परमात्मा की परम कृपा से हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है .....
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परमात्मा की परम कृपा से हमारा जन्म भारतवर्ष में इसी लिए हुआ है कि हम धर्माचरण करते हुए इसी जन्म में परमात्मा को प्राप्त करें| जीवन बहुत छोटा है, इसे नष्ट न करें| धर्म का आचरण हमें करना ही होगा| धर्म .... आचरण से होता है, बातों से नहीं| धर्म का आचरण ही धर्म है, उसका विवरण नहीं|
धर्म की रक्षा भी हम धर्म का पालन कर के ही कर सकते हैं, उसकी महिमा का गान कर के नहीं| धर्म तभी होगा जब हम धर्म का आचरण करेंगे|
हम धर्म का आचरण करेंगे तभी भगवान हमारी रक्षा करेंगे, अन्यथा नहीं|
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किसी पुस्तक में लिखा हुआ धर्म नहीं हो सकता, आचरण में लाया हुआ ही धर्म है| हम उसको जीवन में क्रियान्वित करेंगे तभी वह धर्म होगा, अन्यथा नहीं|
कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें, भगवान राम और कृष्ण की मात्र पूजा कर के हम उन के भक्त नहीं हो सकते| उनके जीवन के आदर्शों को अपने जीवन में अवतरित कर के और उन की तरह आचरण कर के ही हम उनके भक्त बन सकते हैं|
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किसी गुरु के शिष्य हम उन के उपदेशों का पालन कर के ही बन सकते हैं, उनकी जयजयकार कर के नहीं|
ईश्वर को जीवन का केंद्रबिंदु बनाकर और उन से प्रेम कर के ही हम भक्त बन सकते हैं, मात्र विश्वास करने या पुस्तक पढने से नहीं|
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ॐ तत्सत् || ॐ नमः शिवाय || ॐ ॐ ॐ ||
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परमात्मा की परम कृपा से हमारा जन्म भारतवर्ष में इसी लिए हुआ है कि हम धर्माचरण करते हुए इसी जन्म में परमात्मा को प्राप्त करें| जीवन बहुत छोटा है, इसे नष्ट न करें| धर्म का आचरण हमें करना ही होगा| धर्म .... आचरण से होता है, बातों से नहीं| धर्म का आचरण ही धर्म है, उसका विवरण नहीं|
धर्म की रक्षा भी हम धर्म का पालन कर के ही कर सकते हैं, उसकी महिमा का गान कर के नहीं| धर्म तभी होगा जब हम धर्म का आचरण करेंगे|
हम धर्म का आचरण करेंगे तभी भगवान हमारी रक्षा करेंगे, अन्यथा नहीं|
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किसी पुस्तक में लिखा हुआ धर्म नहीं हो सकता, आचरण में लाया हुआ ही धर्म है| हम उसको जीवन में क्रियान्वित करेंगे तभी वह धर्म होगा, अन्यथा नहीं|
कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें, भगवान राम और कृष्ण की मात्र पूजा कर के हम उन के भक्त नहीं हो सकते| उनके जीवन के आदर्शों को अपने जीवन में अवतरित कर के और उन की तरह आचरण कर के ही हम उनके भक्त बन सकते हैं|
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किसी गुरु के शिष्य हम उन के उपदेशों का पालन कर के ही बन सकते हैं, उनकी जयजयकार कर के नहीं|
ईश्वर को जीवन का केंद्रबिंदु बनाकर और उन से प्रेम कर के ही हम भक्त बन सकते हैं, मात्र विश्वास करने या पुस्तक पढने से नहीं|
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ॐ तत्सत् || ॐ नमः शिवाय || ॐ ॐ ॐ ||
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