Tuesday 12 May 2020

आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों को उन का सम्मान मिले ....

द्वितीय विश्व युद्ध के समय के, आजाद हिन्द फौज के सैनिकों सहित, जो भी पूर्व सैनिक जीवित हैं (अब उनकी आयु कम से कम ९० वर्ष से अधिक की ही होगी), उनका आधिकारिक रूप से पूरा सम्मान होना चाहिए| द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति का 'विजय दिवस', रूस को छोड़कर अन्य देश ८ मई को मनाते हैं, पर रूस ९ मई को मनाता है| द्वितीय विश्वयुद्ध में सबसे अधिक मरने वाले सैनिक भारत के थे क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों का उपयोग युद्ध में चारे की तरह किया था| जहाँ भी मृत्यु निश्चित होती वहाँ भारतीय सैनिकों को मरने के लिए युद्ध में झौंक दिया जाता था| बर्मा के मोर्चे पर तो लाखों भारतीय सिपाहियों को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया गया था| उनका राशन यूरोप में भेज दिया गया|
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युद्ध के बाद जीवित बचे भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों के आदेश मानना और उन्हे सलाम करना बंद कर दिया था| मुंबई में नौसैनिकों ने अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया| अंग्रेज सरकार ने पाया कि यदि अभी ससम्मान भारत नहीं छोड़ा तो भारत के लोग उन्हें मार कर भारत में ही गाड़ देंगे| विश्वयुद्ध में मार खाकर बुरी तरह थकी हुई हुई उनकी सेना में वह सामर्थ्य नहीं था कि अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह पर उतारू भारतीय सैनिकों पर नियंत्रण कर सके| अतः एकमात्र इसी कारण से अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय लिया| गांधीजी का योगदान इस में शून्य था| जाते-जाते अंग्रेजों ने भारत को जितना लूट सकते थे उतना लूटा, जितनी हानि पहुँचा सकते थे उतनी हानि पहुंचाई, भारत का विभाजन किया, और अपने मानस पुत्रों को भारत की सत्ता हस्तांतरित कर चले गए|
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सत्ता हस्तांतरण के बाद सत्ता में आए भारतीय शासकों ने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे अधिकारी थे| न तो उन्हें बापस सेना में लिया गया, न उन का बकाया वेतन दिया गया और न उन्हें कोई पेंशन दी गई| अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में २६ हजार से अधिक आजाद हिन्द फौज के सिपाही मारे गए थे जिन्हें वीरोचित सम्मान मिलना चाहिए था जो उन्हें नहीं दिया गया| नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत से भागने के लिए विवश किया गया| उनका क्या हुआ यह भी पता नहीं चलने दिया गया| कहा गया कि उनकी मृत्यु एक वायुयान दुर्घटना में हुई थी, पर मुखर्जी आयोग को ताईवान सरकार ने लिखित में दिया था कि उस दिन कोई वायुयान दुर्घटना ही नहीं हुई थी| वे भाग कर मंचूरिया चले गए थे जो उस समय रूस के अधिकार में था| फिर क्या हुआ किसी नहीं पता| यह तो रूसी सरकार ही बता सकती है जो कभी नहीं बताएगी क्योंकि इस से संबंध खराब हो सकते हैं|
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इस लेख के लिखने का उद्देश्य यही है कि आज जो हम सिर ऊँचा कर के बैठे हैं, इस का श्रेय द्वितीय विश्व युद्ध के जीवित या मृत भारतीय सैनिकों को हैं, उनमें आज़ाद हिन्द फौज के सैनिक भी हैं| उन्हें उन का गौरव लौटाया जाये, उनकी वीरता को मान्यता दी जाये और जो जीवित बचे हैं उनको उनका पूरा सम्मान दिया जाये| वंदे मातरम् !! भारत माता की जय !!
९ मई २०२०

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