Saturday 29 October 2016

प्रेम मेरा अस्तित्व है, कोई भावना नहीं .....

प्रेम मेरा अस्तित्व है, कोई भावना नहीं .....
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सब कुछ ब्रह्मस्वरूप है और वही ब्रह्म मेरा साक्षिस्वरूप है| 'ब्रह्म रहस्य' के रूप में चार महावाक्य ..... १. ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म, २. ॐ अहं ब्रह्माऽस्मि, ३. ॐ तत्त्वमसि, और ४. ॐ अयमात्मा ब्रह्म हैं|
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हे गुरु रुपी सर्वव्यापी भगवान परमशिव, आपकी दृष्टी में मैं निरंतर हूँ, आप सदा मेरी रक्षा कर रहे हैं| आप ही मेरे ज्योतिर्मय ब्रह्म हैं, आप ही मुझे निरंतर सुनाई देने वाली प्रणव ध्वनी है, आप ही मेरे प्राण हैं, और आप ही मेरे अस्तित्व है|
गुरुरूप में आप सदा मेरे कूटस्थ में हैं और आप ही मुझे ब्रह्मज्ञान दे रहे हैं|
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ध्यान में सदा आप मेरे सम्मुख रहते हैं, पर अब निरंतर हर समय मेरे सजग चैतन्य में रहें| "मैं" "मैं" नहीं अब "आप" ही "आप" हैं| मेरा कोई पृथक अस्तित्व ना हो, कोई भेद न हो| सिर्फ और सिर्फ बस आपका ही अस्तित्व रहे| मुझे अपने साथ एकाकार करो| आपकी पूर्णता मेरी पूर्णता हो| आपकी अनंतता मेरी अनंतता हो|
मैं आपकी शरणागत हूँ| मेरा कल्याण करो| मेरी निरंतर रक्षा करो|
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इस देह का भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग पश्चिम दिशा है और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है|
हे परमशिव आप सहस्त्रार में मुझसे अपना ध्यान करवाते हैं जहाँ पूरे ब्रह्मांड से घनीभूत होकर आपकी परम कृपा और ज्ञानगंगा निरंतर तैलधारा की तरह मुझ पर बरसती है|
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मैं आपका परमप्रेम हूँ| प्रेम मेरा स्वभाव है| प्रेम ही मेरा अस्तित्व है, कोई भावना नहीं| उस परमप्रेम में ही आप और मैं एक हैं| कहीं कोई पृथकता नहीं है|
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

आत्म ज्ञान .....

आत्म ज्ञान .....
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संत जन कहते हैं कि यदि कोई ऐसा ज्ञान है जिसे जानने के पश्चात अन्य कुछ भी जानने को नहीं है तो वह है --- "आत्मज्ञान"| आत्म ज्ञान ही आत्म तत्व है जिसे प्राप्त करने पश्चात अन्य कुछ भी प्राप्त करने को नहीं है| आत्म-तत्व स्वयं को प्राप्त नहीं होता, अपितु मुमुक्षु स्वयं ही आत्म-तत्व को प्राप्त हो जाता है| उसका कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता| वह समष्टि के साथ एकाकार हो जाता हैं|
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यही सच्चिदानंद की प्राप्ति है| ऐसे ज्ञानी के लिए कुछ भी भेद नहीं रहता| उसके लिए दृश्य, दृष्टा और दृष्टि एक ही हो जाती है| यही आत्मसाक्षात्कार है, यही परमात्मा की प्राप्ति है| आत्म तत्व को जानने के लिए पूर्ण समर्पण भाव से श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य गुरु के पास जाना चाहिए| उन गुरु आचार्य के द्वारा निर्दिष्ट साधना के द्वारा ही कोई मुमुक्षु आत्म तत्व का साक्षात्कार कर सकता है|
‘तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि:
श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ||’ (मु.उप. १.२.१२)
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गुरु लाभ भी प्रभु कृपा से ही होता है| इसके लिए भक्ति और गहन अभीप्सा चाहिए| उपनिषदों में आत्म तत्व का ज्ञान ही भरा पड़ा है| उपनिषदों को समझना बहुत कठिन है| अतः श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य गुरु के सत्संग और मार्गदर्शन में साधना अति आवश्यक है| उपनिषदों का ज्ञान प्रेरणा दे सकता है| ग्रंथों के अध्ययन मनन से सत्संग लाभ भी मिलता है और मुमुक्षत्व भी जागृत होता है|
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ह्रदय में अभीप्सा, प्रेम और समर्पण के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते|
गुरु के मार्गदर्शन में ध्यान साधना से देह की चेतना से ऊपर उठकर अनंत के विस्तार की अनुभूति और उस दिव्य पूर्णता के साथ एकाकार कि अनुभूति आत्म तत्व का बोध कराती है|
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श्री रमण महर्षि का मुख्य उपदेश यह था कि प्रत्येक मुमुक्षु को निरंतर स्वयं से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि ---- "मैं कौन हूँ?" --- (कोSहं) | इसी का निरंतर चिंतन करते करते साधक सोSहं के सोपान तक पहुँच जाता है|
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अष्टावक्र गीता में अष्टावक्र जी कहते हैं कि संसार में चार प्रकार के पुरुष हैं ---- एक ज्ञानी, दूसरा मुमुक्षु, तीसरा अज्ञानी और चौथा मूढ़।
"जो संशय और विपर्यय से रहित होता है और आत्मानंद में आनंदित होता है वही ज्ञानी है।"
अष्टावक्र जी कहते हैं ---
देह को आत्मा मानने से जन्म मरण रूपी संसार चक्र में पुन: पुन: भ्रमण करता पड़ता है| तुम पृथ्वि नही हो और न तुम जलरूप हो, न अग्निरूप हो, न वायु रूप हो और न आकाशरूप हो । अर्थात इन पॉंचो तत्वों में से कोई भी तत्व तुम्हारा स्वंरूप नहीं है और पॉंचो तत्वों का समुदायरूप इंद्रियों का विषय जो यह स्थूल शरीर है वह भी तुम नहीं हो क्योंकि शरीर क्षण क्षण में परिणाम को प्राप्त होता जाता है।
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श्रुति कहती है - अयमात्मा ब्रह़म्। अर्थात जो आत्मा है वही ब्रहम् है, वही ईश्वर है।
जब मुमुक्षु --- स्थूल देह, इंद्रियों के विषयों आदि से परे हट कर साक्षी भाव में स्थित हो कर साक्षी भाव से भी ऊपर उठ जाए उस स्थिति का नाम आत्मज्ञान है|
अध्ययन से आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता| अध्ययन प्रेरणा दे सकता है और कुछ सीमा तक मार्गदर्शन कर सकता है, उससे अधिक नहीं| किसी के प्रवचन सुनकर भी आत्मज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता| राजा जनक एक अपवाद थे| प्रवचन सुनकर भी प्रेरणा और उत्साह ही प्राप्त हो सकता है|
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संत जन कहते हैं कि आत्म-ज्ञानी महात्मा (जो महत् तत्व से जुड़ा है) के चरण जिस भूमि पर पड़ते हैं वह भूमि पवित्र हो जाती है| वह कुल और परिवार धन्य हो जाता है जहाँ ऐसी महान आत्मा जन्म लेती है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

सनातन हिन्दू धर्म की विशेषता ....

सनातन हिन्दू धर्म की विशेषता ----
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इस विषय पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी है| पर मैं यहाँ दो पंक्तियों में ही सनातन हिन्दू धर्म की विशेषता बता रहा हूँ|
परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम, परमात्मा को पाने की अभीप्सा और तड़प, परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण व त्याग, सर्वस्व के कल्याण की कामना व प्रार्थना, गुरु-शिष्य परम्परा, स्वरुची अनुसार परमात्मा के विभिन्न रूपों की उपासना , उदारता और सहनशीलता -------------- ये सब सनातन हिन्दू धर्म में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं|
भारत हिन्दू राष्ट्र है और रहेगा| अन्धकार और असत्य अनेक बार फैला है पर सदा उसका अंत ही हुआ है| सनातन हिन्दू धर्म का सूर्य विश्व के समस्त अन्धकार और अज्ञानता को दूर करेगा|
वह देश जहाँ महाराजा पृथु जैसे सम्राट हुए जिन्होंने पूरी पृथ्वी पर राज्य किया, जिनके कारण इस ग्रह का नाम ही पृथ्वी पड़ा; जिस देश में भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण जैसे अवतार हुए, जहाँ याज्ञवल्क्य, अगस्त्य, वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे अनगिनत ऋषि हुए, दिलीप जैसे गौ रक्षक महाराजा, महाराज शिवी जैसे न्यायी राजा, भगवन सनत्कुमार जैसे ब्रह्मज्ञ, नारद, ध्रुव, प्रहलाद और हनुमानजी जैसे भक्त हुए, जहाँ वेद, वेदांगों, पुराणों, षड्दर्शनों, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों की रचनाएँ हुईं, जहाँ भीष्म जैसे दृढ़व्रती महारथी और अर्जुन जैसे अनगिनत वीरों ने जन्म लिया, वह भूमि सदा सदा के लिए असत्य के अन्धकार में नहीं रह सकती|
एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति का उदय हो रहा है जो पुनश्चः एक विराट ब्रह्मतेज और क्षात्रत्व
को जन्म देगी| भारत माँ अपने परम वैभव के साथ पुनश्च अखण्डता के सिंहासन पर आसीन होंगी|
घर घर में वेदों के स्वर गूंजेंगे, यहाँ जन्म लेने वाली प्रत्येक आत्मा महान होगी| ईश्वर की अब यही इच्छा है अतः इसे अब कोई नहीं रोक सकता| यह अन्धकार अधिक समय तक नहीं रहेगा| आप चाहो या ना चाहो इस सत्य के आप साक्षी ही नहीं भागीदार भी बनोगे|
जय जननी, जय भारत, जय सनातन हिन्दू धर्म !!! ॐ तत्सत्|

दीपावली की शुभ कामनाएँ .....

दीपावली की शुभ कामनाएँ .....
हम सब का अज्ञान नष्ट हो| हमारे धन में निरंतर वृद्धि हो| मेरा एकमात्र धन तो ब्रह्म चिंतन और स्वाध्याय है| अन्य किसी धन की कामना नहीं है|
ज्योतिषांज्योति कूटस्थ ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित रहे|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

ध्यान किसका करें ?

***** ध्यान किसका करें ? *****
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ध्यान उसी का करना चाहिए जिसका न तो कभी जन्म हुआ है और न कभी मृत्यु होगी| वह कौन और क्या है जिसने न तो कभी जन्म लिया है, और न कभी मृत्यु को प्राप्त होगा? .....
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु तो अवश्य ही होगी|
पर जिसने कभी जन्म ही नहीं लिया, क्या वह मृत्यु को प्राप्त कर सकता है?
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हमारा अजन्मा स्वरुप क्या है जो कभी जन्म ही नहीं लेता?
जो अनादि और अनंत है, जिसने कभी जन्म ही नहीं लिया, हमारा वह अजन्मा स्वरुप, शुद्ध अजन्मा भाव क्या है?
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वह शिव भाव है|
सर्वव्यापी भगवान परम शिव में परम प्रेममय हो कर पूर्ण समर्पण करना ही उच्चतम साधना है|
वही मुक्ति है, और वही लक्ष्य है|
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अपने विचारों के प्रति सतत् सचेत रहिये| जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं|
हमारे विचार ही हमारे "कर्म" हैं, जिनका फल भोगना ही पड़ता है|
मन की हर इच्छा, हर कामना एक कर्म या क्रिया है जिसकी प्रतिक्रया अवश्य होती है| यही कर्मफल का नियम है|
अतः हम स्वयं को मुक्त करें ..... सब कामनाओं से, सब संकल्पों से, सब विचारों से, और निरंतर शिव भाव में रहें|
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परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम, परमात्मा को पाने की अभीप्सा और तड़प, परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण व त्याग, समष्टि के कल्याण की कामना व प्रार्थना, और कुछ भी नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!

ओमकार का जप ....

ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ ||
ॐकार का मानसिक जाप ऐसे करो जैसे आप किसी झरने के मध्य में हो| निरंतर आ रही सबसे तेज ध्वनि को सुनते रहो और ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ का मानसिक जाप करते रहो| वह ध्वनि तेल धारा के सामान अविछिन्न हो|
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भूल जाओ की आप यह देह हो| आप सर्वव्यापी आत्मा हो| सारी अनंतता और पूर्णता आप स्वयं ही हो| अपने अस्तित्व का लय उस ध्वनी में ही कर दो|
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जिस तरह से झरने का जल ऊपर से नीचे निरंतर प्रवाहित हो रहा है वैसे ही आशुतोष भगवान परमशिव दक्षिणामूर्ति की कृपा आप के सहस्त्रार चक्र पर पूरे ब्रह्मांड से एकत्र होकर बरस रही है|
ॐ नमः शिवाय |
ॐ ॐ ॐ ||

33 कोटि देवी देवता ......

33 कोटि देवी देवता ......
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यह एक गलतफहमी है कि 33 करोड़ देवी देवता हैं| देवता 33 कोटि यानि 33 प्रकार के हैं|
12 आदित्य है, 8 वसु हैं, 11 रूद्र हैं, 2 अश्विनी कुमार हैं.....
कुल................12 +8 +11 +2 =33.

नरकासुर-चतुर्दशी की शुभ कामनाएँ ......

(1) नरकासुर-चतुर्दशी की शुभ कामनाएँ ......
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर चतुर्दशी कहते हैं| प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नाम का एक अति दुर्दांत अत्याचारी दैत्य था| वह संतों को त्रास देने लगा और महिलाओं पर अत्याचार करने लगा| उसने सौलह हजार एक सौ स्त्रियों को बन्दी बना लिया| जब उसका अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया तब देवता व ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए| भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसान दिया|
नरकासुर को स्त्री के हाथों ही पराजित होना लिखा था| अतः भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और युद्ध के लिए प्रस्थान किया|
नरकासुर के साथ हुए युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण कछ क्षणों के लिए अपनी माया से मूर्छित हुए तो सत्यभामा ने नरकासुर के साथ युद्ध किया और अपने अस्त्रों के प्रहार से उसे पराजित कर दिया| भगवान श्रीकृष्ण ने तब उसका वध कर के सौलह हज़ार एक सौ स्त्रियों को उसकी क़ैद से मुक्त किया, और प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई|
उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी| प्रजा ने अपने घरों में दीपक जलाए| अतः इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं|
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(2) रूप चतुर्दशी की शुभ कामनाएँ .....
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं| इस दिन सौन्दर्य रूप भगवान श्रीकृष्ण की पूजा होती है, और व्रत भी रखा जाता है|
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व दीपक जलाकर, उबटन आदि लगाकर स्नान किया जाता है| इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना अनिवार्य है| इससे देह और चैतन्य में सौंदर्य आता है|
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(3) हनुमत्जयन्ती की शुभ कामनाएँ .....
विभिन्न मतों के अनुसार देश में हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है| पहली चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को व दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को| बाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हुआ है| इस दिन हनुमान जी के भक्त हनुमान जी का षोडशोपचार पूजन करते हैं|
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पुनश्चः आप सब को शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन |
ॐ नमःशिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

धन तेरस .....

धन तेरस ..... (कृपया अन्यथा न लें, मेरे इस लेख का कोई बुरा न माने) ....
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आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है| भारत सरकार इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाएगी| धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है| इसका लौकिक धन-संपत्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है|
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धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज से एक यमदूत ने पूछा कि अकाल-मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है| इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगण मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं|
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धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था| भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है| कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है|
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सबसे बड़ा धन अच्छा स्वास्थ्य है| धनतेरस के दिन दीप जला कर भगवान से अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करें| बेकार में प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार सोना-चांदी आदि खरीदने के लिए न दौड़ें, और अपने बड़े परिश्रम से कमाए धन को नष्ट न करें| अपने स्वास्थ्य की रक्षा करें| धन्यवाद !
धन तेरस की शुभ कामनाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ !!

परमात्मा की परम कृपा से हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है .......

परमात्मा की परम कृपा से हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है .....
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परमात्मा की परम कृपा से हमारा जन्म भारतवर्ष में इसी लिए हुआ है कि हम धर्माचरण करते हुए इसी जन्म में परमात्मा को प्राप्त करें| जीवन बहुत छोटा है, इसे नष्ट न करें| धर्म का आचरण हमें करना ही होगा| धर्म .... आचरण से होता है, बातों से नहीं| धर्म का आचरण ही धर्म है, उसका विवरण नहीं|
धर्म की रक्षा भी हम धर्म का पालन कर के ही कर सकते हैं, उसकी महिमा का गान कर के नहीं| धर्म तभी होगा जब हम धर्म का आचरण करेंगे|
हम धर्म का आचरण करेंगे तभी भगवान हमारी रक्षा करेंगे, अन्यथा नहीं|
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किसी पुस्तक में लिखा हुआ धर्म नहीं हो सकता, आचरण में लाया हुआ ही धर्म है| हम उसको जीवन में क्रियान्वित करेंगे तभी वह धर्म होगा, अन्यथा नहीं|
कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें, भगवान राम और कृष्ण की मात्र पूजा कर के हम उन के भक्त नहीं हो सकते| उनके जीवन के आदर्शों को अपने जीवन में अवतरित कर के और उन की तरह आचरण कर के ही हम उनके भक्त बन सकते हैं|
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किसी गुरु के शिष्य हम उन के उपदेशों का पालन कर के ही बन सकते हैं, उनकी जयजयकार कर के नहीं|
ईश्वर को जीवन का केंद्रबिंदु बनाकर और उन से प्रेम कर के ही हम भक्त बन सकते हैं, मात्र विश्वास करने या पुस्तक पढने से नहीं|
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ॐ तत्सत् || ॐ नमः शिवाय || ॐ ॐ ॐ ||

घर पर खूब सारा आध्यात्मिक साहित्य हिंदी भाषा में रखें .........

घर पर खूब सारा आध्यात्मिक साहित्य हिंदी भाषा में रखें .........
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मुझे आध्यात्म में रूचि इस लिए नहीं हुई कि किसी ने मुझे आध्यात्मिक साहित्य पढ़ने के लिए बाध्य किया| मेरे स्वर्गीय पिताजी ने हिंदी में बहुत सारा साहित्य घर पर रखा था जो हमें सदा उपलब्ध रहता था| बचपन में ही हमने रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ पढ़ लिए थे जिनकी स्मृति अभी तक है| 15 वर्ष की आयु तक तो सम्पूर्ण विवेकानंद साहित्य का अध्ययन कर लिया था, जिसका अवलोकन एक दो बार जीवन में फिर किया| किशोरावस्था में ही रमण महर्षि और स्वामी रामतीर्थ के साहित्य का भी अध्ययन कर लिया था| श्री अरविन्द की भाषा अत्यंत क्लिष्ट थी अतः कभी ठीक से समझ में नहीं आई| उनके महाकाव्य 'सावित्री' को समझने का कई बार प्रयास किया, कभी ठीक से समझ में नहीं आया तो प्रयास करना ही छोड़ दिया|
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अपनी स्वयं की भाषा में सद्साहित्य सदा घर पर रखना चाहिए| इसका बाल मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है| पहले हिंदी में 'धर्मयुग' और 'सप्ताहिक हिंदुस्तान' नाम की पत्रिकाएँ आती थीं जो बहुत ज्ञानवर्धक थीं| आजकल वैसी पत्रिकाएँ छपती ही नहीं हैं| मासिक 'कादम्बिनी' कभी बहुत अच्छी पत्रिका हुआ करती थी|
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आजकल सारा आध्यात्मिक साहित्य बहुत ऊँचे मूल्य पर अंग्रेजी भाषा में तो आसानी से मिल जाता है पर हिंदी में नहीं| लगता है अंग्रेजी में पाठक अधिक हैं और हिंदी में कम| इसलिए प्रकाशक को हिंदी में छापने पर कोई आर्थिक लाभ नहीं होता| हिंदी भाषा में छपे पुराने संस्करण जो बाजार में उपलब्ध नहीं हैं, वे भी दुबारा प्रकाशित नहीं हो रहे हैं| प्रकाशकों की इसमें रूचि नहीं है क्योंकी इससे उन्हें आर्थिक लाभ नहीं होता|
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हिंदी भाषी जिज्ञासुओं को चाहिए कि अच्छे सद्साहित्य को खरीद कर भावी पीढ़ी को संस्कारित करने हेतु घर में खरीद कर रखें| घर में अच्छा साहित्य होगा तो बच्चे अवश्य पढेंगे और उनमें स्वतः अच्छे संस्कार जागृत होंगे| हिंदी में बिक्री अधिक होगी तो उनका प्रकाशन भी अधिक होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

मेरी पीड़ा .....

मेरी पीड़ा .....
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यों तो समष्टि की पीड़ा मेरी ही पीड़ा है, पर भारतवर्ष की पीड़ा विशेष रूप से मेरी पीड़ा है, क्योंकि धर्म, आध्यात्म और परमात्मा की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में ही हुई है| भारतवर्ष की उन्नति मेरी उन्नति है और मेरी उन्नति पूरे भारतवर्ष की उन्नति है| पूरा भारतवर्ष दुखी है तो मैं दुखी हूँ, और मैं सुखी हूँ तो पूरा भारतवर्ष सुखी है| मेरी चेतना का विस्तार ही पूरे भारतवर्ष की चेतना का विस्तार है| भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ, मेरी भावनाएँ बहुत अधिक आहत हैं, और यह मेरा ही पतन है|
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मैं यह लेख आप सब विभिन्न देहों में व्यक्त मेरी ही निजात्माओं के लिए लिख रहा हूँ| वैसे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और सृष्टि आप ही हैं| सारे नक्षत्रमंडल, ग्रह , उपग्रह और विश्व आप की ही अभिव्यक्ति हैं| आप यह देह नहीं, सर्वव्यापी शाश्वत आत्मा हैं और परमात्मा के दिव्य अमृत पुत्र हैं|
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भारतवर्ष का आप पर एक विशेष ऋण है जो आप को चुकाना ही पडेगा क्योंकि यह भागवत चेतना आपको भारतवर्ष ने ही दी है|
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पूरी सृष्टि में इस पृथ्वी का एक विशिष्ट स्थान है और इस पृथ्वी पर भारतवर्ष का एक विशेष स्थान है क्योंकि भारत एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र है और परमात्मा की सर्वाधिक उपस्थिति भारतवर्ष में ही है| भारत वर्ष में भी आपका ही एक विशिष्ट स्थान है|
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सारी सृष्टि का भविष्य इस पृथ्वी पर है, इस पृथ्वी का भविष्य भारतवर्ष व सनातन हिन्दू धर्म पर है और भारतवर्ष व सनातन हिन्दू धर्म का भविष्य आप पर निर्भर है|
और भी स्पष्ट शब्दों में आप पर ही पूरी सृष्टि का भविष्य निर्भर है|
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हर प्राणी में परम सत्ता का अस्तित्व है, आवश्यकता है उसे पहिचानने व योग साधना द्वारा जागृत कर लोक कल्याण के मार्ग पर मोड़ देने की| राष्ट्र के उत्थान में समष्टि के उत्थान के सूत्र जुड़े हैं, और समष्टि के कल्याण से व्यक्ति के कल्याण के सूत्र जुड़े हैं| संसार से मुंह मोड़ना मोक्ष का मार्ग नहीं है| जो निर्वाण चाहते हैं, वे सांसारिक कर्मों को अवसर देते हैं कि वे मुक्ति का मार्ग बन जाएं| यह संसार भी एक चेतना है, सभी प्राणियों में ईश्वर का सूक्ष्म अस्तित्व है| मनुष्य की क्रियाओं का संचालन परमसत्ता से आदेशित है इसलिए वे भी आध्यात्मिक उपलब्धि का साधन बन सकती हैं जो योग साधना के द्वारा संभव है|
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संपूर्ण दर्शन का सार या निचोड़ है ..... योग साधना के माध्यम से, व्यक्ति अपना आंतरिक विकास करे, और अपने ही अंदर की मानसिक चेतना से ऐसी उच्चतर, आध्यात्मिक व अतिमानसिक चेतना को विकसित करे जो मानव प्रकृति को रूपांतरित कर उसे दिव्य बना दे| इसी में जीवन की पूर्णता है, इसी में भागवत चेतना से मिलन है|
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हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत
हे वन्दनीय भारत अभिनंदनीय भारत
जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे
तेरी जनम-जनम भर, हम वंदना करेंगे
हम अर्चना करेंगे ||१||

महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है
तू प्राण है हमारी जननी समान तू है
तेरे लिए जियेंगे,तेरे लिए मरेंगे
तेरे लिए जनम भर हम साधना करेंगे
हम अर्चना करेंगे ||२||
जिसका मुकुट हिमालय, जग जगमगा रहा है
सागर जिसे रतन की,अंजुली चढा रहा है
वह देश है हमारा,ललकार कर कहेंगे
इस देश के बिना हम,जीवित नहीं रहेंगे
हम अर्चना करेंगे ||३||
(संघ का एक गीत)
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ॐ तत्सत् | आप सब दिव्यात्माओं को नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

सनातन हिन्दू धर्म क़ा प्राण है परमात्मा के प्रति अहैतुकी पूर्ण परम प्रेम, समर्पण और ध्यान साधना .....

सनातन हिन्दू धर्म क़ा प्राण है ..... परमात्मा के प्रति अहैतुकी पूर्ण परम प्रेम, समर्पण और ध्यान साधना .....
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इस बात की चर्चा बहुत कम होती है कि सनातन हिन्दू धर्म की ऐसी कौन सी विशेषता और शक्ति है जिसने अत्यधिक भयावह क्रूरतम मर्मान्तक प्रहारों के पश्चात भी इसे कालजयी और अमर बना रखा है| मनीषीगण इसे समझते भी हैं| अधिकाँश लोग कर्मकांड को ही हिन्दू धर्म समझते हैं जो सत्य नहीं है| कर्मकांड तो मात्र एक व्यवस्था है जिसमें समय समय पर परिवर्तन होते रहे हैं, पर यह धर्म का मूल बिंदु नहीं है|
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सनातन हिन्दू धर्म क़ा प्राण है ..... परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम, पूर्ण समर्पण और ध्यान साधना| जब तक हिन्दुओं में दस लोग भी ऐसे हैं जो भगवान से जुड़े हुए हैं तब तक भारत व सनातन हिन्दू धर्म का नाश नहीं हो सकता| यही सनातन धर्म का सार है| यही भारत की अस्मिता है| भारत का उद्धार और विस्तार भी ऐसे महापुरुष ही करेंगे जो भगवान को पूर्णरूपेण समर्पित हैं|
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घोर वन की भयावहता में रात्रि के अन्धकार में सिंहनी जब दहाड़ मारती है तब सारा वन काँप उठता है और सारे पशु भयभीत होकर भागने लगते हैं| उस समय सिंहनी के पास खडा सिंहशावक क्या भयभीत होता है? उसे अपनी माता के प्रेम पर भरोसा है और माँ से प्रेम है| भगवान हमारी माता भी हैं| वे जब हैं तो भय कैसा? वे तो सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करते हैं|
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भारत का सबसे बड़ा अहित किया है अधर्मसापेक्ष यानि धर्मनिरपेक्ष अधर्मी सेकुलरवाद, मार्क्सवाद और मैकाले की शिक्षा व्यवस्था ने| विडम्बना है कि आधुनिक भारत के अनेक साहित्यकारों ने धर्मनिरपेक्षता (अधर्मसापेक्षता) और मार्क्सवाद को बढ़ावा दिया है जिसका दुष्प्रभाव समाज पर पड़ा है, जिसके कारण समाज में धर्म का ह्रास और ग्लानि भी हुई है| समाज में चरित्रहीनता अधर्मसापेक्षता (धर्मनिरपेक्षता) के कारण ही है|
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भारत की अस्मिता हमारे धर्म, संस्कृति व आदर्शों (भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण) पर गर्व हम में हो| हमारे जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा हों और हम उन्हें शरणागति द्वारा समर्पित हों ..... यही सर्वश्रेष्ठ कार्य है जिसे हम इस जीवन में कर सकते हैं|
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ॐ तत्सत | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ .....

भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ| राष्ट्र की समस्याओं और समाधान का भास निज चेतना में है|
मेरी भावनाएँ बहुत आहत हैं| पर समाधान क्या है ???
पूरी सृष्टि परमात्मा के संकल्प से बनी है| उस परमात्मा से जुड़कर, उसके संकल्प से जुड़कर ही कोई समाधान निकल सकता हैं|
इसके लिए समर्पण और साधना करनी होगी|
किसी भी विषयपर बिना उस विषय के प्रत्यक्ष अनुभव के, किसी भी तरह के बौद्धिक निर्णय पर पहुँचना -- अहंकार का लक्षण है जो एक अज्ञानता ही है| ऐसा नहीं होना चाहिए|
भगवान भुवन भास्कर उदित होने पर कभी नहीं कहते की मैं आ गया हूँ| उनकी उपस्थिति मात्र से सभी प्राणी उठ जाते हैं| उनकी उपस्थिति में कहीं भी कोई अन्धकार नहीं रहता|
उनकी तरह ही निज जीवन को ज्योतिर्मय बनाना होगा तभी अन्धकार और अज्ञानता को दूर कर समाज और राष्ट्र को आलोकित किया जा सकता है|
सिर्फ बुद्धि से आप किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच सकते| किसी भी मान्यता के पीछे निज अनुभव भी होना चाहिए|
व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं के कारण कुछ समय के लिए आध्यात्मिक लेखों की प्रस्तुति पर अस्थायी विराम लगा रहा हूँ| जब भी प्रभु से प्रेरणा मिलेगी पुनश्चः उपस्थित हो जाऊँगा|
आपके जीवन में शुभ ही शुभ हो| आप सब मेरी ही निजात्मा हैं| आप सब के हृदयस्थ प्रभु को प्रणाम|
ॐ नमो नारायण ! जय जय श्री सीताराम !

जीवन की किसी भी जटिल समस्या और बुराई का समाधान मात्र स्वयं के प्रयास से नहीं हो सकता ...

मेरा अब तक का यह अनुभव है जो आप सब के साथ बाँट रहा हूँ .......
जीवन की किसी भी जटिल समस्या और बुराई का समाधान मात्र स्वयं के प्रयास से नहीं हो सकता| परमात्मा की करुणामयी कृपा का होना अति आवश्यक है|
निष्काम भाव से परमात्मा के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण ही सब समस्याओं का समाधान है| फिर योग-क्षेम का वहन वे ही करने के लिए वचनबद्ध हैं|
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आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य के स्थान को स्थायी रूप से परमात्मा के लिए आरक्षित रखें| बार बार यह देखें कि देह में हमारी चेतना कहाँ है| जहाँ हमारी चेतना होगी वैसे ही विचार आयेंगे| यदि हमारी चेतना नाभि के नीचे है तो यह खतरे की घंटी है| प्रयास पूर्वक अपनी चेतना को नाभि से ऊपर ही रखें|
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कुछ प्राणायाम और योगासनों जैसे सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, महामुद्रा, मूलबन्ध उड्डियानबंध जलंधरबंध आदि का नियमित अभ्यास हमारी चेतना को बहुत अधिक प्रभावित करता है| मेरुदंड को सीधा रखकर बैठकर भ्रूमध्य में ध्यान और अजपाजप करने से चेतना ऊर्ध्वमुखी होती है| भागवत मन्त्र का यथासंभव हर समय मानसिक जाप हमारी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करता है|
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लक्ष्य एक ही है ..... वह है ..... परमात्मा कि प्राप्ति| जब तक परमात्मा को उपलब्ध न हों तब तक इधर उधर ना देखें, अपने सामने अपने लक्ष्य को ही सदा रखें|
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शुभ कामनाएँ और प्रणाम | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

रूस की अक्टूबर क्रांति क्या सचमुच एक महान क्रांति थी या भयंकर छलावा थी ?........

(एक धर्म-विरोधी विचारधारा पर एक लघु खंडनात्मक चर्चा)
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रूस की अक्टूबर क्रांति क्या सचमुच एक महान क्रांति थी या भयंकर छलावा थी?........
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7 नवंबर 1917 (रूसी कैलेंडर 25 अक्टूबर) को हुई बोल्शेविक क्रांति पिछले एक सौ वर्षों में हुई विश्व की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी जिसे महान अक्टूबर क्रांति का नाम दिया गया है| इसका प्रभाव इतना व्यापक था कि रूस में जारशाही का अंत हुआ और मार्क्सवादी सता स्थापित हुई व सोवियत संघ का जन्म हुआ|
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद योरोप के अनेक देशों में रूसी प्रभाव से साम्यवादी शासन स्थापित हुए| चीन में माओत्सेतुंग के नेतृत्व में साम्यवादी सता में आये| उत्तरी कोरिया और उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सरकारें बनीं| क्यूबा में साम्यवादियों ने सरकार बनाई|
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पर मेरे दृष्टिकोण से यह तथाकथित क्रांति एक छलावा थी| मार्क्सवादी साम्यवाद ने विश्व की चेतना को नकारात्मक रूप से बहुत अधिक प्रभावित किया | यह मार्क्सवादी साम्यवाद एक छलावा था जिसने मेरे जैसे लाखों लोगों को भ्रमित किया| मुझे इसके छलावे से निकलने में बहुत समय लगा| बाद में मेरे जैसे और भी अनेक लोग इस अति भौतिक व धर्म-विरोधी विचारधारा के भ्रमजाल से मुक्त हुए|
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विश्व में जहाँ भी साम्यवादी सत्ताएँ स्थापित हुईं वे अपने पीछे एक विनाशलीला छोड़ गईं| इनके द्वारा अपने ही करोड़ों लोगों का भयानक नरसंहार हुआ और मानवीय चेतना का अत्यधिक ह्रास हुआ| अब तो विश्व इसके प्रभाव से मुक्त हो चुका है| सिर्फ उत्तरी कोरिया में ही एक निरंकुश तानाशाही द्वारा यह व्यवस्था बची हुई है| भारत में भी मार्क्सवाद के बहुत अधिक अनुयायी हैं|
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यह एक धर्म-विरोधी व्यवस्था थी इसलिए मैं यह लेख लिख रहा हूँ|
यह क्रांति कोई सर्वहारा की क्रांति नहीं थी| यह एक सैनिक विद्रोह था जो वोल्गा नदी में खड़े औरोरा नामक युद्धपोत से आरम्भ हुआ और सारी रुसी सेना में फ़ैल गया था| इस विद्रोह का कोई नेता नहीं था अतः फ़्रांस में निर्वासित जीवन जी रहे व्लादिमीर इलीइच लेनिन ने जर्मनी की सहायता से रूस में आकर इस विद्रोह का नेतृत्व संभाल लिया और इसे सर्वहारा की मार्क्सवादी क्रांति का रूप दे दिया|
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इस सैनिक विद्रोह की पृष्ठभूमि में जाने के लिए तत्कालीन रूस की भौगोलिक, राजनितिक, सैनिक व आर्थिक स्थिति को समझना होगा| रूस में भूमि तो बहुत है पर उपजाऊ भूमि बहुत कम है| रूस सदा से एक विस्तारवादी देश रहा है| इसने फैलते फैलते पूरा साइबेरिया, अलास्का और मंचूरिया अपने अधिकार में ले लिया था| उसका अगला लक्ष्य कोरिया को अपने अधिकार में लेने का था| रूस की इस योजना से जापान में बड़ी उत्तेजना और आक्रोश फ़ैल गया क्योंकी जापान का बाहरी विश्व से सम्बन्ध कोरिया के माध्यम से ही था| अतः जापान ने युद्ध की तैयारियाँ कर के अपनी सेनाएँ रूस के सुदूर पूर्व और मंचूरिया में उतार दीं| रूस और जापान में युद्ध हुआ जिसमें रूस पराजित हुआ| जापान ने पूरा मंचूरिया उसकी राजधानी पोर्ट आर्थर सहित रूस से छीन लिया| जार ने अपनी नौसेना को युद्ध के लिए भेजा जो बाल्टिक सागर से हजारों मील की दूरी तय कर अफ्रीका का चक्कर लगाकर जब तक मेडागास्कर पहुंची, मंचुरिया का पतन हो गया था| फिर भी रुसी नौसेना सुंडा जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर होती हुई सुदूर पूर्व में व्लादिवोस्टोक की ओर रवाना हुईं| जब रुसी नौसेना त्शुशीमा जलडमरूमध्य को पार कर रही थी तब जापान की नौसेना ने अचानक आक्रमण कर के पुरे रूसी नौसेनिक बेड़े को डुबा दिया, जिसमें से कोई भी जहाज नहीं बचा और हज़ारों रुसी सैनिक डूब कर मर गए| यह एक ऐसी घटना थी जिससे रूसी सेना में और रूस में एक घोर निराशा फ़ैल गयी|
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बाद में हुए प्रथम विश्व युद्ध में रुसी सेना की बहुत दुर्गति हुई| रुसी सेना के पास न तो अच्छे हथियार थे और न अच्छे वस्त्र और न पर्याप्त खाद्य सामग्री| जितने सैनिक युद्ध में मरे उससे अधिक सैनिक तो भूख और ठण्ड से मर गए| अतः सेना में अत्यधिक आक्रोश था अपने शासक जार के प्रति| रूस में भी खाद्य सामग्री की बहुत अधिक कमी थी और पेट भर के खाना सभी को नहीं मिलता था| अतः वहां की प्रजा भी अपने शासक के प्रति आक्रोशित थी|
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उपरोक्त परिस्थितियों में रूस में तथाकथित महान अक्टूबर क्रांति हुई| जो सैनिक इसके पक्ष में थे वे बहु संख्या में थे अतः "बोल्शेविक" कहलाये और जो वहां के शासक के पक्ष में अल्प संख्या में थे वे "मेन्शेविक" कहलाये| उनमें युद्ध हुआ और बोल्शेविक जीते अतः यह क्रांति बोल्शेविक क्रांति कहलाई|
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फिर रूस में क्या हुआ और कैसे साम्यवाद अन्य देशों में फैला यह तो सब को पता है|
चीन में साम्यवाद रूस की सैनिक सहायता से आया| माओ के long march में स्टालिन के भेजे हुए रुसी सेना के tanks भी थे जिनके कारण ही माओ सत्ता में आ पाए|
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विश्व की चेतना को इस प्रभाव से निकलना ही था अतः आने वाले समय के लिए यह भी होना आवश्यक था| मार्क्सवादी सत्ताओं ने धर्म की जड़ों को उखाड़ कर फैंक दिया था| पर अब वहाँ धर्म पुनर्स्थापित हो रहा है|
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साम्यवाद का मूल स्रोत ब्रिटेन है| जैसे भारतीय सभ्यता को नष्ट करने के षडयंत्र ब्रिटेन से आरम्भ हुए, वैसे ही रूस को नष्ट करने के भी| जर्मनी से उपद्रवी मार्क्स को ब्रिटेन बुलाया गया| उसके साहित्य को ब्रिटेन में तो नहीं पढ़ाया गया पर सरकारी खर्च से उसके साहित्य को छाप कर पूरे विश्व में फैलाया गया| भारत में साम्यवादी विचारधारा को ब्रिटेन से लाने का श्री ऍम.ऐन. रॉय को है| दुनिया के सारे उपद्रवियों को ब्रिटेन में शरण मिल जाती है|

अब तो रूस में सनातन धर्म जिस गति से फ़ैल रहा है उससे लगता है रूस का भावी धर्म सनातन धर्म ही होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

पाप क्या है और पापी कौन है ? .....

पाप क्या है और पापी कौन है ? ......
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अपने आत्म-तत्व की विस्मृति ही सबसे बड़ा पाप है|
अपने आप को पापी कहना भी पाप है| ह्रदय में तो साक्षात भगवान नारायण बैठे हैं| सत्य ज्ञान अनंत परम ब्रह्म सच्चिदानंद का चैतन्य हमारे ह्रदय में प्रकाशित है| वैश्वानर के रूप में वे हमारे उदर में भी विराजित हैं| स्वयं को पापी कहना क्या परमात्मा को गाली देना नहीं हो गया?
उस आत्म-तत्व का अनुसंधान और उसमें स्थिति ही सबसे बड़ी साधना है|

आप में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का आलोक ही बाहर के तिमिर का नाश कर सकता है .....

आप में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का आलोक ही बाहर के तिमिर का नाश कर सकता है | आप अपने सर्वव्यापी शिवरूप में स्थित हो सम्पूर्ण समष्टि का कल्याण करने अवतरित हुए हो | आप सामान्य मनुष्य नहीं, परमात्मा की अमृतमय अभिव्यक्ति हो, साक्षात शिव परमब्रह्म हो | जिस पर भी आपकी दृष्टि पड़े वह तत्क्षण परम प्रेममय हो निहाल हो जाए | जो आपको देखे वह भी तत्क्षण धन्य हो जाए |
भगवान कहीं आसमान से नहीं उतरने वाले, अपने स्वयं के अन्तर में उन्हें जागृत करना होगा |
सब का कल्याण हो |
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ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||