Saturday, 29 October 2016

घर पर खूब सारा आध्यात्मिक साहित्य हिंदी भाषा में रखें .........

घर पर खूब सारा आध्यात्मिक साहित्य हिंदी भाषा में रखें .........
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मुझे आध्यात्म में रूचि इस लिए नहीं हुई कि किसी ने मुझे आध्यात्मिक साहित्य पढ़ने के लिए बाध्य किया| मेरे स्वर्गीय पिताजी ने हिंदी में बहुत सारा साहित्य घर पर रखा था जो हमें सदा उपलब्ध रहता था| बचपन में ही हमने रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ पढ़ लिए थे जिनकी स्मृति अभी तक है| 15 वर्ष की आयु तक तो सम्पूर्ण विवेकानंद साहित्य का अध्ययन कर लिया था, जिसका अवलोकन एक दो बार जीवन में फिर किया| किशोरावस्था में ही रमण महर्षि और स्वामी रामतीर्थ के साहित्य का भी अध्ययन कर लिया था| श्री अरविन्द की भाषा अत्यंत क्लिष्ट थी अतः कभी ठीक से समझ में नहीं आई| उनके महाकाव्य 'सावित्री' को समझने का कई बार प्रयास किया, कभी ठीक से समझ में नहीं आया तो प्रयास करना ही छोड़ दिया|
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अपनी स्वयं की भाषा में सद्साहित्य सदा घर पर रखना चाहिए| इसका बाल मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है| पहले हिंदी में 'धर्मयुग' और 'सप्ताहिक हिंदुस्तान' नाम की पत्रिकाएँ आती थीं जो बहुत ज्ञानवर्धक थीं| आजकल वैसी पत्रिकाएँ छपती ही नहीं हैं| मासिक 'कादम्बिनी' कभी बहुत अच्छी पत्रिका हुआ करती थी|
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आजकल सारा आध्यात्मिक साहित्य बहुत ऊँचे मूल्य पर अंग्रेजी भाषा में तो आसानी से मिल जाता है पर हिंदी में नहीं| लगता है अंग्रेजी में पाठक अधिक हैं और हिंदी में कम| इसलिए प्रकाशक को हिंदी में छापने पर कोई आर्थिक लाभ नहीं होता| हिंदी भाषा में छपे पुराने संस्करण जो बाजार में उपलब्ध नहीं हैं, वे भी दुबारा प्रकाशित नहीं हो रहे हैं| प्रकाशकों की इसमें रूचि नहीं है क्योंकी इससे उन्हें आर्थिक लाभ नहीं होता|
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हिंदी भाषी जिज्ञासुओं को चाहिए कि अच्छे सद्साहित्य को खरीद कर भावी पीढ़ी को संस्कारित करने हेतु घर में खरीद कर रखें| घर में अच्छा साहित्य होगा तो बच्चे अवश्य पढेंगे और उनमें स्वतः अच्छे संस्कार जागृत होंगे| हिंदी में बिक्री अधिक होगी तो उनका प्रकाशन भी अधिक होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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