Sunday 25 March 2018

भगवान शिव की मानस कन्या ..... नर्मदा नदी .....

भगवान शिव की मानस कन्या ..... नर्मदा नदी .....
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सभी पवित्र नदियों के दो रूप होते हैं .... एक तो उनका स्थूल जल रूप है, और दूसरा उनकी एक सूक्ष्म दैवीय सत्ता का रूप है, जिसकी अनुभूति केवल ध्यान में ही की जा सकती है| वैसे तो भारत कि सभी नदियाँ पवित्र हैं पर नर्मदा का एक विशेष महत्व है| "नर्मदा सरितां श्रेष्ठा रुद्रतेजात् विनि:सृता| तार्येत् सर्वभूतानि स्थावरानि चरानी च||" समस्त नदियों में श्रेष्ठ नदी नर्मदा रूद्र के तेज से उत्पन्न हुई है और स्थावर, अस्थावर आदि सब किसी का परित्राण करती है| "सर्वसिद्धिमेवाप्नोति तस्या तट परिक्र्मात्" उसके तट की परिक्रमा से सर्वसिद्धियों की प्राप्ति होती है|
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नर्मदा शिव जी की मानस कन्या है| नर्मदा जी के बारे में लोकनाथ ब्रह्मचारी जो महातप:सिद्ध शिवदेहधारी महातपस्वी महात्मा थे, ने अपने शिष्यों को बताया था कि वे एक बार नर्मदा परिक्रमा के समय एक विशिष्ट घाट पर बैठे थे कि एक काले रंग की गाय नदी में उतरी और जब वह नहा कर बाहर निकली तो उसका रंग गोरा हो गया| ध्यानस्थ होकर उन्होंने इसका रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने देखा कि वह कृष्णा गाय और कोई नहीं स्वयं गंगा माता थीं|
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विद्युत् प्रभा के रंग जैसी हाथ में त्रिशूल लिए कन्या रूप में माँ नर्मदा ने अपने तट पर तपस्यारत महात्माओं की सदा रक्षा की है| इसी लिए पूरा नर्मदा तट एक तपोभूमि रहा है|
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अमरकंटक के शिखर पर भगवान शिव एक बार गहरे ध्यान में थे कि सहसा उनके नीले कंठ से एक कन्या का आविर्भाव हुआ जिसके दाहिने हाथ में एक कमंडल था और बाएँ हाथ में जपमाला| वह कन्या उनके दाहिने पांव पर खड़ी हुई और घोर तपस्या में लीन हो गयी| जब शिवजी का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने उस कन्या का ध्यान तुडाकर पूछा कि हे भद्रे तुम कौन हो? मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूँ| तब उस कन्या ने उत्तर दिया --- समुद्र मंथन के समय जो हलाहल निकला था और जिसका पान करने से आप नीलकंठ कहलाये, मेरा जन्म उसी नीलकंठ से हुआ है| मेरी आपसे विनती है कि मैं इसी प्रकार आपसे सदा जुडी रहूँ|
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भगवान शिव ने कहा -- तथास्तु! पुत्री तुम मेरे तेज से जन्मी हो, इसलिए तुम न केवल मेरे संग सदा के लिए जुडी रहोगी बल्कि तुम महामोक्षप्रदा नित्य सिद्धि प्रदायक रहोगी|
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वरदान देने के बाद भगवान शिव तुरंत अंतर्ध्यान हो गए और वह कन्या पुनश्चः तपस्या में लीन हो गयी| भगवान शिव पुन: कुछ समय पश्चात उस कन्या के समक्ष प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरा जलस्वरूप बनोगी, मैं तुम्हे 'नर्मदा' नाम देता हूँ और तुम्हारे पुत्र के रूप में सदा तुम्हारी गोद में बिराजूंगा| हे महातेजस्वी कन्ये! मैं अभी से तुम्हारी गोद में चिन्मयशक्ति संपन्न होकर शिवलिंग के रूप में बहना आरम्भ करूंगा|

तभी से जल रूप में नर्मदा ने विन्ध्याचल और सतपूड़ा की पर्वतमालाओ के मध्य से पश्चिम दिशा की ओर बहना आरम्भ किया|
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हर नर्मदे हर ! ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२६ मार्च २०१३

साधक के लिए आत्म निरीक्षण :---

साधक के लिए आत्म निरीक्षण :---
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यहाँ ये नौ प्रश्न हैं, जिनके निष्ठापूर्वक दिए हुए उत्तर बता देंगे कि आध्यात्मिक रूप से हम कितने पानी में हैं| सायंकाल की उपासना के पश्चात दिन भर के कार्यों का अवलोकन करें और स्वयं के ह्रदय से ये नौ प्रश्न पूछें| इनके उत्तर भी अपने ह्रदय की पुस्तक में ही नित्य लिख लें| इन प्रश्नों को प्रिंट कर लें या कागज़ पर लिख लें और अपने पास रखें|
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(१) क्या मैं अपनी जीवन शैली से यानी जैसा जीवन मैं जी रहा हूँ, उस से संतुष्ट हूँ ? यदि नहीं तो उसे बदलने के लिए क्या कर रहा हूँ, मुझे और क्या करना चाहिए ?
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(२) क्या मेरा आज का दिन बीते हुए कल से अधिक अच्छा था ? क्या मैं नित्य नियमित उपासना करता हूँ ? क्या मुझे ध्यान में शान्ति, आनंद और परमात्मा की अनुभूति होती है ? क्या मेरी साधना बीते हुए कल से अधिक अच्छी और गहरी थी ? यदि नहीं तो मुझे इसी समय से क्या करना चाहिए ?
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(३) मेरा अहं, चेतना के किस स्तर पर है ?
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(४) क्या मुझ में ये अच्छे गुण विकसित हो रहे हैं, जैसे ..... धैर्य, दयालुता, आत्मसंयम, इच्छाशक्ति, भक्ति, एकाग्रता, उत्साह, मन की पवित्रता, निष्ठा, और परमात्मा के प्रति श्रद्धा व विश्वास | यदि नहीं तो मुझे अब और क्या करना चाहिए ?
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(५) सब तरह के उकसावे और उत्तेजनाओं के पश्चात् भी क्या मेरी वाणी कटु थी ? क्या मुझे क्रोध आया ? क्या मेरा व्यवहार निर्दयतापूर्ण और अनैतिक था ? यदि हाँ, तो मुझे अब इसी समय से आगे और क्या करना चाहिए ?
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(६) क्या मुझे अपने जीवन का उद्देश्य याद है ? क्या मैं अपने मार्ग पर सही रूप से अग्रसर हो रहा हूँ ? मेरा स्वाध्याय और समर्पण का भाव कैसा है ? क्या मैं कर्ताभाव से मुक्त हूँ ?
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(७) क्या मैं अपने भीतर उठने वाली भावनाओं और विचारों के प्रवाह के प्रति सजग हूँ ?
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(८) क्या मैं अपनी विफलताओं के लिए दूसरों को दोष देता हूँ ? यदि हाँ, तो मुझे तुरंत सुधरने की आवश्यकता है|
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(९) क्या मैं पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ वायु, सूर्य के प्रकाश व उचित आहार का ग्रहण, पर्याप्त व्यायाम और विश्राम करता हूँ ? क्या मेरा जीवन संतुलित है ?
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इन प्रश्नों पर नित्य विचार करने से हम साधना के मार्ग पर कोई धोखा नहीं खायेंगे | सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२४ मार्च २०१८


वीर सावरकर पर लगाए जाने वाले आक्षेप गलत हैं .....

वीर सावरकर पर लगाए जाने वाले आक्षेप गलत हैं .....
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विनायक दामोदर सावरकर पर कुछ दिनों पूर्व घटिया मानसिकता के लोगों ने एक आक्षेप किया है जिसकी मैं भर्त्सना करता हूँ| भारत की अंग्रेजों से आज़ादी में सबसे बड़ा योगदान अगर किसी व्यक्ति का था तो वह थे वीर सावरकर| उन्होंने व उनके परिवार ने जितने अमानवीय कष्ट सहे उतने अन्य किसी ने भी नहीं सहे|
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तीर्थयात्रा की तरह सभी को अंडमान की सेल्युलर जेल में वह कोठरी देखने जाना चाहिए जहाँ उन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा देकर रखा गया था| अन्य सब कोठरियों के सिर्फ एक ही दरवाज़ा है, पर उनकी कोठरी के दोहरे दरवाज़े हैं| जेल में जो अति अमानवीय यंत्रणा उन्होंने सही उसका अनुमान वह जेल अपनी आँखों से देखने के बाद ही आप लगा सकते हैं| जेल में ही उनको पता चला कि उनके भाई भी वहीं बन्दी थे| सारी यातनाएँ उन्होंने एक परम तपस्वी की तरह भारत माता की स्वतंत्रता हेतु एक तपस्या के रूप में सहन कीं| उनका पूरा जीवन ही एक कठोर तपस्या थी| पता नहीं हम में से कितने लोगों के कर्म उन्होंने अपने ऊपर लेकर काटे|
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उनकी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर लिखी पुस्तक भारत के क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत थी| नेताजी सुभाष बोस को विदेश जाकर स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा उन्होंने ही दी थी|
उनका मानना था कि भारतीयों के पास न तो अस्त्र-शस्त्र हैं और न उन्हें चलाना आता है| अतः उन्होंने पूरे भारत में घूमकर हज़ारों युवकों को सेना में भर्ती कराया ताकि वे अंग्रेजों से उनके ही अस्त्र चलाना सीखें और समय आने पर उनका मुँह अंग्रेजों की ओर कर दें| इसका प्रभाव पड़ा और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों को सलाम करना और उनके आदेश मानने से मना कर दिया| मुंबई में नौसेना का विद्रोह हुआ| इन सब घटनाओं से डर कर अँगरेज़ भारत छोड़ने को बाध्य हुए|
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कुटिल अँगरेज़ भारत की सता अपने मानस पुत्रों को देकर चले गए| भारत को आज़ादी चरखा चलाने से नहीं अपितु भारतीय सैनिकों द्वारा अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह के कारण मिली| जाते जाते अँगरेज़ भारत का जितना अधिक अहित कर सकते थे उतना कर के चले गए|
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वीर सावरकर के अति मानवीय गुण स्पष्ट बताते हैं कि वे एक जीवन्मुक्त महापुरुष थे जिन्होनें भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए ही स्वेच्छा से जन्म लिया था| उनकी तपस्या का सबसे बड़ा योगदान था भारत की स्वतन्त्रता में| अब अंग्रेजों के मानस पुत्र ही उन पर आक्षेप लगा रहे हैं जो निंदनीय है| वीर सावरकर अमर रहें|
कृपा शंकर 

२५ मार्च २०१६