वीर सावरकर पर लगाए जाने वाले आक्षेप गलत हैं .....
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विनायक दामोदर सावरकर पर कुछ दिनों पूर्व घटिया मानसिकता के लोगों ने एक आक्षेप किया है जिसकी मैं भर्त्सना करता हूँ| भारत की अंग्रेजों से आज़ादी में सबसे बड़ा योगदान अगर किसी व्यक्ति का था तो वह थे वीर सावरकर| उन्होंने व उनके परिवार ने जितने अमानवीय कष्ट सहे उतने अन्य किसी ने भी नहीं सहे|
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तीर्थयात्रा की तरह सभी को अंडमान की सेल्युलर जेल में वह कोठरी देखने जाना चाहिए जहाँ उन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा देकर रखा गया था| अन्य सब कोठरियों के सिर्फ एक ही दरवाज़ा है, पर उनकी कोठरी के दोहरे दरवाज़े हैं| जेल में जो अति अमानवीय यंत्रणा उन्होंने सही उसका अनुमान वह जेल अपनी आँखों से देखने के बाद ही आप लगा सकते हैं| जेल में ही उनको पता चला कि उनके भाई भी वहीं बन्दी थे| सारी यातनाएँ उन्होंने एक परम तपस्वी की तरह भारत माता की स्वतंत्रता हेतु एक तपस्या के रूप में सहन कीं| उनका पूरा जीवन ही एक कठोर तपस्या थी| पता नहीं हम में से कितने लोगों के कर्म उन्होंने अपने ऊपर लेकर काटे|
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उनकी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर लिखी पुस्तक भारत के क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत थी| नेताजी सुभाष बोस को विदेश जाकर स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा उन्होंने ही दी थी|
उनका मानना था कि भारतीयों के पास न तो अस्त्र-शस्त्र हैं और न उन्हें चलाना आता है| अतः उन्होंने पूरे भारत में घूमकर हज़ारों युवकों को सेना में भर्ती कराया ताकि वे अंग्रेजों से उनके ही अस्त्र चलाना सीखें और समय आने पर उनका मुँह अंग्रेजों की ओर कर दें| इसका प्रभाव पड़ा और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों को सलाम करना और उनके आदेश मानने से मना कर दिया| मुंबई में नौसेना का विद्रोह हुआ| इन सब घटनाओं से डर कर अँगरेज़ भारत छोड़ने को बाध्य हुए|
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कुटिल अँगरेज़ भारत की सता अपने मानस पुत्रों को देकर चले गए| भारत को आज़ादी चरखा चलाने से नहीं अपितु भारतीय सैनिकों द्वारा अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह के कारण मिली| जाते जाते अँगरेज़ भारत का जितना अधिक अहित कर सकते थे उतना कर के चले गए|
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वीर सावरकर के अति मानवीय गुण स्पष्ट बताते हैं कि वे एक जीवन्मुक्त महापुरुष थे जिन्होनें भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए ही स्वेच्छा से जन्म लिया था| उनकी तपस्या का सबसे बड़ा योगदान था भारत की स्वतन्त्रता में| अब अंग्रेजों के मानस पुत्र ही उन पर आक्षेप लगा रहे हैं जो निंदनीय है| वीर सावरकर अमर रहें|
कृपा शंकर
२५ मार्च २०१६
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विनायक दामोदर सावरकर पर कुछ दिनों पूर्व घटिया मानसिकता के लोगों ने एक आक्षेप किया है जिसकी मैं भर्त्सना करता हूँ| भारत की अंग्रेजों से आज़ादी में सबसे बड़ा योगदान अगर किसी व्यक्ति का था तो वह थे वीर सावरकर| उन्होंने व उनके परिवार ने जितने अमानवीय कष्ट सहे उतने अन्य किसी ने भी नहीं सहे|
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तीर्थयात्रा की तरह सभी को अंडमान की सेल्युलर जेल में वह कोठरी देखने जाना चाहिए जहाँ उन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा देकर रखा गया था| अन्य सब कोठरियों के सिर्फ एक ही दरवाज़ा है, पर उनकी कोठरी के दोहरे दरवाज़े हैं| जेल में जो अति अमानवीय यंत्रणा उन्होंने सही उसका अनुमान वह जेल अपनी आँखों से देखने के बाद ही आप लगा सकते हैं| जेल में ही उनको पता चला कि उनके भाई भी वहीं बन्दी थे| सारी यातनाएँ उन्होंने एक परम तपस्वी की तरह भारत माता की स्वतंत्रता हेतु एक तपस्या के रूप में सहन कीं| उनका पूरा जीवन ही एक कठोर तपस्या थी| पता नहीं हम में से कितने लोगों के कर्म उन्होंने अपने ऊपर लेकर काटे|
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उनकी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर लिखी पुस्तक भारत के क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत थी| नेताजी सुभाष बोस को विदेश जाकर स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा उन्होंने ही दी थी|
उनका मानना था कि भारतीयों के पास न तो अस्त्र-शस्त्र हैं और न उन्हें चलाना आता है| अतः उन्होंने पूरे भारत में घूमकर हज़ारों युवकों को सेना में भर्ती कराया ताकि वे अंग्रेजों से उनके ही अस्त्र चलाना सीखें और समय आने पर उनका मुँह अंग्रेजों की ओर कर दें| इसका प्रभाव पड़ा और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों को सलाम करना और उनके आदेश मानने से मना कर दिया| मुंबई में नौसेना का विद्रोह हुआ| इन सब घटनाओं से डर कर अँगरेज़ भारत छोड़ने को बाध्य हुए|
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कुटिल अँगरेज़ भारत की सता अपने मानस पुत्रों को देकर चले गए| भारत को आज़ादी चरखा चलाने से नहीं अपितु भारतीय सैनिकों द्वारा अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह के कारण मिली| जाते जाते अँगरेज़ भारत का जितना अधिक अहित कर सकते थे उतना कर के चले गए|
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वीर सावरकर के अति मानवीय गुण स्पष्ट बताते हैं कि वे एक जीवन्मुक्त महापुरुष थे जिन्होनें भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए ही स्वेच्छा से जन्म लिया था| उनकी तपस्या का सबसे बड़ा योगदान था भारत की स्वतन्त्रता में| अब अंग्रेजों के मानस पुत्र ही उन पर आक्षेप लगा रहे हैं जो निंदनीय है| वीर सावरकर अमर रहें|
कृपा शंकर
२५ मार्च २०१६
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