मेरा अब तक का यह अनुभव है जो आप सब के साथ बाँट रहा हूँ .......
जीवन की किसी भी जटिल समस्या और बुराई का समाधान मात्र स्वयं के प्रयास से नहीं हो सकता| परमात्मा की करुणामयी कृपा का होना अति आवश्यक है|
निष्काम भाव से परमात्मा के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण ही सब समस्याओं का समाधान है| फिर योग-क्षेम का वहन वे ही करने के लिए वचनबद्ध हैं|
.
आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य के स्थान को स्थायी रूप से परमात्मा के लिए आरक्षित रखें| बार बार यह देखें कि देह में हमारी चेतना कहाँ है| जहाँ हमारी चेतना होगी वैसे ही विचार आयेंगे| यदि हमारी चेतना नाभि के नीचे है तो यह खतरे की घंटी है| प्रयास पूर्वक अपनी चेतना को नाभि से ऊपर ही रखें|
.
कुछ प्राणायाम और योगासनों जैसे सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, महामुद्रा, मूलबन्ध उड्डियानबंध जलंधरबंध आदि का नियमित अभ्यास हमारी चेतना को बहुत अधिक प्रभावित करता है| मेरुदंड को सीधा रखकर बैठकर भ्रूमध्य में ध्यान और अजपाजप करने से चेतना ऊर्ध्वमुखी होती है| भागवत मन्त्र का यथासंभव हर समय मानसिक जाप हमारी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करता है|
.
लक्ष्य एक ही है ..... वह है ..... परमात्मा कि प्राप्ति| जब तक परमात्मा को उपलब्ध न हों तब तक इधर उधर ना देखें, अपने सामने अपने लक्ष्य को ही सदा रखें|
.
शुभ कामनाएँ और प्रणाम | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
जीवन की किसी भी जटिल समस्या और बुराई का समाधान मात्र स्वयं के प्रयास से नहीं हो सकता| परमात्मा की करुणामयी कृपा का होना अति आवश्यक है|
निष्काम भाव से परमात्मा के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण ही सब समस्याओं का समाधान है| फिर योग-क्षेम का वहन वे ही करने के लिए वचनबद्ध हैं|
.
आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य के स्थान को स्थायी रूप से परमात्मा के लिए आरक्षित रखें| बार बार यह देखें कि देह में हमारी चेतना कहाँ है| जहाँ हमारी चेतना होगी वैसे ही विचार आयेंगे| यदि हमारी चेतना नाभि के नीचे है तो यह खतरे की घंटी है| प्रयास पूर्वक अपनी चेतना को नाभि से ऊपर ही रखें|
.
कुछ प्राणायाम और योगासनों जैसे सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, महामुद्रा, मूलबन्ध उड्डियानबंध जलंधरबंध आदि का नियमित अभ्यास हमारी चेतना को बहुत अधिक प्रभावित करता है| मेरुदंड को सीधा रखकर बैठकर भ्रूमध्य में ध्यान और अजपाजप करने से चेतना ऊर्ध्वमुखी होती है| भागवत मन्त्र का यथासंभव हर समय मानसिक जाप हमारी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करता है|
.
लक्ष्य एक ही है ..... वह है ..... परमात्मा कि प्राप्ति| जब तक परमात्मा को उपलब्ध न हों तब तक इधर उधर ना देखें, अपने सामने अपने लक्ष्य को ही सदा रखें|
.
शुभ कामनाएँ और प्रणाम | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
No comments:
Post a Comment