भगवान शिव की मानस कन्या ..... नर्मदा नदी .....
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सभी पवित्र नदियों के दो रूप होते हैं .... एक तो उनका स्थूल जल रूप है, और दूसरा उनकी एक सूक्ष्म दैवीय सत्ता का रूप है, जिसकी अनुभूति केवल ध्यान में ही की जा सकती है| वैसे तो भारत कि सभी नदियाँ पवित्र हैं पर नर्मदा का एक विशेष महत्व है| "नर्मदा सरितां श्रेष्ठा रुद्रतेजात् विनि:सृता| तार्येत् सर्वभूतानि स्थावरानि चरानी च||" समस्त नदियों में श्रेष्ठ नदी नर्मदा रूद्र के तेज से उत्पन्न हुई है और स्थावर, अस्थावर आदि सब किसी का परित्राण करती है| "सर्वसिद्धिमेवाप्नोति तस्या तट परिक्र्मात्" उसके तट की परिक्रमा से सर्वसिद्धियों की प्राप्ति होती है|
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नर्मदा शिव जी की मानस कन्या है| नर्मदा जी के बारे में लोकनाथ ब्रह्मचारी जो महातप:सिद्ध शिवदेहधारी महातपस्वी महात्मा थे, ने अपने शिष्यों को बताया था कि वे एक बार नर्मदा परिक्रमा के समय एक विशिष्ट घाट पर बैठे थे कि एक काले रंग की गाय नदी में उतरी और जब वह नहा कर बाहर निकली तो उसका रंग गोरा हो गया| ध्यानस्थ होकर उन्होंने इसका रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने देखा कि वह कृष्णा गाय और कोई नहीं स्वयं गंगा माता थीं|
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विद्युत् प्रभा के रंग जैसी हाथ में त्रिशूल लिए कन्या रूप में माँ नर्मदा ने अपने तट पर तपस्यारत महात्माओं की सदा रक्षा की है| इसी लिए पूरा नर्मदा तट एक तपोभूमि रहा है|
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अमरकंटक के शिखर पर भगवान शिव एक बार गहरे ध्यान में थे कि सहसा उनके नीले कंठ से एक कन्या का आविर्भाव हुआ जिसके दाहिने हाथ में एक कमंडल था और बाएँ हाथ में जपमाला| वह कन्या उनके दाहिने पांव पर खड़ी हुई और घोर तपस्या में लीन हो गयी| जब शिवजी का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने उस कन्या का ध्यान तुडाकर पूछा कि हे भद्रे तुम कौन हो? मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूँ| तब उस कन्या ने उत्तर दिया --- समुद्र मंथन के समय जो हलाहल निकला था और जिसका पान करने से आप नीलकंठ कहलाये, मेरा जन्म उसी नीलकंठ से हुआ है| मेरी आपसे विनती है कि मैं इसी प्रकार आपसे सदा जुडी रहूँ|
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भगवान शिव ने कहा -- तथास्तु! पुत्री तुम मेरे तेज से जन्मी हो, इसलिए तुम न केवल मेरे संग सदा के लिए जुडी रहोगी बल्कि तुम महामोक्षप्रदा नित्य सिद्धि प्रदायक रहोगी|
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वरदान देने के बाद भगवान शिव तुरंत अंतर्ध्यान हो गए और वह कन्या पुनश्चः तपस्या में लीन हो गयी| भगवान शिव पुन: कुछ समय पश्चात उस कन्या के समक्ष प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरा जलस्वरूप बनोगी, मैं तुम्हे 'नर्मदा' नाम देता हूँ और तुम्हारे पुत्र के रूप में सदा तुम्हारी गोद में बिराजूंगा| हे महातेजस्वी कन्ये! मैं अभी से तुम्हारी गोद में चिन्मयशक्ति संपन्न होकर शिवलिंग के रूप में बहना आरम्भ करूंगा|
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सभी पवित्र नदियों के दो रूप होते हैं .... एक तो उनका स्थूल जल रूप है, और दूसरा उनकी एक सूक्ष्म दैवीय सत्ता का रूप है, जिसकी अनुभूति केवल ध्यान में ही की जा सकती है| वैसे तो भारत कि सभी नदियाँ पवित्र हैं पर नर्मदा का एक विशेष महत्व है| "नर्मदा सरितां श्रेष्ठा रुद्रतेजात् विनि:सृता| तार्येत् सर्वभूतानि स्थावरानि चरानी च||" समस्त नदियों में श्रेष्ठ नदी नर्मदा रूद्र के तेज से उत्पन्न हुई है और स्थावर, अस्थावर आदि सब किसी का परित्राण करती है| "सर्वसिद्धिमेवाप्नोति तस्या तट परिक्र्मात्" उसके तट की परिक्रमा से सर्वसिद्धियों की प्राप्ति होती है|
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नर्मदा शिव जी की मानस कन्या है| नर्मदा जी के बारे में लोकनाथ ब्रह्मचारी जो महातप:सिद्ध शिवदेहधारी महातपस्वी महात्मा थे, ने अपने शिष्यों को बताया था कि वे एक बार नर्मदा परिक्रमा के समय एक विशिष्ट घाट पर बैठे थे कि एक काले रंग की गाय नदी में उतरी और जब वह नहा कर बाहर निकली तो उसका रंग गोरा हो गया| ध्यानस्थ होकर उन्होंने इसका रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने देखा कि वह कृष्णा गाय और कोई नहीं स्वयं गंगा माता थीं|
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विद्युत् प्रभा के रंग जैसी हाथ में त्रिशूल लिए कन्या रूप में माँ नर्मदा ने अपने तट पर तपस्यारत महात्माओं की सदा रक्षा की है| इसी लिए पूरा नर्मदा तट एक तपोभूमि रहा है|
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अमरकंटक के शिखर पर भगवान शिव एक बार गहरे ध्यान में थे कि सहसा उनके नीले कंठ से एक कन्या का आविर्भाव हुआ जिसके दाहिने हाथ में एक कमंडल था और बाएँ हाथ में जपमाला| वह कन्या उनके दाहिने पांव पर खड़ी हुई और घोर तपस्या में लीन हो गयी| जब शिवजी का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने उस कन्या का ध्यान तुडाकर पूछा कि हे भद्रे तुम कौन हो? मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूँ| तब उस कन्या ने उत्तर दिया --- समुद्र मंथन के समय जो हलाहल निकला था और जिसका पान करने से आप नीलकंठ कहलाये, मेरा जन्म उसी नीलकंठ से हुआ है| मेरी आपसे विनती है कि मैं इसी प्रकार आपसे सदा जुडी रहूँ|
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भगवान शिव ने कहा -- तथास्तु! पुत्री तुम मेरे तेज से जन्मी हो, इसलिए तुम न केवल मेरे संग सदा के लिए जुडी रहोगी बल्कि तुम महामोक्षप्रदा नित्य सिद्धि प्रदायक रहोगी|
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वरदान देने के बाद भगवान शिव तुरंत अंतर्ध्यान हो गए और वह कन्या पुनश्चः तपस्या में लीन हो गयी| भगवान शिव पुन: कुछ समय पश्चात उस कन्या के समक्ष प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरा जलस्वरूप बनोगी, मैं तुम्हे 'नर्मदा' नाम देता हूँ और तुम्हारे पुत्र के रूप में सदा तुम्हारी गोद में बिराजूंगा| हे महातेजस्वी कन्ये! मैं अभी से तुम्हारी गोद में चिन्मयशक्ति संपन्न होकर शिवलिंग के रूप में बहना आरम्भ करूंगा|
तभी से जल रूप में नर्मदा ने विन्ध्याचल और सतपूड़ा की पर्वतमालाओ के मध्य से पश्चिम दिशा की ओर बहना आरम्भ किया|
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हर नर्मदे हर ! ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२६ मार्च २०१३
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हर नर्मदे हर ! ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२६ मार्च २०१३