पाने के साधन ही हैं| इन का सदुपयोग होना चाहिए, अन्यथा ये हमें नर्क-कुंड की अग्नि में गिरा देते हैं|
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प्राण-तत्व जितना चंचल होता है, मन उतना ही अशांत होता है| प्राण-तत्व की चंचलता जितनी कम होती जाती है हम परमात्मा के उतना ही समीप होते हैं| ईश्वर की परम कृपा से ही प्राण तत्व, आकाश तत्व, और बीज मंत्र चैतन्य होकर हमें अनुभूत होते हैं| ईश्वर की कृपा भी तभी होती है जब हमारे में 'निष्कपटता', 'अकुटिलता', 'निष्ठा', 'परमप्रेम' और "अभीप्सा" होती है| अन्यथा हम परमात्मा के मार्ग के पात्र नहीं हैं| जिनके हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा पड़ा है, मैं उनके साथ एक हूँ| अन्य सभी को पूर्ण हृदय से दूर से ही नमस्कार!
"बंदउँ संत असज्जन चरना| दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना||
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं| मिलत एक दुख दारुन देहीं||
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ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !!
९ मई २०२०

धर्मरक्षा के अतिरिक्त अभी अन्य सब विषय गौण हैं .....

धर्मरक्षा के अतिरिक्त अभी अन्य सब विषय गौण हैं| धर्म की रक्षा उसके पालन से ही होगी| तभी भगवान हमारी रक्षा करेंगे| हमारी आध्यात्मिक साधना धर्मरक्षा हेतु ही हो| अपने स्वधर्म पर हम अडिग रहें|
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||३:३५||"
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
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हमारे आदर्श कौन हो सकते हैं?
इस का कोई भी उत्तर सभी के लिए एक नहीं हो सकता| सभी की सोच अलग-अलग होती है| जहां तक मेरी सोच है, मेरे आदर्श तो वे ही हो सकते हैं जो मेरे साथ एक हैं| वे निरंतर मेरी चेतना में रहते हैं, उनसे पृथकता की मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता|
यह एक परम गोपनीय रहस्य ही रहे तो ठीक है| अपना रहस्य किसी को बताना भी नहीं चाहिए|
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हारिये ना हिम्मत, बिसारिये न हरिः नाम| जब भी समय मिले तब कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करें| गीता में जिस ब्राह्मी स्थिति की बात कही गई है, निश्चय पूर्वक प्रयास करते हुए आध्यात्म की उस परावस्था में रहें| सारा जगत ही ब्रह्ममय है| किसी भी परिस्थिति में परमात्मा के अपने इष्ट स्वरूप की उपासना न छोड़ें| पता नहीं कितने जन्मों में किए हुए पुण्य कर्मों के फलस्वरूप हमें भक्ति का यह अवसर मिला है| कहीं ऐसा न हो कि हमारी ही उपेक्षा से परमात्मा को पाने की हमारी अभीप्सा ही समाप्त हो जाए|
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"वेदान्त के ब्रह्म ही साकार रूप में प्रत्यक्ष भगवान श्रीकृष्ण स्वयं हैं, वे ही योगियों के परमशिव और पुरुषोत्तम हैं, और वे ही परमेष्ठि परात्पर सद्गुरु हैं| तत्व रूप से कोई भेद नहीं है|"
"आदि अंत कोउ जासु न पावा| मति अनुमानि निगम अस गावा||
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना| कर बिनु करम करइ बिधि नाना||
आनन रहित सकल रस भोगी| बिनु बानी बकता बड़ जोगी||
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा| ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा||
असि सब भाँति अलौकिक करनी| महिमा जासु जाइ नहिं बरनी||"


७ मई २०२० 

अहंकार और लोभ ही हमारे पतन के कारण हैं .....

हमारे ही नहीं, बड़े से बड़े संत-महात्मा और राजा-महाराजा के भी पतन के दो ही कारण होते हैं ...
(१) अहंकार (२) लोभ || कोई तीसरा कारण नहीं है|
महाभारत में लोभ और अहंकार को ही हिंसा का कारण बताया गया है| लोभ और अहंकार से मुक्ति ही अहिंसा है, जो परम धर्म है|
हम स्वयं को यह शरीर मानते हैं, यह सब से बड़ा अहंकार है| अपने स्वयं के कोई बड़ा आदमी होने, गुणवान व साधन-सम्पन्न होने, बहुत बड़ा साधक या महात्मा होने का भाव भी अहंकार है जो पतन का कारण होता है| महाभारत में इसे बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है| यश, प्रसिद्धि व प्रभावशाली होने की चाह भी लोभ है, जो हमसे गलत कार्य करवाता है| पराये धन, पराये स्त्री/पुरुष, व असीमित भौतिक सुख-सुविधाओं की चाह भी हमारा पतनगामी लोभ है| हमारे शास्त्रों में इसके उदाहरण भरे पड़े हैं|

जो अहंकार और लोभ से मुक्त है वही वास्तविक चरित्रवान है| देश की सबसे बड़ी समस्या राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की है| चरित्रवान, कार्यकुशल व राष्ट्रभक्त नागरिक ही देश की वास्तविक शक्ति हैं| अङ्ग्रेज़ी राज से मुक्ति के बाद से ही देश के उच्च पदस्थ लोगों में भ्रष्टाचार था जो समय के साथ बढ़ता गया| देश में हजारों करोड़ रुपयों के अनेक घोटाले हुए हैं जिनमें देश के शीर्षस्थ लोग सम्मिलित थे| आश्चर्य है कि सभी घोटालेबाज बच गये और घोटाले का पैसा वसूल नहीं हुआ| ये घोटाले अशिक्षित व अज्ञानी लोगों ने नहीं वरन, बल्कि समाज के सम्मानित व प्रतिष्ठित लोगों ने किये| सत्ता के शीर्ष में बैठे हुए लोगों का चरित्र आदर्श हो| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारीलाल नन्दा, अटलबिहारी बाजपेयी के बाद अब देश में श्री नरेन्द्र मोदी जी ही हैं जिन्हें हम चरित्रवान कह सकते हैं| वर्तमान शिक्षा व्यवस्था देश को चरित्रवान युवा नहीं दे सकती| देश में बड़े-बड़े विचारक हैं जिन्हें इस समस्या पर विचार करना चाहिए|
६ मई २०२०