ब्रह्मविद्या के आचार्य और अधिकारी कौन है? ... (संशोधित व पुनर्प्रस्तुत लेख)
----------------------------------------
इस सृष्टि में परमात्मा की उपासना से बड़ी और कोई चीज नहीं है, अतः हमारा सब से बड़ा दायित्व बनता है कि हम सर्वप्रथम परमात्मा की ही भक्ति और उपासना करें|
.
यह प्रस्तुत प्रकरण बहुत अधिक सुन्दर एवं मननीय है, जिस पर बड़े-बड़े अनेक मनीषियों ने लिखकर अपने जीवन तथा लेखनी को धन्य किया है| मैं भी धन्य हूँ, पता नहीं किस जन्म के पुण्यों का फल है, जो ये पंक्तियाँ लिख पा रहा हूँ|
.
ब्रह्मा जी ने आरंभ में सृष्टि का नौ बार निर्माण किया परंतु उन्हें संतुष्टि नहीं मिली| फिर नारायण का ध्यान कर के दसवीं सृष्टि सनकादि मुनियों कि की जो विष्णु के अवतार साक्षात भगवान ही थे| ये सनक, सनन्दन, सनातन, व सनत्कुमार नाम के चार ऋषि थे जिनकी आयु सदा पाँच वर्ष की रहती है| वे अमर हैं और सदा ब्रह्मलोक में निवास करते हैं|
.
इन में से भगवान सनत्कुमार ने हर युग में समय-समय पर इस पृथ्वी पर अवतरित होकर सुपात्रों को ब्रह्मविद्या का ज्ञान दिया है| वे ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य और साक्षात मूर्तिमान ब्रह्मविद्या हैं| उन्हीं की कृपा से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी देवर्षि बने| ब्रह्मविद्या का ज्ञान सर्वप्रथम भगवान सनत्कुमार ने नारद जी को दिया था|
.
जो धर्म का दान करते हैं और भगवद् महिमा का प्रचार कर नरत्व और देवत्व को उभारते हैं वे ही नारद हैं| परमात्मा प्रसन्न होकर जीवों को सद्गति प्रदान करते हैं, इसलिए उनका नाम 'नर' है| नरपदवाच्य परमात्मा से सम्बद्ध दिव्य ज्ञान को 'नार' कहते हैं| भगवान् के विषय के दिव्य ज्ञान 'नार' को जो प्रदान करें, वे देवर्षि नारद हैं|
.
त्रेता युग में भगवान् श्रीराम ने अपना पीताम्बर उतार कर भगवान् सनत्कुमार को उस पर बैठाया था और कहा कि माया आपके ऊपर सवार नहीं हो सकती, आप माया के ऊपर सवार हों| भगवान का पीताम्बर माया का स्वरुप है|
.
द्वापर युग में भगवान सनत्कुमार ने विदुर जी को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था| विदुर जी की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान सनत्कुमार ने प्रकट होकर धृतराष्ट्र को भी ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया| महाभारत युद्ध से पूर्व धृतराष्ट्र ने विदुर जी से प्रार्थना की कि युद्ध में अनेक सगे-सम्बन्धी मारे जायेंगे और भयंकर प्राणहानि होगी, तो उस शोक को मैं कैसे सहन कर पाऊंगा? विदुर जी बोले की मृत्यु नाम की कोई चीज ही नहीं होती| मृत्युशोक तो केवल मोह का फलमात्र होता है| धृतराष्ट्र की अकुलाहट सुनकर विदुर ने उन्हें समझाया कि इस अनोखे गुप्त तत्व को मैं भगवन सनत्कुमार की कृपा से ही समझ सका था पर ब्राह्मण देहधारी ना होने के कारण मैं स्वयं उस तत्व को अपने मुंह से व्यक्त नहीं कर सकता| मैं अपने ज्ञानगुरु मूर्त ब्रह्मविद्यास्वरुप भगवान सनत्कुमार का आवाहन ध्यान द्वारा करता हूँ| भगवान सनत्कुमार जैसे ही प्रकट हुए धृतराष्ट्र उनके चरणों में लोट गए और रोते हुए अपनी प्रार्थना सुनाई| तब भगवन सनत्कुमार ने धृतराष्ट्र को ब्रह्मविद्या के जो उपदेश दिए वह उपदेशमाला --- "सनत्सुजातीयअध्यात्म् शास्त्रम्" कही जाती है|
.
भगवान सनत्कुमार का ही दूसरा नाम सनत्सुजात है| एक कथा है कि पार्वती जी ने सनत्कुमार के समान ही पुत्र की कामना की थी अतः सनत्कुमार के अवतार स्कन्द यानि कार्तिकेय हुए|
(यह विषय बहुत लंबा है और इसकी चर्चा को कोई अंत नहीं है अतः इसको यहीं विराम देता हूँ)
.
ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान श्री सनत्कुमार को कोटि-कोटि दंडवत् प्रणाम !!
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जुलाई २०२०