प्रेम मेरा अस्तित्व है, कोई भावना नहीं .....
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सब कुछ ब्रह्मस्वरूप है और वही ब्रह्म मेरा साक्षिस्वरूप है| 'ब्रह्म रहस्य' के रूप में चार महावाक्य ..... १. ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म, २. ॐ अहं ब्रह्माऽस्मि, ३. ॐ तत्त्वमसि, और ४. ॐ अयमात्मा ब्रह्म हैं|
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हे गुरु रुपी सर्वव्यापी भगवान परमशिव, आपकी दृष्टी में मैं निरंतर हूँ, आप सदा मेरी रक्षा कर रहे हैं| आप ही मेरे ज्योतिर्मय ब्रह्म हैं, आप ही मुझे निरंतर सुनाई देने वाली प्रणव ध्वनी है, आप ही मेरे प्राण हैं, और आप ही मेरे अस्तित्व है|
गुरुरूप में आप सदा मेरे कूटस्थ में हैं और आप ही मुझे ब्रह्मज्ञान दे रहे हैं|
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ध्यान में सदा आप मेरे सम्मुख रहते हैं, पर अब निरंतर हर समय मेरे सजग चैतन्य में रहें| "मैं" "मैं" नहीं अब "आप" ही "आप" हैं| मेरा कोई पृथक अस्तित्व ना हो, कोई भेद न हो| सिर्फ और सिर्फ बस आपका ही अस्तित्व रहे| मुझे अपने साथ एकाकार करो| आपकी पूर्णता मेरी पूर्णता हो| आपकी अनंतता मेरी अनंतता हो|
मैं आपकी शरणागत हूँ| मेरा कल्याण करो| मेरी निरंतर रक्षा करो|
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इस देह का भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग पश्चिम दिशा है और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है|
हे परमशिव आप सहस्त्रार में मुझसे अपना ध्यान करवाते हैं जहाँ पूरे ब्रह्मांड से घनीभूत होकर आपकी परम कृपा और ज्ञानगंगा निरंतर तैलधारा की तरह मुझ पर बरसती है|
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मैं आपका परमप्रेम हूँ| प्रेम मेरा स्वभाव है| प्रेम ही मेरा अस्तित्व है, कोई भावना नहीं| उस परमप्रेम में ही आप और मैं एक हैं| कहीं कोई पृथकता नहीं है|
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
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सब कुछ ब्रह्मस्वरूप है और वही ब्रह्म मेरा साक्षिस्वरूप है| 'ब्रह्म रहस्य' के रूप में चार महावाक्य ..... १. ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म, २. ॐ अहं ब्रह्माऽस्मि, ३. ॐ तत्त्वमसि, और ४. ॐ अयमात्मा ब्रह्म हैं|
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हे गुरु रुपी सर्वव्यापी भगवान परमशिव, आपकी दृष्टी में मैं निरंतर हूँ, आप सदा मेरी रक्षा कर रहे हैं| आप ही मेरे ज्योतिर्मय ब्रह्म हैं, आप ही मुझे निरंतर सुनाई देने वाली प्रणव ध्वनी है, आप ही मेरे प्राण हैं, और आप ही मेरे अस्तित्व है|
गुरुरूप में आप सदा मेरे कूटस्थ में हैं और आप ही मुझे ब्रह्मज्ञान दे रहे हैं|
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ध्यान में सदा आप मेरे सम्मुख रहते हैं, पर अब निरंतर हर समय मेरे सजग चैतन्य में रहें| "मैं" "मैं" नहीं अब "आप" ही "आप" हैं| मेरा कोई पृथक अस्तित्व ना हो, कोई भेद न हो| सिर्फ और सिर्फ बस आपका ही अस्तित्व रहे| मुझे अपने साथ एकाकार करो| आपकी पूर्णता मेरी पूर्णता हो| आपकी अनंतता मेरी अनंतता हो|
मैं आपकी शरणागत हूँ| मेरा कल्याण करो| मेरी निरंतर रक्षा करो|
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इस देह का भ्रूमध्य पूर्व दिशा है, सहस्त्रार उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग पश्चिम दिशा है और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है|
हे परमशिव आप सहस्त्रार में मुझसे अपना ध्यान करवाते हैं जहाँ पूरे ब्रह्मांड से घनीभूत होकर आपकी परम कृपा और ज्ञानगंगा निरंतर तैलधारा की तरह मुझ पर बरसती है|
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मैं आपका परमप्रेम हूँ| प्रेम मेरा स्वभाव है| प्रेम ही मेरा अस्तित्व है, कोई भावना नहीं| उस परमप्रेम में ही आप और मैं एक हैं| कहीं कोई पृथकता नहीं है|
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!